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रूह का  जायका

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रवायतों की ज़ंजीरों के उस परे
अदावतों की लकीरों से बिन डरे
शिकायतों के मजीरों को दूर धरे
जब “वो” शाम ढले, तेरे साये तले
रात भर धुंए का साया बन ढलना चाहता हूँ
अपनी रूह का जायका चखना चाहता हूँ
बंदिशों के ताने बाने  तोड़
रंजिशों के सब  बहाने मोड़
ख्वाहिशों के हर  ठिकाने छोड़
जब “वो” बात चले, तेरे लबों तले
गुमनाम किस्सा बन बहना चाहता हूँ
अपनी रूह का  जायका चखना चाहता हूँ
वक़्त की नब्ज़ पकड़
रूह की गिरह जकड
जहन की तज के अकड़
जब “वो” स्याह रात ,जर्द चाँद को लगाए गले
भीगता सन्नाटा बन यहाँ वहां बरसना चाहता हूँ
अपनी रूह का जायका चखना चाहता हूँ
– विश्वास राणा ‘GYPSY’
मो. 79832 48606

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