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विदेश मे पइसा झारऽता केहू   (हास्य कविता)

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रंबल मे भेड़-बकरी चारऽता केहू
माजरा मे दुध-दही गारऽता केहू
एम्प्लोमेंट वीज़ा तऽ भागे से मिले
विजिट पऽ आके अंडा पारऽता केहू।
सउदी मे जाके फँसलन फालाना
दुबई मे दिरहम झारऽता केहू।
बाग-बगऽइचा सँवारऽता केहू
लोहा मे वेल्डिंग मारऽता केहू
फरसटेशन तऽ इंहवा सबके भितर
मउगी के दिन-रात तारऽता केहू।
कुवैत मे जाके रोवे फालाना
कतर मे रेयाल झारऽता केहू।
मिलल फोरमैनी दहाड़ऽता केहू
होत भोरे रोड बहारऽता केहू
अरब के पइसा आ पुअरा के धाह
लहोके से अपने के जारऽता केहू।
जान के बाजी लगाई के देखीं
इराक मे डॉलर झारऽता केहू।
पटी-पट्टीदरवन के जारऽता केहू
बिल्डिंग पऽ बिल्डिंग गाढ़ऽता केहू
वीजा आ टिकट के फेरा मे भइया
बियाज पऽ कारजा काढ़ऽता केहू।
खबर आइल हऽ मस्कट से आजे
ओमानी रेयाल झारऽता केहू।
दुबई के माजा मारऽता केहू
दु पैक पर कापड़ा फाड़ऽता केहू
हमरा तऽ बावन पुदीना बोआला
होत भोरे शेखी बघारऽता केहू।
कतर के पानी रास ना आइल
बहरीनी दिनार झारऽता केहू।
      शम्श जमील
        (दुबई से)

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