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राहु महाराज की आत्मकथा: मैं जहाँ, संकट वहां!

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मेरा नाम राहु है, लेकिन लोग मुझे कई नामों से जानते हैं—छलिया, मायावी, भटकैया, और कभी-कभी तो “मुसीबतों का बादशाह” भी! मैं परछाई ग्रह हूँ, सिर बिना धड़ जैसा जीवन जीता हूँ, और बस, इंसानों की कुंडलियों में घूम-घूमकर उनका दिमाग घुमाने का काम करता हूँ। अब सुनो मेरी आत्मकथा—कैसे मैं हर घर में अपनी रंगीन छाप छोड़ता हूँ!

प्रथम भाव (लग्न): “आत्मविश्वास या आत्ममोह?”
जैसे ही मैं किसी के पहले भाव में बैठता हूँ, वो आदमी खुद को दुनिया का बॉस समझने लगता है। अरे भाई, मैं हूँ ही ऐसा! बंदा अनजाने में नशेड़ी प्रवृत्ति का हो सकता है, कभी किसी का नहीं सुनता, और बस खुद को ही बुद्धिमान समझता है। अरे, जब मैं खुद को ही सबसे महान मानता हूँ, तो जिसने मुझे अपनाया, वो कैसे पीछे रहेगा?

द्वितीय भाव: “जेब में छेद और जुबान में जहर”
पैसों और वाणी का मालिक दूसरा भाव होता है। अब अगर मैं वहाँ विराजमान हो जाऊँ, तो समझ लो, बंदा या तो बिना पैसे के राजा बनेगा या पैसे की बर्बादी में पीएचडी की डिग्री ले लेगा। और हाँ, जुबान इतनी मीठी होगी कि लोग उसे शक की नजर से देखेंगे—”भाई, कुछ गड़बड़ है, ज्यादा ही मीठा बोल रहा है!” या फिर उल्टा, इतनी कड़वी होगी कि लोग कहेंगे, “बाप रे, ये आदमी बोलता है या कालिया नाग फुफकारता है?”

तृतीय भाव: “खतरों के खिलाड़ी!”
अब जब मैं यहाँ बैठता हूँ, तो इंसान को एडवेंचर और रिस्क लेने का ऐसा कीड़ा काटता है कि पूछो मत! बाइक चलाते वक्त हेलमेट भूल जाता है, ऊँची बिल्डिंग से सेल्फी लेता है, और कभी-कभी बिना सोचे-समझे झगड़ा भी मोल ले लेता है। डरपोक इतना की रात रात अकेले निकलने से डरे! बहादुरी और बेवकूफी में जो महीन रेखा होती है, मैं उसे मिटा देता हूँ!

चतुर्थ भाव: “घर में घुसा जासूस!”
ये भाव घर और माता का होता है, लेकिन जब मैं यहाँ बैठता हूँ, तो शांति गायब! घर में अजीब सी बेचैनी, माता के साथ या तो गहरा जुड़ाव या फिर ऐसा मनमुटाव कि “माँ, मुझे समझती ही नहीं!” और हाँ, प्रॉपर्टी से जुड़े झमेले जरूर होते हैं—या तो बंगला मिलेगा, या केस लड़ते-लड़ते चप्पल घिस जाएगी!

पंचम भाव: “आर्टिस्ट या धोखेबाज?”
अब यहाँ आकर मैं क्रिएटिविटी की गंगा बहा देता हूँ। बंदा जबरदस्त कल्पनाशील होता है, लेकिन सच और झूठ में फर्क करना भूल जाता है। प्रेम-प्रसंगों में एक्सपर्ट बन जाता है, लेकिन ऐसा कि जिसे प्यार समझे, वो फंसाना निकलता है! और बच्चों का हाल? बस, कह लो कि इनके बच्चे एलियन भी हो सकते हैं—यानी इतने अलग स्वभाव के होंगे कि खुद माता-पिता सोचेंगे, “ये हमारा बच्चा ही है ना?”

