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विदेश प्रायोजित अलगाववादी आंदोलन अर्थात तथाकथित नक्सलवाद– 

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पूर्वोत्तर राज्यों में अपनी प्राचीन संस्कृति एवं वैदिकीय सभ्यता तथा संस्कृति की ज्योति जगाने में अग्रिम एवं सर्वप्रथम स्थान रखने वाले मणिपुर की मैतेयी ही नहीं अपितु विष्णुप्रिया समुदाय के प्रति हो रही हिंसात्मक दमन की घटनाओं ने आज समूचे भारत वर्ष को कश्मीर की धारा 370 की स्मृति दिला दी। जैसा कि आप सभी कदाचित् न जानते हों इस हेतु यह आलेख लिखने की मुझे अपनी वैदिकीय विचारधारा के कारण प्रेरणा मिली अतः प्रेरणा भारती के द्वारा आपके समक्ष यह प्रस्तुत कर रहा हूँ–प्राचीन काल में धर्मसभाओं के द्वारा नाना मतावलम्बियों द्वारा जन सामान्य को उचित मार्गदर्शन मिले इस हेतु शास्त्रार्थ  कुम्भ का आयोजन किया जाता था,इसी परम्परा के अंतर्गत बृहदारण्यकोपनिषद के अनुसार सम्पूर्ण अखण्ड आर्यावर्त के चक्रवर्ती सम्राट जनक-विदेह द्वारा आयोजित प्रयागराज के महाकुंभ में आज से हजारों हजार वर्ष पूर्व प्रकाण्ड विद्वानों की महासभा में महर्षि आरुणी, बभ्रूवाहन, वशिष्ठ, उद्दालक, गार्गी जैसे सैकड़ों विद्वान एवं विदूषीयों को अपनी शास्त्रज्ञता द्वारा सर्वोच्च सर्वज्ञ पदयोग्य घोषित किये जाने के उपरान्त पूर्वोत्तर के मणिपुर क्षेत्र निवासी महर्षि याज्ञवल्क्य ने दस-सहस्त्र गायों को पुरस्कार स्वरूप प्राप्त किया था, एवं जिस मार्ग से उन गायों को लेकर वो आये ! वह मार्ग गायों की पदधूली से इतना आकर्षित हुवा की आज भी उसे -“गौहाटी” अर्थात गायों के हाटने(चलते-चलते जाने) के नाम से जाना जाता है।

और उन्हीं महर्षि याज्ञवल्क्य  की सहधर्मिणी विदूषी मैत्रेयी की सन्तानें यहाँ की तद्कालीन मातृ-प्रधान परम्परानुसार मैतेयी के नाम से जानी जाती हैं ।

नागकन्या उलोपी जिनका पाणिग्रहण अर्जुन ने किया था वो भी मैतेयी समुदाय की थीं, इसका प्रमाण बृहदारण्यकोपनिषद से लेकर महाभारत, पद्मपुराण, ब्रम्हवैवर्त पुराण, श्रीमद्भागवत इत्यादि में उल्लेखित भी है, मैं आश्चर्यचकित हो जाता हूँ कि ॠग्वेदादि वेदों का उल्लेख भारतीय संविधान में होते हुवे भी आज मैतेयी और विष्णुप्रिया समुदाय के लोगों को वहां के घुसपैठिये धर्मान्तरण कराने वाले यूरोप और ब्रिटेन-बंगलादेश और खाडी के एजेंट फाॅदर और चादर वाले लोग आज वहां–“बाहरी लोग” होने का दुष्प्रचार कर भ्रम फैला रहे हैं  ?

आ विचार करें आदिवासी, मूल निवासी कौन हैं ?

क्या कश्मीर में पाकिस्तान से आकर बसे लोग कश्मीरी हैं ?

भारत के लोगों के लिये कश्मीर उनका अपना घर है, यह धारा 370 हटाकर भारत वर्ष ने स्पष्ट संदेश समूचे विश्व को दे दिया है।

ये तो निश्चित है कि आज के भी मणिपुर, नागालैण्ड, मेघालय को देखते हुवे कोई सूरदास भी यही कहेगा कि यह वनाच्छादित क्षेत्र प्राचीन काल से ही आदिवासी समाज का रहा है, और वह प्राचीन आदिवासी समाज मैतेयी, विष्णु प्रिया, नगा, कूकी समुदाय है ।

जिस प्रकार एक हाँथ में रोटी और दूसरे में बाइबिल लेकर ,एक हाँथ में शमशेर और दूसरे हाँथ में कुरान लेकर इस्लाम और क्रिश्चियनीटी का प्रचार और प्रसार समूचे भारत ही नहीं अपितु समूचे विश्व के आदिवासी क्षेत्रों में किया गया यह सभी जानते हैं ।

आज ये स्पष्ट हो रहा है कि चर्च के संरक्षण में आये फाॅदरों और बंगलादेश से आये म्यांमार  के लुटेरों ने मणिपुर के भोले भाले आदिवासी, गिरीवासी, मूल निवासी मैतेयी लोगों के विरुद्ध ! धर्मान्तरित होने से भ्रष्ट मानसिकता के तथाकथित नक्सलवादी अर्थात शाहीन बाग के लोगों द्वारा  तथाकथित आदिवासियों के नामपर हिंसा फैलाकर उन्हें ही नहीं अपितु समूचे पूर्वोत्तर के हिंदू समाज को आज यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या हम हिंदीभाषी और बंगाली, विष्णु प्रिया, मैतेयी, अहोमी, कछारी आदि-आदि लोग यहाँ अर्थात पूर्वोत्तरी राज्यों के मूल निवासी नहीं हैं ?

क्या यहाँ के मूल निवासी म्यांमार और बंगलादेश से आये हरी चादर वाले तथा अपनी संस्कृति को चंद रोटी और बोटी के लिये छोड़ कर क्रिश्चियन बन जाने वाले लोगों को आप मूल निवासी कहोगे ?

आज भारत सरकार यह भलीभांति जानती है कि जिन्होंने रोटी के लिये अपना धर्म बदल दिया वे कल डाॅलर के लिये अपनी राष्ट्रीयता भी बदल देंगे।

आज समूचे पूर्वोत्तर के हिंदूस्थानी समाज अर्थात हमारे समाज के प्रत्येक घटक को अर्थात प्रत्येक असमिया, बंगाली, हिन्दी भाषी समाज को मणिपुर के मूल-निवासी अर्थात मैतेयी और विष्णु प्रिया समुदाय के साथ उसी प्रकार खडे होने की आवश्यकता है जिसप्रकार आज केन्द्रीय सरकार उनपर हो रहे अत्याचार के विरुद्ध खडी है–“आनंद शास्त्री”

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