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रामलीला की शुरुआत तुलसी दास ने की लेकिन आधुनिक युग में कम हो रहा है मंचन-मदन सुमित्रा सिंघल

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संत सिरोमणी तुलसीदास ने मुगल काल में रामचरितमानस एवं अन्य अनेक साहित्य भारतीय लोगों को दिए। संस्कृत में कोई ग्रंथ आम आदमी नहीं पढ सकता था इसलिए अवधी ( समांतर  हिंदी) में लिखे ताकि अधिकाधिक लोग पढ सके एवं इस संक्रमण काल में अपने धर्म एवं परिवार की रक्षा श्रद्धा एवं भक्ति के साथ कर सकें। उस समय अधिकाश आबादी अनपढ़ एवं अशिक्षित होने के कारण तुलसी दास ने विपरीत परिस्थितियों में रामलीला की शुरुआत की जगह जगह मंडलियाँ बनी। एक दिन ऐसा आया कि उत्तर भारत में उतरप्रदेश बिहार राजस्थान हरियाणा एवं दिल्ली में रामलीला शहर शहर गाँव गाँव में होने लगी। निदेशक कलाकार सभी पुरुष एवं युवक होते थे। धन एवं उपकरणों का जुगाड़ करने के साथ साथ 15 लोगों के लिए भोजन जुटा पाना मुश्किल था। अब धीरे धीरे आजाद भारत में भी रामलीला का मंचन होना शुरू हुआ तो प्रतिद्वंधता बढने लगी छोटी छोटी कमेटी बङी कमेटियों के सामने अप्रासंगिक होने लगी। गरीब लोग बेरोजगार होने लगे। एक दिन ऐसा भी आया कि फिल्मी कलाकारों को शामिल करने के कारण धनाभाव एवं अन्य कारणों से प्रथा खत्म होने लगी। आज भी उत्तर भारत में सिर्फ एक बार कहीं ना कही रामलीला अवश्य होती है लेकिन फिल्मों के कारण लोगों में अब आकर्षण कम हो रहा है। धार्मिक आयोजन से वर्तमान पिढी पर काफी असर पङता है जो आज पश्चिम संस्कृति में इतने गुम हो गये हैं कि चाहे तो भी अपने आप को खोज नहीं पाते।

मदन सुमित्रा सिंघल
पत्रकार एवं साहित्यकार
शिलचर असम
मो 9435073653

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