लोकतंत्र या परलोकतंत्र • सुनील शर्मा, शिलचर
लो जी बंगाल के चुनाव निपट गये, एक पार्टी निपट गई और दूसरी निपटा रही है। बलात्कार, हत्या और आगजनी को एनज्वाय किया जा रहा है, केन्द्र मौन है? ऐसा ही हुआ होगा जब नादिर शाह ने दिल्ली पर आक्रमण किया था, उस समय का राजा बूढ़ा और अशक्त था, असहाय था। आज का राजा सशक्त है परन्तु मौन व्रत की शपथ लेकर बैठा हुआ है। जहाँ व्यवस्था का भय समाप्त हो जाये, वहीं से अराजकता और अनर्थ आरम्भ होते हैं। केन्द्र का नियम है कि समस्या स्वयं ही अपना समाधान हुँढे। समस्या को झाड़ पोंछकर धूप में लटका दिया जाता है, प्रतीक्षा की जाती है कि पृथ्वी के पांच तत्व उसे छिन्न-भिन्न कर दें। या फिर समस्याओं को रबड़ की तरह खींचा जाता है, जितनी खींच जाये उतना ही अच्छा है। बीजेपी के कार्यकर्ता धड़ाधड़ या तो ऊपर जा रहे हैं या फिर नीचे बैठे भाजपा को कोस रहे हैं।
रामगढ़ के निवासियों सुनो…. तुम्हें गब्बर के ताप से एक ही व्यक्ति बचा सकता है, वह है स्वयं गब्बर क्योंकि
ससुरे जय और वीरू चिर निद्रा में लीन है। जान है तो जहान है, जिंदा रहे तो सत्ता भोगेंगे, विधायक और सांसद मुंह में तिनका दबाये, नेत्र झुकाये, माँ टीएमसी के आफिस की तरफ नजर गढ़ाए बैठे हैं। कृपा हुई तो अवश्य ही दीर्घायु के साथ साथ कुछ सत्ता के टुकड़े भी मिल जायेंगे। देश में एक और कश्मीर जन्म लेने की प्रतीक्षा में है। पार्टी के कार्यकर्ता और सांसद कश्मीरी पंडित बनने की तरफ अग्रसर हैं या तो पार्टी परिवर्तन या फिर पलायन….। यही सिलसिला जारी रहा तो पांच वर्ष के पश्चात पुरातत्व विभाग के अधिकारी बंगाल में बीजेपी के अवशेष खोद खोद कर निकालेंगे। लुंगीधारी घुसपैठिया संस्कृति प्रदेश में अपनी वंशवृद्धि में संलग्न है। एक एक घर में असंख्य वोटर आधार कार्ड और वोटर आईडी से लैस होकर देश की सुरक्षा और अस्मिता को पलीता लगा रहे हैं।
वैसे प्रदेश सरकार भी इनकी फसल की पैदावार बढ़ाने के लिए खाद-पानी उपलब्ध करवा रही है। देश की कमजोर कड़ी चिकन नैक कब दब जाये और चिकन तंदूर में डाल दिया जाए कोई गारंटी नहीं है। असंख्य तंदूर जल रहे हैं, देश के गद्दार रोटियां सेंक रहे हैं। व्यवस्था सो रही है या सोने का नाटक कर रही है, मुर्शिदाबाद में अपना आफिसर खोलने का किसी पार्टी में भी साहस नहीं है, प्रत्येक बीमारी का इलाज आयुर्वेद और होमियोपेथी में नहीं है, कभी कभी डाक्टर को सर्जरी के लिए औजार भी उठाने पड़ते हैं। केन्द्रीय नेतृत्व की अवमानना होना और केन्द्र का चुप्पी साध लेना अकर्मण्यता ही नहीं, कायरता भी है। अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं पर इस तरह की जंगली घास की पैदावार बढ़ना और प्रदेश सरकार द्वारा उसकी खेती करना चिन्ता और सुरक्षा का मामला है।
भारत की भूतपूर्व सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस को किसी की बुरी नजर खा गई है। उतने बुरे दिन आ गये हैं कि पाकिस्तान जैसे देश जो कि स्वयं मोक्ष के द्वार पर खड़ा अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहा है, से सत्ता वापसी की उम्मीद लगाये बैठी है। बहुविवाहित राजा दिग्विजय सिंह जी द्वारा भविष्यवाणी की गई है कि यदि पार्टी कभी जनता की भूल से सत्ता में आ गयी तो कश्मीर में धारा ३७० फिर से लागू कर देगी। अच्छा सपना है, सपने देखने का अधिकार सबको है, परन्तु क्या हमारा लोकतंत्र इतना कमजोर हो गया है कि उसकी आड़ लेकर कोई भी गद्दार अपने स्वार्थ को देश की गलियों में नंगा नाचने की अनुमति दे दे…। यह केन्द्र की सहनशीलता है या समस्याओं से भागने का प्रयास ! इस तरह की लटकती रहने वाली समस्याएं कभी कभी इलाज की कमी के कारण स्वयं को समाधान समझने लगती हैं।
बुझती पार्टी के उज्जवल चिराग, पार्टी के कफन की आखिरी कील सुश्री पप्पु गांधी जी पता नहीं कब बचपन छोड़ कर जवानी की दहलीज पर कदम रखेंगे? कब उनके पैर फिसलेंगे और वह शादी करेंगे? पार्टी की विडंबना यह है कि उनकी परिपक्वता की प्रतीक्षा करते करते पार्टी आधी रह गयी है। लगता है कि वह बचपन से सीधा बुढ़ापे में प्रवेश करेंगे। जब वह मुख से शब्दों का उच्चारण करते हैं तो प्रतीत होता है कि जैसे उन्होंने किसी पाकिस्तानी मदरसे से देश प्रेम का प्रशिक्षण लिया है। अक्सर वह किसी पाकिस्तानी शिविर या चीनी तम्बू के नीचे पाये जाते हैं। अच्छे अच्छे सुझाव देते हैं, माता ने अच्छे संस्कार दिये हैं।
हम सब लोकतंत्र की भेड़ें हैं सत्ताधारी भगवा और विपक्ष हरी घास खिलाता है। सिर्फ लेवल का अन्तर है , सभी पार्टियों के डिब्बों के अन्दर माल एक ही है। सब बिकता है, देशभक्ति, देशप्रेम अपने स्वार्थ के आगे सब बौने हैं।
• सुनील शर्मा, 9435171922, लेखक राष्ट्रीय स्तर के व्यंगकार व स्तंभकार हैं।