‘हताशा के सुर !’
लो जी अब तो हद ही हो गई, हम तो बेकार में पप्पू गांधी को अविकसित बयानों के लिए दोषी ठहरा रहे थे, यहाँ तो पूरी पार्टी ही पटरी से उतरी हुई है। एक से बढ़कर एक नवरत्न पार्टी में जड़े हुए हैं। मुँह खोलते हैं तो पता ही नहीं चलता कि कितनी मात्रा में और किस दिशा में मुँह खोलना है। योग दिवस के अवसर पर सभी दल अपने शरीर और इंद्रियों को जागृत कर रहे थे तो पप्पू एंड पार्टी के एक वैज्ञानिक नेता मनु सिंघवी ने अपना शोध पत्र पेश कर दिया। आप अल्लाह के नाम का उच्चारण करें तो डबल फायदा होगा, एक तो शरीर स्वस्थ होगा, दूसरा धर्म निरपेक्षता का स्टिकर लग जाएगा। सुंदर विकल्प है अब देश के धर्मनिरपेक्ष हिन्दू भी योग का लाभ उठा पायेंगे। बेचारा ओम शब्द एक कोने में खड़ा मुस्कुरा रहा है, अपनी संतानों की परमपिता के प्रति इतनी वितृष्णा। दोष कांग्रेस पार्टी का नहीं है, बेचारे अपने वंश और नस्ल के प्रति अभी तक अनभिज्ञ हैं। भूल गये हैं कि वह माँ भारती के वंशज हैं या कुतुबुद्दीन ऐबक के ? उनका आदर्श अकबर महान् है या महाराणा प्रताप का भाला? बेचारे अभी तक आजादी का श्रेय चरखे को दे रहे हैं फांसी के फंदे को नहीं। अब इस उलझी हुई पार्टी और उजड़े हुए परिवार में किसी शिशु के मस्तिष्क की विकास यात्रा कैसी होगी सर्वविदित है। बेचारे ओम और अल्लाह अपनी संतानों की नौटंकी देख कर व्यथित हैं। कहीं भाग्य की मारी अधमरी इंडियन नेशनल कांग्रेस को श्राप ही न दे दे। पार्टी की हताशा चरमसीमा पर है। पार्टी के कुछ उत्साही तत्व बछड़े की मम्मी के घर तक पहुँच गये हैं कि हे गौमाता क्या करें तुम्हारे पुत्र का सीरम वैक्सीन बनाने के लिए प्रयोग हुआ है। बेचारी गौमाता अभी तक सदमे में है। यह उनका बछड़े के प्रति स्नेह है या गाय की पूंछ पकड़ कर बैतरणी पार करने का प्रयास। पता नहीं पार्टी का कहीं कोरोना से गुप्त समझौता तो नहीं गया जो यह वैक्सीन को बीजेपी समझ रहे हैं। लगता है आगामी चुनावों में कोरोना और कांग्रेस बीजेपी तथा वैक्सीन गठबंधन करेंगे।
इसमें समस्त दोष मोदी जी और योगीजी का जो अतीत की भूलें सुधार कर कांग्रेस को सलीब का रास्ता दिखा रहे हैं। बेचारे विपक्षी दल हताशा का शिकार हैं, दूर दूर तक सत्ता का नामोनिशान नहीं दिखाई देता। गुवाहाटी की गौशाला के गोधन की तरह इधर-उधर घूम रहे हैं। पिछले दिनों देश के बुझे हुए और लगभग राख में परिवर्तित हुए चिरागों ने राष्ट्रमंच की स्थापना की। सभी महानुभाव उम्र की आखिरी सीढ़ी पर खड़े होकर अपनी मुर्दा पड़ी महत्वाकांक्षाओं को हवा देकर प्राण फूंक रहे थे। उनकी सत्ता की लालसा देखकर बेचारा धर्मराज भी असुरक्षित हो गया। उसने झट से चित्रगुप्त से कह कर इन्हें दीर्घायु का वरदान दे दिया, मोक्ष के द्वार बंद कर दिये। अगले चुनाव के लिए महागठबंधन का क्रिया कर्म भी चल रहा है। सभी दल अपने अपने प्रधानमंत्री के साथ गठबंधन में जुड़ने का प्रयास कर रहे हैं। हो सकता है, जुड़ भी जायें क्योंकि चुनावों के पश्चात एक दूसरे की अर्थी को कंधा देने के लिए चार कंधे तो चाहिए। पप्पू एंड पार्टी को बाहर रखा गया है, क्योंकि पार्टी को जीत चाहे मिले न मिले अपना प्रधानमंत्री बनाने की बुरी आदत है। माननीय मुलायम सिंह यादवजी ने कोरोना के लिए बीजेपी का टीका लगवा लिया है। अब हो सकता है कि उनमें भविष्य में हिन्दू होने के लक्षण उभर आये। शायद अब वह कभी किसी मंदिर में भी दिख जायें। मजबुरी है यादव वंश के होकर भी बेचारे अपने इष्ट देव से दूर हैं। बेटा अखिलेश यादव अल्पसंख्यकों की एजेंसी लेकर बैठा हुआ है। जब से योगीजी आये हैं, एजेंसी की बिक्री और गुणवत्ता प्रश्नचिन्हों के घेरे में है। वैक्सीन का सेवन करने का मन बना चुके हैं क्योंकि यह टीका अब बीजेपी का नहीं बल्कि केन्द्र सरकार है। फिर भी सावधान रहना चाहिए कहीं उनकी मनोवृत्ति न बदल जाये वह हरे की बजाय भगवा तम्बू के नीचे न पहुंच जाये।
यह देश की त्रासदी है कि राष्ट्र के पिता और चाचा धागे और गांठे ऐसे उलझा कर गये हैं कि आज तक देश उन्हें खोल रहा है। ताजमहल और लालकिले को राष्ट्र की धरोहर कहने वाले अतीत के शिक्षामंत्री दक्षिण भारत के भव्य मंदिरों से शायद अनभिज्ञ थे। शायद देश का इतिहास लिखने वाले वर्तमान के धर्मनिरपेक्ष तत्वों के पूर्वज थे।
• सुनील शर्मा, 9435171922