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राजनीति में युवाओं की भागीदारी: लोकतंत्र की नई ऊर्जा

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल के वर्षों में राजनीति में युवाओं, विशेष रूप से गैर-राजनीतिक पृष्ठभूमि से आने वाले लोगों की भागीदारी बढ़ाने की जरूरत को लगातार रेखांकित किया है। स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर उन्होंने एक लाख ऐसे युवाओं को राजनीति में सक्रिय रूप से शामिल होने का आह्वान किया था, जिनकी कोई राजनीतिक विरासत नहीं है। इसी क्रम में, राष्ट्रीय युवा दिवस पर उन्होंने फिर से देश के भविष्य को सशक्त बनाने के लिए युवाओं से राजनीति में कदम रखने का आग्रह किया।

राजनीति से अच्छे लोगों की दूरी: एक गंभीर समस्या
स्वतंत्रता के बाद भारतीय राजनीति में गिरावट आई, जिससे राजनीति को अपराधियों और धनाढ्य वर्ग का अखाड़ा समझा जाने लगा। स्वच्छ छवि और सेवा-भाव रखने वाले नागरिकों ने राजनीति से दूरी बना ली, जिससे अपराधिक पृष्ठभूमि वाले और धनबल के प्रभावशाली लोग राजनीति में हावी होते गए। हालिया आंकड़ों के अनुसार, दिल्ली विधानसभा चुनावों में खड़े उम्मीदवारों में से 132 पर आपराधिक मामले दर्ज थे, और लोकसभा में 46% सांसद किसी न किसी आपराधिक मुकदमे का सामना कर रहे हैं। यह स्थिति लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी है, क्योंकि यदि जनता का विश्वास अपने जनप्रतिनिधियों से उठ जाएगा, तो लोकतांत्रिक संस्थाएं कमजोर पड़ जाएंगी।

परिवारवाद और सामंतवादी सोच: लोकतंत्र की जड़ें कमजोर करती व्यवस्था
लोकतांत्रिक राजनीति में सामंतवादी प्रवृत्तियां विरोधाभासी हैं। संविधान निर्माता बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर ने अपने अंतिम भाषण में इसे संवैधानिक नैतिकता के विरुद्ध बताया था। दुर्भाग्यवश, आज कई राजनीतिक दल परिवारवाद से ग्रस्त हैं, जहां सत्ता और नेतृत्व कुछ ही परिवारों तक सीमित है। इस प्रवृत्ति ने राजनीति में नए विचारों, ऊर्जावान नेतृत्व और दूसरी पंक्ति के प्रभावशाली नेताओं के उभरने की संभावना को सीमित कर दिया है। अधिकांश राजनीतिक दल अब ‘कारपोरेट प्रतिष्ठानों’ की तरह संचालित होते हैं, जहां नेतृत्व एक ‘सीईओ’ की भांति सत्ता केंद्रित रखता है।

राजनीति के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण: बदलाव की आवश्यकता
यदि राजनीति को अपराधियों और धनबल के प्रभाव से मुक्त करना है, तो अच्छे नागरिकों को इसमें सक्रिय भूमिका निभानी होगी। वर्तमान में, समाज के सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाशाली लोग राजनीति को करियर के रूप में नहीं अपनाते, बल्कि नौकरी और अन्य सुरक्षित विकल्पों की ओर रुख कर लेते हैं। यह धारणा कि ‘राजनीति गंदी है और इसमें जाना ठीक नहीं’, लोकतंत्र की जड़ों को कमजोर करती है। राजनीति का मूल उद्देश्य समाज की सुरक्षा, संघर्षों का समाधान और लोककल्याण के लिए नीतिगत निर्णय लेना है। यह उद्देश्य तभी पूरा हो सकता है जब राजनीतिक नेतृत्व सुविचारित, बौद्धिक और समाजहित में निर्णय लेने वाला हो।

राजनीतिक दलों की आंतरिक संरचना में सुधार की जरूरत
राजनीतिक दल लोकतंत्र के वाहक होते हैं। यदि वे स्वयं लोकतांत्रिक मूल्यों का पालन नहीं करेंगे, तो राजनीति में नई ऊर्जा का संचार नहीं होगा। आज अधिकांश राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र की कमी है। योग्य और कर्मठ युवा इसमें जगह नहीं बना पाते, जिससे दलों का चारित्रिक ह्रास होता है। स्वस्थ लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए जरूरी है कि राजनीतिक दलों में खुला संवाद हो, जनहित को प्राथमिकता दी जाए और योग्य नेतृत्व को अवसर मिले।

राजनीति में आमजन की भागीदारी कैसे बढ़े?
कभी छात्रसंघ और सामाजिक आंदोलनों को नेतृत्व निर्माण के महत्वपूर्ण मंच माना जाता था। लेकिन समय के साथ ये मंच अप्रासंगिक होते गए। छात्रसंघ उपद्रव के केंद्र बन गए और सामाजिक आंदोलन क्षुद्र राजनीति की भेंट चढ़ गए। परिणामस्वरूप, आम जनता का राजनीति में प्रवेश सीमित हो गया। हाल के वर्षों में अन्ना हजारे जैसे सामाजिक आंदोलनकारियों की प्रासंगिकता भी कम हो गई, लेकिन राजनीति में पारदर्शिता और शुचिता लाने की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक बढ़ गई है।

युवाओं के लिए राजनीति में अवसरों का सृजन
प्रधानमंत्री मोदी द्वारा गैर-राजनीतिक पृष्ठभूमि वाले युवाओं को राजनीति से जोड़ने का आह्वान सराहनीय है, लेकिन यह तभी सफल होगा जब राजनीतिक दल इसके लिए अनुकूल वातावरण तैयार करें। साथ ही, शैक्षणिक संस्थानों को भी इसमें अहम भूमिका निभानी चाहिए। राजनीति से जुड़े पाठ्यक्रम शुरू किए जाने चाहिए, जो न केवल नेतृत्व क्षमता का विकास करें, बल्कि युवाओं को राजनीति को पेशेवर रूप में अपनाने के लिए भी प्रेरित करें। इससे राजनीति में नई सोच, पारदर्शिता और सुशासन की संभावनाएं प्रबल होंगी।

निष्कर्ष: युवाओं की भागीदारी से ही लोकतंत्र मजबूत होगा
राजनीति में यदि परिवारवाद, अपराधियों और धनबल का वर्चस्व बना रहेगा, तो आमजन की भूमिका धीरे-धीरे सीमित होती जाएगी। इसे बदलने के लिए जरूरी है कि योग्य, ईमानदार और समाजहित में कार्य करने वाले युवा राजनीति में आएं। राजनीतिक दलों को भी आंतरिक लोकतंत्र को मजबूत करना होगा, ताकि नए नेताओं को उभरने का मौका मिले। राजनीति में सुधार की जिम्मेदारी केवल सरकार या राजनीतिक दलों की नहीं, बल्कि पूरे समाज की है। यदि हम राजनीति को दूषित मानकर इससे दूर रहेंगे, तो इसका लाभ वे ही लोग उठाएंगे जो इसे निजी स्वार्थ के लिए उपयोग करते हैं। अब समय आ गया है कि राजनीति को लोकसेवा का माध्यम मानते हुए युवा इसमें सक्रिय भूमिका निभाएं, ताकि लोकतंत्र की जड़ें और मजबूत हो सकें।

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