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राजस्थानी भाषा अब अंतरराष्ट्रीय गूगल ट्रांसलेट प्लेटफार्म का हिस्सा !

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हाल ही में गूगल ट्रांसलेट अब मारवाड़ी, संताली और तुलु सहित 110 नई भाषाओं में उपलब्ध हो गया है। यह विशेषकर राजस्थान वासियों के लिए बहुत ही खुशी का विषय है कि अब गूगल ट्रांसलेट से किसी भी भाषा का मारवाड़ी में अनुवाद संभव हो सकेगा। हालांकि, हाल फिलहाल गूगल ट्रांसलेट के माध्यम से मारवाड़ी का एकदम सटीक व सही अनुवाद संभव नहीं हो पाया है लेकिन जैसे जैसे इसका उपयोग बढ़ेगा, हमें मारवाड़ी भाषा का सही व सटीक अनुवाद उपलब्ध हो सकेगा। यह अलग बात है कि अभी तक केंद्र व राज्य सरकार द्वारा राजस्थानी भाषा को भले ही मान्यता प्रदान नहीं की गई है लेकिन अब गूगल ट्रांसलेट द्वारा मारवाड़ी में अनुवाद सुविधा प्रदान किए जाने से अब राजस्थानी भाषा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने कदम बढ़ा रही है। इससे न केवल राजस्थानी भाषा बल्कि अन्य अनेक भारतीय भाषाएं और अधिक समृद्ध हो सकेंगी। गूगल ने एक दो नहीं अपितु 110 भाषाओं को अनुवाद में शामिल किया है। दरअसल अनुवाद से लाखों करोड़ों लोगों को संवाद स्थापित करने में और अधिक मदद मिलेगी। यहां यह उल्लेखनीय है कि आज गूगल अन्य किसी एप की तुलना में विश्व की अनेक भाषाओं का अनुवाद उपलब्ध करवा रहा है और एप्लीकेशन के माध्यम से नवीनतम तकनीक का उपयोग कर भाषाओं की विविधता का लगातार विस्तार कर रहा है। इसके लिए गूगल आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का भरपूर इस्तेमाल कर रहा है। एक प्रतिष्ठित अंग्रेजी अखबार में छपे एक आर्टिकल में यह बताया गया है कि अपने पीएमएलएम 2 बड़े भाषा मॉडल के समर्थन से, गूगल अब गूगल अनुवाद में 110 नई भाषाएँ पेश कर रहा है। अल्फाबेट इंक कंपनी का दावा है कि यह उसका अब तक का सबसे बड़ा विस्तार है। यहां पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि गूगल ट्रांसलेट को वर्ष 2006 में पेश किया गया था और जून 2024 तक यह फीचर 243 भाषाओं को सपोर्ट करता है, जो अपने आप में बहुत ही काबिले-तारीफ बात है। अखबार ने लिखा है कि ‘ नई भाषाएँ 614 मिलियन से अधिक वक्ताओं का प्रतिनिधित्व करती हैं, जिससे दुनिया की लगभग आठ प्रतिशत आबादी के लिए अनुवाद सुलभ हो गया है। इनमें से कुछ प्रमुख भाषाएँ हैं जिनके 100 मिलियन से अधिक वक्ता हैं, जबकि अन्य स्वदेशी लोगों के छोटे समुदायों द्वारा बोली जाती हैं। नवीनतम विस्तार में फॉन, लुओ, गा, किकोंगो, स्वाति, वेंडा और वुल्फ जैसी अधिक अफ्रीकी भाषाएँ भी एप्लिकेशन में शामिल की गई हैं। नए समावेश में अवधी, बोडो, खासी, कोकबोरोक, मारवाड़ी, संथाली और तुलु जैसी सात भारतीय भाषाएँ भी शामिल हैं। भाषायी विविधताओं, विभिन्न बोलियों, उनकी वर्तनियों पर विचार करके उनको आम जन समुदाय के लिए आगे लाना किसी चमत्कार से कम नहीं है, क्यों कि इससे भाषाओं को विशेष बल मिलता है और इससे भाषाएं विश्व पटल पर आने से पहले से और अधिक समृद्ध होतीं हैं। हाल फिलहाल, राजस्थान भारत का सबसे बड़ा राज्य है और राजस्थानी एक समृद्ध भाषा के रूप में लगातार विश्व पटल पर पहचान बना रही है। जानकारी मिलती है कि राजस्थानी भाषा इंडो-आर्यन परिवार से संबंधित है, जिसकी उत्पत्ति गुर्जरी अपभ्रंश से हुई है। ऐसा माना जाता है कि राजस्थानी भाषा 9वीं शताब्दी के आसपास अस्तित्व में आई थी लेकिन इसके साहित्यिक कृतियों की शुरुआत 13 वीं शताब्दी में हुई थी। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि मारवाड़ी भाषा का पहला व्याकरण रामकरण आसोपा ने लिखा था। विकीपीडिया के अनुसार ‘राजस्थानी आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं में से एक है, जिसका वास्तविक क्षेत्र वर्तमान राजस्थान प्रान्त तक ही सीमित न होकर मध्यप्रदेश के कतिपय पूर्वी तथा दक्षिणी भाग में और पाकिस्तान के वहावलपुर जिले तथा दूसरे पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी सीमा प्रदेशों में भी है। यह हरियाणा, पंजाब, गुजरात और मध्य प्रदेश के निकटवर्ती क्षेत्रों में बोली जाने वाली भाषाओं और बोलियों का समूह है। पाकिस्तान के सिंध और पंजाब प्रांतों में भी इसके वक्ता हैं। राजस्थानी पश्चिमी इंडो-आर्यन भाषा होने के कारण पड़ोसी, संबंधित हिंदी भाषाओं से अलग भाषा है। यह भाषा भारत में लगभग नौ करोड़ लोगों के द्वारा बोली, लिखी एवं पढ़ी जाती है।