बर्दवान, 11 अगस्त: बर्दवान के रमज़ान अकादमी में 5 अगस्त की शाम बराक घाटी की कवयित्री, संपादक व प्रकाशक मिता दासपुरकायस्थ के सम्मान में एक विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया। अकादमी के कर्ताधर्ता, प्रबन्धक व शिक्षक रमज़ान अली ने उनका स्वागत करते हुए स्मृति चिह्न भेंट किया।
इस अवसर पर आयोजित साहित्यिक-सांस्कृतिक कार्यक्रम में प्रो. अपूर्व चट्टोपाध्याय ने प्राचीन मंदिरों की वास्तुकला और उनके ऐतिहासिक महत्व पर चर्चा करते हुए कहा कि “इन सौ वर्ष पुराने मंदिरों में इतिहास के अमूल्य दस्तावेज़ छिपे हैं। यदि समय रहते इन्हें संरक्षित नहीं किया गया तो ये धरोहर नष्ट हो जाएंगी।”
सांस्कृतिक व्यक्तित्व देवीप्रसाद भट्टाचार्य ने चिंता जताते हुए कहा कि आजकल तथाकथित शिक्षित माता-पिता बच्चों को अंग्रेज़ी माध्यम में पढ़ाते हैं, ‘मम्मी-डैडी’ बुलाना सिखाते हैं, जिससे मातृभाषा बंगला का अपमान हो रहा है। बच्चों की भाषा में अशिष्टता और मिश्रण बढ़ गया है। उन्होंने आग्रह किया कि बंगला भाषा को किसी भी रूप में अपमानित न किया जाए।
संपादक व सामाजिक कार्यकर्ता मिनती गोस्वामी ने कहा कि बंगला माध्यम के स्कूलों में शिक्षकों की कमी के कारण बच्चों को अंग्रेज़ी माध्यम में पढ़ने के लिए मजबूर किया जाता है, जो एक राजनीतिक मुद्दा भी है। उन्होंने मांग की कि बैंक की पासबुक और अन्य आधिकारिक दस्तावेज़ बंगला में भी उपलब्ध हों।
पूर्व प्रधानाचार्य मजीद शेख ने कहा कि बंगला भाषा हर जगह हमले का शिकार हो रही है। बराक घाटी में भी लगातार बंगला पर आक्रमण हो रहा है और वहां के बांग्लाभाषी लोग वर्षों से मातृभाषा के लिए आंदोलन कर रहे हैं।
लेखक रमज़ान अली ने विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में विविधता लाने की मांग करते हुए कहा कि “सिर्फ कोलकाता के लेखक ही श्रेष्ठ नहीं हैं। बांग्लादेश, त्रिपुरा और बराक घाटी में भी उच्च कोटि का साहित्य रचा जा रहा है। बंगला साहित्य के इतिहास में पश्चिम बंगाल के बाहर के लेखकों को भी स्थान मिलना चाहिए।”
मुख्य अतिथि मिता दासपुरकायस्थ ने कहा — “मैं बराक घाटी की उस मिट्टी की बेटी हूँ, जहाँ मातृभाषा के लिए दुनिया की पहली महिला शहीद कमला भट्टाचार्य ने प्राण न्यौछावर किए। एक साथ 11 लोगों ने शहादत दी और इसके बाद भी कई लोग बंगला भाषा की रक्षा में शहीद हुए। बंगला भाषा संघर्ष के बल पर पीढ़ी दर पीढ़ी जीवित रहेगी और अन्य भाषाओं के शब्दों को आत्मसात कर और भी समृद्ध होगी।”
कार्यक्रम में शेख जाने आलम और मोहम्मद शाहिदुल्लाह ने अपनी कविताओं का पाठ किया। धन्यवाद ज्ञापन नाट्य समीक्षक, अभिनेता व आवृत्ति शिक्षक ललित कोणार ने किया। उद्घाटन संगीत रोज़ीना बेगम ने प्रस्तुत किया।
इस अवसर पर स्वरूप मुखर्जी समेत बर्दवान के कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे।





















