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राष्ट्र भक्ति तात्कालिक नहीं सदैव होनी चाहिए

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जब भी देश पर कोई बाहरी संकट आता है उस समय पूरे देश में राष्ट्रभक्ति की चर्चा राष्ट्रवाद के नाम से बहुत जोर पकड़ लेती है। हर तरफ यही बातें होती हैं कि इस समय सबको राष्ट्र के साथ खड़ा होना चाहिए। लेकिन प्रश्न यह है कि राष्ट्रभक्ति या राष्ट्र के साथ खड़ा होने की बात क्या तत्कालिक या कुछ समय के लिए ही होनी चाहिए? क्या बड़े और बाहरी आक्रमणों के समय ही हमे सबका राष्ट्र प्रेम जगाना चाहिए? मुझे लगता है, यह ठीक नहीं है। यह बिल्कुल उसी प्रकार है जैसे जब कोई समस्या आए तभी घर के बड़ों का सम्मान करके उनसे अपनी समस्या का समाधान मांगा जाय अन्यथा तो उनके मान अपमान की कोई चिंता ही न की जाय। यह बात सही है कि संकट के समय हमे एकजुट रहना चाहिए लेकिन केवल संकट के समय ही नहीं बल्कि मातृभूमि के प्रति प्रेम राष्ट्र के प्रति भक्ति का भाव अर्थात राष्ट्र प्रथम का दृष्टिकोण सदैव हमारे जीवन में रहना चाहिए। यदि राष्ट्रभक्ति का भाव तात्कालिक होता है तो तात्कालिक समस्याओं का निराकरण होता है परंतु राष्ट्रभाव का स्थाई होना राष्ट्र की सभी समस्याओं का समाधान होने के साथ  राष्ट्र की प्रगति करता है। सरकार की तरफ से विश्व को पाकिस्तान की आतंकी गतिविधियों एवं आतंकियों के संरक्षण की जानकारी देने जाने वाले प्रतिनिधि मंडल को लेकर प्रमुख विपक्षी दल द्वारा जिस प्रकार का व्यवहार अपने ही सांसद के लिए किया जा रहा है तथा सैन्य कार्यवाहियों से पूर्व विपक्षी नेताओं की बयानबाजी जिसको पाकिस्तान ने अंतराष्ट्रीय स्तर पर अपने लिए ढाल की तरह प्रयोग किया, अत्यन्त चिंता का विषय है। इस प्रकार के व्यवहार से ऐसा लगता है जैसे यह भारत के राजनैतिक दल हैं ही नहीं, राष्ट्रीयता का भाव स्थाई होने से व्यक्ति या समूह कभी भी राष्ट्र हित के विरुद्ध नहीं जा सकेगा। जब हम भारतमाता की जय कहते हैं तब शरीर के प्रत्येक रोम रोम में एक स्पंदन का अनुभव होता है, जो इस बात का संकेत है कि हमें किसी भी परिस्थिति में अपनी मातृभूमि के हित के अतिरिक्त और कुछ विचार नहीं करना चाहिए। हमारी राष्ट्रभक्ति का आधार हमारा इतिहास और हमारे पूर्वज हैं, जिन्होंने स्वयं को बलिदान कर इसकी रक्षा की है। अतः हमारी राष्ट्रभक्ति तात्कालिक नहीं होनी चाहिए। पक्ष विपक्ष का विषय राष्ट्र के लिए एक होना चाहिए, भारतमाता के वैभव की संकल्पना में कोई अंतर नहीं होना चाहिए, उसे प्राप्त करने की पद्धति में थोड़ी बहुत भिन्नता हो तो समस्या नहीं है लेकिन यहां तो राष्ट्र की संकल्पना को ले कर ही मत एक नहीं है।

सागर शर्मा, शिलचर

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