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लघुकथा समय का प्रभाव डोली शाह

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रानी के माता-पिता का देहांत बचपन में ही हो गया था, जिससे बड़े भाई ने उसका पालन- पोषण बड़ी कठिनाइयों से किया था। पढ़ाई के दौरान रानी की दोस्ती सिंटू नामक लड़के से हो गई । धीरे-धीरे दोनों की दोस्ती प्यार में बदल गई। दोनों ने शादी के बंधन की योजना बनाई पर परिवार विरोध में खड़ा हो गया । घंटों यादों में बिताते लेकिन लड़की की जाति अलग होने के कारण किसी भी रूप में रिश्ते के लिए सहमति नहीं मिली।
       अब भाई ने फौरन अपने ही मित्र के छोटे भाई से उसका विवाह तय करा दिया। दोनों ओर विवाहों की शहनाई बज रही थी और रानी आंसू की मानो गंगा बहा रही थी।
     भाई बोला– इतना क्यों रो रही हो बहन? सामने हो जब मन हो तब आ जाना। परन्तु  भाई को कुछ अंदेशा सा हुआ ।   क्या करूं मैं मजबूर था, मैं तुम्हारी इच्छा  पूरा नहीं कर पाया। हम ऐसे समाज  में रहते हैं, यहां यदि तुम कुछ गलत करती है तो तुम्हारे भतीजे को भी दिक्कत होती और परिवार की मर्यादा तो खत्म होती ही!  मुझे माफ कर दो बहन ..
             वक्त बिताता गया, उसके पति  कुछ दोस्तों के  संगत  में पड़ कर नशे की आदि बन गया जिससे रोज परिवार में क्लेश होने लगा। दोनों की दूरियां बढ़ती गई अब उसे अकेलापन काटने को दौड़ता। वह घंटो बैठ  पुरानी यादों के सहारे अपना मन बहलाती।
      अब भाई का बेटा बड़ा हो गया। वह कॉलेज में किसी दूसरी जाति की लड़की से प्यार कर बैठा। पहले तो पिता ने विरोध किया लेकिन बेटे की खुशी देख दोनों का विवाह के लिए राजी हो गए।
        रानी को भी नियंत्रण था। वह गई।  एक दिन रानी उदास मन से भाई के पास जाकर बैठी
 …….क्या बात है इतनी उदास! जाना है इसीलिए?
….. हां, जाना तो है
….. कैसी लगी दोनों की जोड़ी?
….. अच्छा है सदा खुश रहे।
 …… अब मेरी जिम्मेदारी खत्म ,पर तुम  इतनी उदास क्यों ?
……… नहीं, कुछ पुरानी बातें याद आ गई !
          रानी अपने परिवार के हालात का विवरण देते हुए बोली —जिससे  मैं प्रेम करती थी उससे विवाह होता तो शायद मेरी जिंदगी आज ऐसी ना होती । रोज-रोज का क्लेश ना होता ,क्या फायदा हुआ जाति देखकर विवाह करने का जब  खुशी ही ना मिले!
        वह तिखे स्वर  व्यक्त करते हुए— क्या जाति ,धर्म सब कुछ हम लड़कियों के लिए ही है? लड़कों के लिए कुछ भी नहीं…
         ……मैं मजबूर था बहन मुझे माफ कर दो, मैं तुम्हारी जिंदगी का गुनहगार हूं । शायद तुम सही कह रही हो, तुम्हारी शादी भी अगर मैंने तुम्हारे मन से कराया होता तो आज तुम बहुत खुश रहती और सोच कर मैं भी….
     डोली शाह
  हाइलाकांदी, असम

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