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लोकसभा चुनाव में मुद्दे कम आरोप प्रत्यारोप का जोर सामाजिक समरसता के लिए अप्रिय

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लोकसभा चुनाव 2024 में भारत के आम चुनावों में मुस्लमानों पर आधारित अधिक है जब भी चुनाव होते हैं तो 15 से 20 प्रतिशत देश के मुस्लिम वोटों पर नजर भारतीय जनता पार्टी को छोड़कर कमोबेश हर पार्टी की उन पर रहती है। भाजपा कांग्रेस एवं कुछेक राजनीतिक दलों को छोड़कर अधिकाधिक क्षेत्रीय दल वहाँ के अपने वोट बैंक पर केंद्रित रखने के लिए अपने परंपरागत वोटों के साथ अल्पसंख्यक के वोटों पर निर्भर रहते हैं।  लेकिन भाजपा ने सबका साथ सबका विकास, जम्मू कश्मीर में 370 एवं 35ए , तीन तलाक़ हटाकर तथा समान नागरिक संहिता की गुगली छोड़ कर मुस्लिम वोटों में भी सेंधमारी की है। इन से प्रभावित महिलाओं के अलावा आम लोगों को उज्जवला गैस शौचालय नल से जल आवास बिजली देकर भी अपने पाले में किया है लेकिन सारा चुनाव मुस्लिम समुदाय के इर्दगिर्द ही खेला जा रहा है इसको तुष्टिकरण तो कहीं संतुष्टिकरण नाम दिया जा रहा है। आजादी के बाद लोकसभा चुनाव पांच साल में कभी कभी मध्यावधि भी हुए लेकिन इतने मुखिर कभी नहीं हुये किंतु इस समय तो सिर्फ एक ही मुद्दा बना हुआ है। राजनीति में धुर्वीकरण से चुनाव के समिकरण बदलने की कलाकारी कोई नयी नहीं है क्या चुनाव मुद्दों के आधार पर नहीं लङे जा सकते क्या चुनाव में मिठ्ठी बोली से व्यंग्य से नहीं जिते जा सकते? फिर भी चुनाव में ऐसे किया जाता है कि शायद यही आखिरी चुनाव,है यही आखिरी संबोधन है। आरोप प्रत्यारोप चुनाव में क्या लोकतंत्र में पक्ष विपक्ष द्वारा लगाये जाते हैं लेकिन हद  पार करने से देश की समरसता एवं भाईचारा आमने सामाजिक हो जाता है।

मदन सुमित्रा सिंघल
पत्रकार एवं साहित्यकार
शिलचर असम
मो 9435073653

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