नई दिल्ली, 30 अप्रैल: हाल ही में संसद द्वारा पारित व 8 अप्रैल 2025 से प्रभावी वक़्फ़ संशोधन अधिनियम, 2025 को लेकर देशभर में कई अदालतों में याचिकाएं दायर की गई हैं, जिनमें इस अधिनियम की वैधता को चुनौती देते हुए इसके प्रभाव को स्थगित करने की मांग की गई है।
इन याचिकाओं के जवाब में सरकार ने प्रारंभिक प्रति-हलफ़नामा दायर करते हुए अंतरिम राहत देने का कड़ा विरोध किया है। सरकार ने अपने पक्ष में पूर्व में वक़्फ़ अधिनियम, 1995 तथा उसके 2013 के संशोधनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं का हवाला दिया है। उन मामलों में भी अदालतों ने कोई अंतरिम रोक नहीं दी थी, और आज भी कई याचिकाएं उच्च न्यायालयों तथा सर्वोच्च न्यायालय में लंबित हैं — वह भी बिना किसी अंतरिम राहत के।
सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की अप्रैल 2022 की एक महत्वपूर्ण टिप्पणी का भी उल्लेख किया है। उस समय न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने यह स्पष्ट किया था कि किसी कानून की संवैधानिक वैधता केवल सैद्धांतिक या काल्पनिक आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती। अदालत ने यह भी कहा था कि ऐसी चुनौती तभी विचार योग्य होती है जब कोई वास्तविक पीड़ित पक्ष हो और याचिका में ठोस तथ्य प्रस्तुत किए गए हों।
सरकार ने न्यायपालिका से आग्रह किया है कि वह पहले से स्थापित न्यायिक सिद्धांतों के अनुरूप अनुशासन और एकरूपता बनाए रखे और वर्तमान याचिकाओं में अंतरिम राहत प्रदान न करे। सरकार का मानना है कि किसी भी कानून की संवैधानिक समीक्षा केवल ठोस तथ्यों और वास्तविक शिकायतों के आधार पर ही होनी चाहिए, न कि सैद्धांतिक आशंकाओं पर।
– प्रेरणा भारती दैनिक संवाददाता





