राजस्थानी नागरी लिपि में लिखी जाती है। इसके अतिरिक्त यहाँ के पुराने लोगों में अब भी एक भिन्न लिपि प्रचलित है, जिसे “बाण्याँ वाटी” कहा जाता है। इस लिपि में प्रायः मात्रा-चिह्र नहीं दिए जाते। राजस्थानी बनिये आज भी बहीखातों में इस लिपि का प्रयोग करते हैं।’ आज राजस्थानी भाषा में डिंगल व पिंगल साहित्य मौजूद हैं, अनेक शोध कार्य भी हुए हैं। जानकारी देना चाहूंगा कि भारत की साहित्य अकादमी और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग(यूजीसी ) ने राजस्थानी को एक अलग भाषा के रूप में मान्यता दी है और आज इसे जोधपुर के जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय, उदयपुर के मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय व बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह विश्वविद्यालय में पढ़ाया जाता है। यहां तक कि राज्य माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, राजस्थान, अजमेर ने राजस्थानी भाषा साहित्य को विद्यालयी शिक्षा में शामिल किया है और यह वर्ष 1973 से एक वैकल्पिक विषय रहा है। पाठकों को यह जानकर आश्चर्य होगा कि विश्व का सबसे बड़ा शब्दकोश डॉ. सीताराम लालस द्वारा रचित राजस्थानी भाषा (राजस्थानी हिंदी वृहद कोश) वृहद शब्दकोश है। इसमें 2 लाख से अधिक शब्द है, जो अपने आप में एक बहुत बड़ी बात है। राजस्थानी भाषा की अनेक विशेषताएं हैं। इसके विकास का इतिहास भी बहुत ही समृद्ध है। राजस्थानी का विकास मध्यदेशीय ‘प्राकृत’ या ‘शौरसेनी’ से हुआ है।राजस्थानी भाषा की बोलियों का अलग से विवरण उपलब्ध है जैसे मेवाड़ी, मारवाड़ी,ढ़ूढ़ाड़ी, मालवी, हाड़ौती, शेखावाटी, वागड़ी, बागड़ी, निमाड़ी (मध्य प्रदेश) और जालौरी वगैरह वगैरह। इतना ही नहीं,हिंदी के सांस्कृतिक तथा साहित्यिक इतिहास के साथ इस भाषा का गठबंधन बहुत ही दृढ़ है। कोई भी भाषा भावों की अभिव्यक्ति का सशक्त व शानदार माध्यम होती है। राजस्थानी भाषा का भी अपना विशिष्ट परिवेश और परंपराएं रहीं हैं। अब तो यह भाषा 18 से 20 करोड़ लोगों तक अपनी पहुंच बना चुकी है। यह अत्यंत प्राचीन भाषा है जिसे पहले मरू भाषा के नाम से जाना जाता था। आज राजस्थानी भाषा का विस्तार न केवल अनेक प्रदेशों तक है अपितु विश्व पटल का यह एक प्रमुख व महत्वपूर्ण हिस्सा बन गई है। यह राजस्थानियों की मातृभाषा है। इसे संवैधानिक मान्यता दिलाने के लिए आज भी अनेक धरने,प्रदर्शन, सम्मेलन जारी हैं। जानकारी देना चाहूंगा कि 25 अगस्त 2003 को राजस्थान विधानसभा द्वारा सर्वसम्मति से इस भाषा की संवैधानिक मान्यता के लिए प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार को भिजवा दिया गया था लेकिन राजनैतिक उदासीनता के कारण अभी तक यह प्रस्ताव ठंडे बस्ते में है। यह विडंबना ही है कि इतना सब कुछ होने के बावजूद यह भाषा भारतीय संविधान की 8 वीं अनुसूची में शामिल नहीं की गई है। कहना चाहूंगा कि राजस्थानी भाषा अपने आप में है बड़ी ही प्यारी और अनोखी भाषा है, जिसमें मिठास है, संस्कृति का भाव है, अपनापन है। राजस्थानी भाषा कितनी मीठी है, इसका पता हमें कविता जी के एक गीत से मिलता है। कवि सुखवीर सिहं कविया का गीत ‘मायड़ बोली’ एक प्रतिगीत एक प्रेरक गीत के रूप में है जो राजस्थानी भाषाओं की महत्ता बताता है और ज्यादा से ज्यादा राजस्थानी भाषाएं बोलने हेतु प्रेरित करता है । कविया जी कहते हैं कि -‘ मीठो गुड़ मिश्री मीठी, मीठी जेडी खांड,मीठी बोली मायड़ी और मीठो राजस्थान। गण गौरैयाँ रा गीत भूल्या भूल्या गींदड़ आळी होळी नै, के हुयो धोरां का बासी, क्यूँ भूल्या मायड़ बोली नै।’ बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि भाषाओं के विकास से ही किसी देश व समाज का विकास संभव है। महात्मा गांधी जी ने एक बार यह बात कही थी कोई भी देश व समाज तब तक आगे नहीं बढ़ सकता जब तक कि वह अपनी मातृभाषा को महत्व व तवज्जों न दें। उम्मीद की जा सकती है कि गूगल द्वारा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस भाषा को अनुवाद के रूप में उपलब्ध करवायें जाने के बाद अब जल्द ही इस भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में देखने की खुशखबरी मिल सकेगी।

 

सुनील कुमार महला, फ्रीलांस राइटर, कालमिस्ट व युवा साहित्यकार, उत्तराखंड।

 

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