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डा. रणजीत कुमार तिवारी
सहाचार्य एवं अध्यक्ष,
सर्वदर्शन विभाग,
कुमार भास्कर वर्मा संस्कृत एवं पुरातनाध्ययन विश्वविद्यालय, नलबारी, असम
भारतीय संस्कृति में त्योहार केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि जीवन मूल्यों को जाग्रत करने वाले जागरण पर्व होते हैं। राम नवमी ऐसा ही एक पर्व है, जो न केवल भगवान श्रीराम के जन्म की स्मृति दिलाता है, बल्कि उनके आदर्शों को जीवन में उतारने का प्रेरक अवसर भी प्रदान करता है। राम नवमी, हिंदू धर्म का एक अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण पर्व है, जिसे भगवान श्रीराम के जन्मदिवस के रूप में पूरे भारतवर्ष में श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है। यह पर्व चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आता है और इसे विशेष रूप से अयोध्या में भव्य रूप में मनाया जाता है। तुलसीदास जी लिखते हैं –
नवमी तिथि मधुमास पुनीता, सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता ।
मध्य दिवस अति सीत न घामा, पावन काल लोक बिश्रामा ।।
इस दिन मंदिरों में विशेष पूजा-अनुष्ठान होते हैं, और घर-घर में रामचरितमानस का पाठ किया जाता है। कई जगहों पर भक्तजन भजन-कीर्तन, राम नाम संकीर्तन और सुंदरकांड का पाठ करते हैं। रामचरितमानस में कहा गया है – “जे सकाम नर सुनहिं जे गावहिं । सुख सम्पत्ति नानाविधि पावहिं।।” रामलीला का आयोजन भी इस दिन विशेष रूप से किया जाता है, जिसमें भगवान राम के जीवन प्रसंगों को नाट्य रूप में प्रस्तुत किया जाता है क्योंकि तुलसीदास ने कहा है – “राम जनम के हेतु अनेका, परम विचित्र एक ते एका ।” अयोध्या, जो भगवान राम की जन्मभूमि है, इस दिन दिव्य और भक्ति से ओत-प्रोत दिखाई देती है। लाखों श्रद्धालु रामलला के दर्शन के लिए यहाँ आते हैं और पवित्र सरयू नदी में स्नान कर पुण्य लाभ प्राप्त करते हैं। शोभायात्राएँ, झाँकियाँ, हवन-यज्ञ और विशेष आरतियाँ इस पर्व को और भी भक्तिमय बना देती हैं।
राम नवमी न केवल एक धार्मिक उत्सव है, बल्कि यह धर्म, मर्यादा, करुणा और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा भी देता है। यह पर्व हमें स्मरण कराता है कि भगवान राम केवल एक राजा नहीं, बल्कि आदर्श पुरुष हैं, जिनके जीवन से हम आज भी जीवन जीने की सही दिशा पा सकते हैं।
भगवान श्रीराम को हिंदू धर्म में मर्यादा पुरुषोत्तम कहा गया है, जिसका अर्थ है कि वे धर्म, सत्य, करुणा और न्याय की सर्वोच्च मर्यादा का पालन करने वाले आदर्श पुरुष हैं। वे केवल एक महान राजा नहीं थे, बल्कि एक ऐसे व्यक्तित्व के धनी थे, जिनके जीवन से कर्तव्य, समर्पण, धैर्य और त्याग की अनुपम प्रेरणा मिलती है। उनका चरित्र हर युग के लिए मार्गदर्शक रहा है, जो व्यक्ति को नैतिकता और सदाचार की ओर प्रेरित करता है। यथा – “जा पर कृपा राम की होई, ता पर कृपा करहिं सब कोई। जिनके कपट, दंभ नहिं माया, तिनके हृदय बसहु रघुराया।”
रामनवमी केवल एक जन्मोत्सव नहीं, बल्कि यह पर्व हमें भगवान श्रीराम के आदर्शों को अपने जीवन में उतारने की प्रेरणा देता है। यह दिन हमें सिखाता है कि सच्चाई, कर्तव्यनिष्ठा और धर्म के मार्ग पर चलना ही जीवन का वास्तविक उद्देश्य है। श्रद्धालु इस दिन उपवास रखते हैं, पूजा करते हैं और रामकथा का श्रवण करते हैं, जिससे उनकी धार्मिक आस्था और आध्यात्मिक जागरूकता सुदृढ़ होती है। भजन-कीर्तन, रामायण पाठ और सत्संग जैसे आयोजन मन को पवित्र करते हैं और सकारात्मक ऊर्जा से भर देते हैं।
