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वैश्विक स्तर पर हिन्दी का बढ़ता प्रभाव ।– डॉ. गरिमा संजय दुबे 

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भाषा वह सेतु है जो एक मनुष्य को दूसरे से जोड़ती है | मनुष्य और पशुओं में यदि भेद चिन्हित किए  जाएं तो दो भेद मुख्य हैं, भाषा और बुद्धि | भाषा का ज्ञान, उसका व्याकरण उसका लिखित स्वरूप मनुष्य के विकास की सबसे महत्वपूर्ण घटना है |
विभिन्न क्षेत्रों के मनुष्यों की विभिन्न भाषाओं का विकास किस तरह हुआ वह बहुत सघन शोध का विषय है और इस पर निरंतर शोध हो रहे हैं | मुख्य बात यह कि किसी भी तरह की समानता एक समूह के लोगों को जोड़ने का कार्य करती है, इसलिए कालांतर में जब जनपद फिर राज्य, फिर राष्ट्र की अवधारणा विकसित हुई तो भाषा क्षेत्रों के साम्य को भी भोजन और आचार विचार की तरह महत्वपूर्ण माना गया | भाषा ही वह तत्व है जो सबसे पहले हमें जोड़ता है \, परदेश में अपनी भाषा बोलने वाले से लगाव होना बहुत स्वाभाविक है | यह कहते हुए अत्यंत दुख होता है कि स्वतंत्रता के 78 वर्षों के पश्चात भी हिन्दी राजभाषा ही है, राष्ट्रभाषा नहीं |
किंतु क्या हुआ यदि कागजों में हिन्दी राजभाषा है, भारत के प्रत्येक प्राणी के लिए वह राष्ट्रभाषा ही है | हिन्दी भारत के मन की भाषा है, वह हमारे लोक जीवन, पर्व, गीत, संगीत, मनोरंजन, बौद्धिक  चिंतन  की भाषा है | इसलिए उसका महत्व किसी कागज़ से निर्धारित नहीं किया जा सकता |
लगभग एक अरब चालीस करोड़ भारतीय, और लगभग पच्चीस करोड़ अप्रवासी भारतीय, इसी के साथ दक्षिण एशिया के तमाम देश भी जोड़ लिए जाएं जहां हिन्दी बोली, समझी जाती है तो लगभग दो अरब लोगों के जीवन से सीधा सीधा संबंध रखने वाली भाषा बन जाती है हिन्दी ।
वैश्वीकरण के इस दौर में अगर हम बात करें तो केवल बाज़ार ही वैश्विक नहीं हो रहे हैं, बल्कि बाज़ार के साथ साथ संस्कृति, भाषा, भूषा और भोजन का भी वैश्वीकरण हो रहा हैं। यदि यह कहा जाए कि आधुनिकता के इस दौर में सांस्कृतिक वैश्वीकरण,  भाषाई वैश्वीकरण भी हो रहा है तो यह कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी । विभिन्न संस्कृति के लोग एक दूसरे से जुड़ रहे हैं काम कर रहे हैं, और भारत चूंकि एक बहुत बड़ी जनसंख्या वाला देश है, तो जितनी कई देशों की  जनसंख्या नहीं होती, उनकी सम्मिलित जनसंख्या से अधिक भारतीय पूरे विश्व में फैले हुएं हैं, इस आदान प्रदान में वे अपने साथ अपनी भाषा और संस्कृति भी लेकर गए हैं । पूरे विश्व के लगभग 200 विद्यालयों, विश्व विद्यालयों में मौजूद हिन्दी विभाग, हिन्दी पुस्तकालय और निरंतर होने वाले शोध व साहित्यिक सांस्कृतिक उत्सव इस बात का प्रमाण है कि हिन्दी का प्रभाव पूरे विश्व में अनुभव किया जा रहा हैं । अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अब अपनी बात अंग्रेजी में कहने की बाध्यता नहीं है, अपनी बात को दूसरों तक पहुंचाने के लिए किसी अनुवादक या दुभाषिए की अनिवार्यता का समाप्त होना इस बात का प्रमाण है  कि हिन्दी का व्यवहार क्षेत्र बढ़ रहा है ।
हिन्दी के बढ़ते प्रभाव ने आवश्यक होने पर हिन्दी से अंग्रेजी में अनुवाद के कई यंत्रों की उपलब्धता बढ़ाई है । एक गांव में तब्दील होती, दिन ब दिन छोटी होती दुनिया में सोशल मीडिया पर न केवल हिन्दी बल्कि अन्य भारतीय भाषाओं में अपनी बात कहने सुनने की सुविधा का उपलब्ध होना, हिन्दी के टंकण और अनुवाद में होने वाली तकनीकी समस्याओं पर सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री का अपने साधनों में निरंतर सुधार करना, ताकि हिन्दी लिखना बोलना सरल हो सके, हिन्दी के बढ़ते प्रभाव को बताता है ।
आज भारत इस स्थिति में है कि अपने साथ व्यापार करने वालों को हिन्दी जानने की आवश्यकता पर बल देता है और पूरे विश्व में फैले भारतीय व विदेशी भी इसे सहर्ष स्वीकार करते हैं।
यद्यपि अपने लोक व्यवहार, बोलचाल की भाषा के रूप में उसका दायरा निरंतर बढ़ रहा है किंतु प्रशासनिक, वैधानिक, व्यवसायिक, न्यायालयिन, संसदीय, कानूनी कार्यवाहियों का दस्तावेजीकरण अभी भी अंग्रेज़ी में होता है, हिन्दी में वैकल्पिक तौर पर; तो हिन्दी अभी भी लिखित स्वरूप में राजभाषा अधिक है, अपने मौखिक स्वरूप में वह अवश्य राष्ट्रभाषा, अन्तराष्ट्रीय भाषा बनती जा रही है । विध्यालयों महाविध्यालयों में इसके वैकल्पिक होने की विसंगति पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए व इसे अनिवार्य विषय के तौर पर भाषा ज्ञान हेतु पढ़ाया जाना चाहिए |
विदेशों में रहने वाले हज़ारों साहित्यकार, पत्रकार, शिक्षक भारत के बाहर हिन्दी के प्रचार में संलग्न हैं, किंतु अपने ही देश में हिन्दी कहीं कहीं विरोध का सामना करती है, जो दुर्भाग्य पूर्ण है । भारत विविधताओं का देश है और किसी भी राष्ट्र की एक सर्वमान्य भाषा होनी चाहिए, हिन्दी राष्ट्रभाषा के सभी मापदंडों को पूरा करती है इसलिए

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