षष्ठम भाव: “दुश्मन मारेगा या मैं खुद को?”
अब जब मैं यहाँ आ बैठूँ, तो इंसान खुद ही अपनी बर्बादी का ठेका ले लेता है। बिना वजह के झगड़े करता है, कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगाता है, और कभी-कभी खुद ही अपनी सेहत खराब करने में जुटा रहता है। लेकिन मज़ेदार बात ये है कि दुश्मनों को हराने में भी उस्ताद हो जाता है—खुद तो परेशान रहेगा, पर सामने वाले की भी नींद उड़ा देगा!

सप्तम भाव: “सांसारिक जीवन का मंथन”
अब शादी का घर यानी सप्तम भाव में मैं बैठूँ, तो समझो विवाह जीवन रोलर कोस्टर बन जाएगा। कभी जीवनसाथी ऐसा मिलेगा कि हर दिन रोमांचक मूवी लगेगी, तो कभी ऐसा कि “हे भगवान, यही गलती क्यों की?” और बिजनेस? उसमें भी उतार-चढ़ाव ऐसे होंगे कि खुद शेयर मार्केट भी शर्मा जाए!

अष्टम भाव: “रहस्य का पिटारा”
अब यह स्थान रहस्य और गूढ़ ज्ञान का होता है। यहाँ बैठकर मैं इंसान को खोजी पत्रकार बना देता हूँ, या फिर ऐसा कि हर चीज में साजिश दिखे! “कोई मुझे नुकसान पहुँचाने की कोशिश कर रहा है!”—ऐसा हर वक्त सोचेगा। और हाँ, जीवन में अचानक बदलाव होंगे, वो भी ऐसे कि बस रातोंरात राजा या रंक बन सकता है!

नवम भाव: “धर्म में मिक्स मसाला”
यहाँ मैं आकर धर्म और दर्शन को मसालेदार बना देता हूँ। बंदा एक दिन धार्मिक बनेगा, और अगले दिन बोलेगा, “सब ढोंग है!” कभी किसी गुरु का भक्त बनेगा, तो कभी बोलेगा, “मैं खुद गुरु हूँ!” यात्राएँ खूब होंगी, लेकिन ऐसी कि टिकट कटा के कहीं और निकल जाए!

दशम भाव: “करियर में ट्विस्ट”
करियर का भाव! यहाँ आकर मैं इंसान को ऊँचाइयों पर पहुँचाने की ताकत रखता हूँ, लेकिन सीधा रास्ता नहीं दिखाता। कभी अचानक प्रमोशन दिलवाता हूँ, तो कभी ऐसा ट्विस्ट डालता हूँ कि आदमी कहे, “ये मैंने क्या कर दिया?” बॉस को खुश करना मुश्किल होता है, लेकिन अजीब किस्म के आइडिया ज़रूर आते हैं।

एकादश भाव: “लॉटरी लग सकती है!”
अब यहाँ तो धन लाभ का घर है, और मैं इसमें थोड़ी मस्ती डाल देता हूँ। अचानक पैसा मिलेगा, लेकिन या तो टिकेगा नहीं, या किसी अजीब स्रोत से आएगा। “बिना मेहनत के कमाई!”—ये सपना हो सकता है, लेकिन साथ में फंसने का खतरा भी रहेगा!

द्वादश भाव: “खर्चा ही खर्चा!”
अब आखिरी भाव में मैं बैठूँ, तो बंदा कल्पनाओं में खो जाएगा। विदेश जाने के सपने देखेगा, लेकिन टिकट खरीदने से पहले ही खर्चे खत्म कर देगा! कभी आध्यात्मिकता की ओर बढ़ेगा, तो कभी बिना मतलब के चीज़ों में पैसा उड़ाएगा। संन्यास लेने की इच्छा होगी, लेकिन नए जूते खरीदने से भी पीछे नहीं हटेगा!

अंतिम शब्द:
देखा? मैं जहाँ जाता हूँ, वहाँ कुछ न कुछ “धमाल” जरूर करता हूँ! लोग मुझसे डरते हैं, लेकिन सच कहूँ तो मैं बस “मिर्च-मसाला” डालने का काम करता हूँ। बिना मेरे, कुंडली एक सीधी-सादी फिल्म बन जाएगी—और भला कोई बिन मसाले की फिल्म देखना चाहता है क्या?
तो अगली बार जब आपकी कुंडली में मेरा नाम दिखे, डरने की जरूरत नहीं! बस, समझ लो—”अब ज़िंदगी में कुछ मज़ेदार होने वाला है!

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