रामनवमी पर व्रत और पूजा का विशेष महत्व है। यह न केवल आत्मसंयम और आत्मशुद्धि का प्रतीक है, बल्कि आत्मिक बल और मानसिक शांति का भी स्रोत है। इस दिन राम नाम का जाप व्यक्ति को आंतरिक शक्ति प्रदान करता है और उसे हर प्रकार की नकारात्मकता से मुक्त करता है। भक्ति-भावना से ओतप्रोत यह दिन भक्तों को भगवान के चरणों में समर्पण का विशेष अवसर देता है, जिससे उनके भीतर दया, करुणा और प्रेम जैसे दिव्य गुणों का विकास होता है। इस प्रकार, रामनवमी केवल एक धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि यह आत्मिक शुद्धि, नैतिक उत्थान और जीवन को एक उच्च दिशा देने का सशक्त माध्यम है। भगवान राम का जीवन हमें बताता है कि कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी धर्म और मर्यादा को नहीं त्यागना चाहिए। यही सच्चे आध्यात्मिक जीवन की नींव है।
रामनवमी केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि यह सामाजिक समरसता, नैतिक मूल्यों और सांस्कृतिक चेतना का सजीव प्रतीक है। यह दिन हमें न केवल भगवान राम की भक्ति में लीन होने का अवसर देता है, बल्कि उनके आदर्शों को समाज में स्थापित करने की प्रेरणा भी देता है। भगवान राम ने अपने जीवन से यह सिद्ध किया कि एक आदर्श व्यक्ति वही है, जो व्यक्तिगत हितों से ऊपर उठकर समाज और धर्म के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करता है। रामनवमी के आयोजन में जिस प्रकार लाखों लोग एक साथ भाग लेते हैं, वह सामाजिक एकता और भाईचारे की भावना को सशक्त करता है। रामलीला, शोभायात्रा, भजन-कीर्तन और सामूहिक अनुष्ठान लोगों को जोड़ते हैं, जाति-पंथ से ऊपर उठाकर एक साझा सांस्कृतिक पहचान का निर्माण करते हैं। यह पर्व सामाजिक भेदभाव को मिटाने और समानता के सिद्धांत को बढ़ावा देने का कार्य करता है।
नैतिक दृष्टि से भी रामनवमी का विशेष महत्व है। भगवान राम का जीवन नैतिकता की ऊँचाइयों का प्रतिनिधित्व करता है। उन्होंने सत्य, दया, कर्तव्य और मर्यादा को कभी नहीं छोड़ा, चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी रही हों। एक पुत्र के रूप में पिता की आज्ञा का पालन करते हुए वनवास जाना, एक राजा के रूप में प्रजा की भावना का सम्मान करते हुए सीता का त्याग करना—ये सभी उदाहरण हमें यह सिखाते हैं कि नैतिकता केवल उपदेश नहीं, बल्कि जीवन का व्यवहारिक मार्गदर्शन है।
वर्तमान समय में जब समाज नैतिक द्वंद्वों और आत्मकेंद्रित सोच से जूझ रहा है, रामनवमी हमें आत्मनिरीक्षण का अवसर देती है। यह पर्व हमें यह सोचने को प्रेरित करता है कि क्या हम अपने व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में धर्म, मर्यादा और सत्य के मार्ग पर चल रहे हैं या नहीं। राम जैसे आदर्श चरित्रों से प्रेरणा लेकर यदि हम अपने जीवन में थोड़े भी गुण आत्मसात कर लें, तो न केवल हम स्वयं बदलेंगे, बल्कि समाज में भी सकारात्मक परिवर्तन आएगा। इस प्रकार, रामनवमी एक ऐसा पर्व है जो सामाजिक सामंजस्य और नैतिक पुनर्जागरण का वाहक बनकर हमें एक श्रेष्ठ जीवन की ओर अग्रसर करता है।
रामनवमी केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह हमारे आध्यात्मिक, सामाजिक और नैतिक उत्थान का पर्व है। भगवान श्रीराम के जीवन से जुड़ा यह पावन दिन हमें धर्म, कर्तव्य, करुणा, और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। उनके आदर्श जीवन से हम यह सीख सकते हैं कि मर्यादा, संयम और न्याय के साथ कैसे जीवन को श्रेष्ठ बनाया जा सकता है। आज जब समाज भौतिकता की अंधी दौड़ में नैतिक मूल्यों से विमुख हो रहा है, तब रामनवमी जैसे पर्व हमें हमारी जड़ों से जोड़ते हैं और हमारी आत्मा को पुनः जाग्रत करते हैं। यह दिन हमें याद दिलाता है कि व्यक्तिगत जीवन में चरित्र और समाज में सहिष्णुता ही स्थायी सुख और समृद्धि का आधार हैं। जैसा कि तुलसीदास जी कहते हैं – ‘अगुण सगुण गुण मंदिर सुंदर, भ्रम तम प्रबल प्रताप दिवाकर।
काम क्रोध मद गज पंचानन, बसहु निरंतर जन मन कानन’।।
यदि हम भगवान राम के जीवन दर्शन को अपने व्यवहार में उतारें, तो निश्चित ही हम न केवल एक बेहतर इंसान बनेंगे, बल्कि समाज और राष्ट्र को भी एक नई दिशा देंगे। यही रामनवमी का सच्चा अर्थ और उद्देश्य है—एक आदर्श जीवन, एक समरस समाज और एक धर्मनिष्ठ राष्ट्र की ओर अग्रसर होना।(२)






















