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राहुल गाँधी का रायबरेली चुनाव लङना एक सुझी बुझी रणनीति-मदन सुमित्रा सिंघल

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राजनीति में शाम दाम दंड एवं भेद पूरानी लीक है उस पर ही राजनीति चलती है लेकिन भाजपा में भारतीय राजनीति के चाणक्य ग्रहमंत्री अमित शाह नित नये प्रयोग से राजनितिक पंडितों को हमेशा हैरान एवं आश्चर्य चकित किया है जिसकी कल्पना एवं अनुमान मुख्यमंत्री बनने वाले तथा पर्यवक्षकों को भी नहीं होती। नये नये प्रयोग करते हुए किर्तीमान स्थापित किया है। रणनितिकार ऐसी रणनीति बनाते हैं तथा उसका पता ऐन वक्त पर खुलता है। राहुल गाँधी इन दस सालों में भले ही सांसद बन गए लेकिन भारतीय राजनीति में इसलिए अप्रासंगिक हुए कि नकारात्मक राजनीति की। हो सकता है उनके सलाहकार उन्हें उल्टी गिनती गिनवाने के लिए इस्तेमाल करने में लगे हो। दस साल में 2014 में 44 तो 2019 में सांसद बना पाये लगभग पुराने वफादार एवं दशकों तक सांसद मंत्री रहे नेता भी किनारा कर लिया क्योंकि उन्हें राजनीति में रहने के लिए एक शसक्त दल चाहिए राहुलगांधी वायनाड से चुनाव जीतने के बाद सांसद रहकर वहाँ चुनाव होने के बाद राजनीतिक गुगली छोड़ छोड़ सारे टीवी चैनलों एवं अखबारों में रायबरेली एवं अमेठी सीट को शुर्खियों में ला दिया। अंतिम दिन अमेठी से किशोरी लाल शर्मा को तो राहुल गाँधी रायबरेली से नामांकन किया। यदि जीत गए तो एक सीट स्वयं रखकर एक पर आसानी से प्रियंका गाँधी को चुनाव लङाकर तीनों माँ बेटा बेटी सांसद बन जायेंगे। यदि एक सीट हार भी गए तो सोनिया गाँधी ( राज्यसभा) राहुल गाँधी लोकसभा सांसद काबिज हो जायेंगे। उल्लेखनीय है कि प्रियंका गाँधी स्टार प्रचारक है चुनाव पहला होगा इसलिए कोई जोखिम उठाने से पहले सुझी बुझी रणनीति बनाई गई है। राजनीति में कांग्रेस पार्टी बेबस नजर आ रही है ऐसे में अपना राजनीतिक अस्तित्व बचाने के लिए फूंक फूंक कर कदम रखा जा रहा है। कुप्रबन्धन एवं कमजोर नेतृत्व के कारण कांग्रेस एक क्षेत्रीय दल की तरह छोटी सी पार्टी बन गयी है चारों तरफ पुर्व सांसद विधायक मंत्री नेता यहाँ तक की कार्यकर्ताओं में निराशा एवं हताशा है इसलिए कोई चुनाव लङना तो दूर की बात कांग्रेस में रहना नहीं चाहता।

मदन सुमित्रा सिंघल
पत्रकार एवं साहित्यकार
शिलचर असम
मो 9435073653

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