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राष्ट्रधर्म के सम्पादक आनन्द मिश्र ‘अभय’

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4 दिसम्बर/जन्म-दिवस
राष्ट्रधर्म के सम्पादक आनन्द मिश्र ‘अभय’
लखनऊ से प्रकाशित हो रही राष्ट्रधर्म पत्रिका की स्थापना रक्षाबन्धन 31 अगस्त, 1947 को उ.प्र. के तत्कालीन प्रांत प्रचारक श्री भाऊराव देवरस तथा सह प्रान्त प्रचारक श्री दीनदयाल उपाध्याय ने की थी। इसके प्रथम सम्पादक थे श्री अटल बिहारी वाजपेयी, जो आगे चलकर देश के प्रधानमन्त्री बने। इसे श्री रामशंकर अग्निहोत्री, श्री भानुप्रताप शुक्ल, श्री वचनेश त्रिपाठी, श्री वीरेश्वर द्विवेदी जैसे यशस्वी सम्पादकों का साथ मिला। इसी कड़ी में एक हैं श्री आनन्द मिश्र ‘अभय’।
अभय जी का जन्म ग्राम सहजनपुर (हरदोई, उ.प्र.) में 4 दिसम्बर, 1931 (मार्गशीर्ष शुक्ल 10, विक्रमी संवत् 1988) को साहित्यप्रेमी श्री रामनारायण मिश्र ‘विशारद’ तथा श्रीमती रामदेवी के घर में हुआ था। बी.ए. तथा ‘साहित्य रत्न’ की शिक्षा पाकर वे सरकारी सेवा में आ गये तथा प्रदेश शासन में विभिन्न जिम्मेदारियाँ निभाते हुए 31 दिसम्बर 1989 को वरिष्ठ पी.सी.एस अधिकारी के पद से सेवानिवृत्त हुए। लेखन में रुचि होने के कारण सेवानिवृत्ति के बाद वे विश्व संवाद केन्द्र, लखनऊ से जुड़े। 1997 में उन्हें राष्ट्रधर्म के सम्पादन का गुरुतर दायित्व दिया गया।
अभय जी का ननिहाल कट्टर आर्यसमाजी था, जबकि पिताजी सनातनी विचारों के मानने वाले थे। अतः इन्हें हिन्दू धर्म की सभी प्रमुख धाराओं को समझने का अवसर मिला। पिता जी हिन्दी, उर्दू, संस्कृत एवं फारसी के विद्वान थे। वे 35 वर्ष तक लगातार एक ही विद्यालय में प्रधानाचार्य रहे। इस दौरान उन्होंने कभी प्रोन्नति नहीं ली; क्योंकि इससे होने वाले स्थानान्तरण से उन्हें अपने वृद्ध पिता जी की सेवा से वंचित रहना पड़ता। वे 15 वर्ष तक मासिक पत्रिका ‘शिक्षा सुधा’ और ‘शिक्षक बन्धु’ के सम्पादक रहे। अतः अभय जी को अध्ययन, लेखन व सम्पादन की कला घुट्टी में ही प्राप्त हुई।
सरकारी सेवा में अभय जी को अनेक स्थानों पर रहने का अवसर मिला। साथ में पत्नी तथा पाँच बच्चों का परिवार भी था। यदि वे चाहते, तो इस दौरान बहुत धन बटोर सकते थे; पर वे अनैतिक साधनों से सदा दूर रहे। इसका सुप्रभाव उनके परिवार पर आज भी दिखाई देता है। उनका एक ही शौक था, पुस्तक खरीदना और पढ़ना। उनके आवास बाराबंकी में 5,000 पुस्तकों का एक समृद्ध पुस्तकालय है, जिसकी सब पुस्तकें उन्होंने पढ़ी थी।
अभय जी को हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी तथा उर्दू का अच्छा ज्ञान था । सम्पादन करते समय कोई तथ्य गलत न चला जाये, इसका वे विशेष ध्यान रखते थे। देश-धर्म पर हो रहे हमलों और हिन्दुओं की उदासीनता से वे बहुत खिन्न रहते थे अपने सम्पादकीयों में वे इसके बारे में बहुत उग्रता से लिखते थे । वर्तमान चुनाव प्रणाली को वे अधिकांश समस्याओं की जड़ मानते थे । उनके लेखन एवं सम्पादन से समृद्ध साहित्य में हमारे दिग्विजयी पूर्वज, हमारे वैज्ञानिक, समय के हस्ताक्षर, शिवा बावनी, विश्वव्यापी हिन्दू संस्कृति, राष्ट्रधर्म के पथ पर, श्रीराम सेतु आदि प्रमुख हैं। उन्होंने छात्र जीवन से ही कविता, कहानी, व्यंग्य, निबन्ध आदि विधाओं में प्रचुर लेखन किया था, जो अनेक प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित हुआ थाl अभय जी उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के अनेक महत्वपूर्ण पदों पर रहे। 2003 में साहित्य मंडल (श्रीनाथद्वारा, राजस्थान) ने उन्हें ‘सम्पादक शिरोमणि’ की उपाधि दी। श्री छोटीखाटू पुस्तकालय (राजस्थान) से 2007 में दीनदयाल स्मृति सम्मान प्राप्त हुआ। वर्ष 2011 में म.प्र. शासन ने भी उन्हें सम्मानित किया। शारीरिक और मानसिक कष्टों के बीच भी दृढ़ रहते हुए वे राष्ट्रधर्म का सम्पादन कर रहे थे । 29 मार्च 2024 को लम्बी बीमारी के बाद बाराबंकी मे अपने निवास स्थान पर आपका निधन हो गया।

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