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शंकरदेव एजुकेशन एंड रिसर्च फाउंडेशन द्वारा आयोजित पहला प्रागज्योतिषपुर साहित्य महोत्सव संपन्न

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गुवाहाटी, 1 अक्टूबर: शंकरदेव एजुकेशन एंड रिसर्च फाउंडेशन द्वारा आयोजित पहला प्रागज्योतिषपुर साहित्य महोत्सव साहित्य प्रशंसकों की अभूतपूर्व  प्रतिक्रिया के बीच 1 अक्टूबर, 2023 को संपन्न हुआ।
समापन समारोह में प्रागज्योतिषपुर साहित्य महोत्सव की आयोजन समिति के अध्यक्ष सुप्रसिद्ध साहित्यकार फणींद्र कुमार देब चौधरी एवं कार्यकारी अध्यक्ष सौम्यदीप दत्ता द्वारा प्रख्यात साहित्यकार डॉ. नहेंद्र पादुन एवं युवा साहित्यकार श्री नयनज्योति सरमा को संयुक्त रूप से “प्रागज्योतिषपुर साहित्य पुरस्कार” से सम्मानित किया गया ।
  पुरस्कार ग्रहण करते हुए प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. नहेंद्र पादुन ने अपने साहित्यिक जीवन को याद करते हुए कहा, ”मिसिंग मेरी मातृभाषा है और असमिया मेरी मान्य भाषा है।”  असमिया में कविता लिखने के बावजूद समाज में मिसिंग कवि के रूप में जाने जाने से इनकार करने वाले सुकबी पाडुन ने स्पष्ट किया कि वह एक असमिया कवि हैं जो असमिया भाषा में लिखते हैं।  हालाँकि, उन्होंने इस बात पर अफसोस जताया कि भले ही राज्य के जानजाति लेखकों ने असमिया भाषा में साहित्य लिखा है, लेकिन किसी भी असमिया भाषी लेखक ने अब तक किसी भी जनजाति भाषा में साहित्य नहीं लिखा है। इस समारोह में पुरुस्कृत युवा साहित्यकार श्री नयनज्योति सरमा ने  कहा की  “इस पुरस्कार ने उन्हें पूर्ण मन से साहित्य की देखभाल करने के लिए प्रेरित किया।
 समापन समारोह में बोलते हुए, प्रमुख लेखक और अनुवादक श्री दिगंत बिस्वा सरमा ने पश्चिम में रचित साहित्य के युगों की चर्चा की और उत्तर-आधुनिक युग की अवधारणा की कड़े शब्दों में आलोचना किया ।  अनुवाद साहित्य के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित सुप्रसिद्ध लेखक श्री सरमा अफसोस जताते हैं कि इस तरह की पश्चिमी सोच ने भारतीय संस्कृति को सनातनी मूल्यों से दूर कर दिया है।  उन्होंने दोहराया कि प्रागज्योतिषपुर साहित्यिक महोत्सव, जो “इन सर्च ऑफ़ रूट्स” (जड़ों की खोज में) आदर्श वाक्य के साथ शुरू हुआ, जो बहुत महत्वपूर्ण है।
 नागालैंड विश्वविद्यालय के चांसलर डॉ. समुद्र गुप्ता कश्यप ने अपने भाषण में कहा कि भारत की पवित्र भूमि पर साहित्य का सृजन उस समय हुआ जब पश्चिमी सभ्यता वाले देशों में मानव मुख की भाषा का निर्माण नहीं हुआ था।  पिछले 700-800 वर्षों में, असम ने बख्तियार खिलजी के आक्रमण, अहोमों के आगमन, प्राकृतिक आपदाओं, विद्रोहों, युद्धों आदि को देखा और अनुभव किया है। आचार्य डॉ. समुद्र गुप्ता कश्यप ने नई पीढ़ी से आह्वान किया की वे अपनी जड़ों में ख्यात भाषा और संस्कृति की खोज कर उसे विकसित और प्रचारित करें ।
 इस साहित्य उत्सव के आखिरी दिन के प्रथम सत्र में  प्रसिद्ध कथाकार श्री अतनु भट्टाचार्य के निर्देशन में रचनात्मक लेखन पर एक कार्यशाला आयोजित की गई।  इस कार्यशाला में बड़ी संख्या में साहित्य एवं रचनात्मक लेखन में रुचि रखने वाले नई पीढ़ी के लेखकों ने भाग लिया।  अंतिम सत्र के सत्राधिकारी श्री  श्री पीतांबर देव गोस्वामी ने पुरंदर बरुआ के तत्वावधान में “भारत के नव-वैष्णववाद और शंकरदेव” विषय पर सत्र चर्चा में भाग लेकर प्रागज्योतिषपुर साहित्य महोत्सव की भव्यता को चार चांद लगाया ।  चर्चा में भाग लेने वाले प्रसिद्ध व्यक्तियों में से एक रबींद्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय, होजाई के कुलपति डॉ. अमलेंदु चक्रवर्ती ने असम क्षेत्र के साहित्यिक अवदान पर विस्तार से अपनी बात रखी ।
 दोपहर में आयोजित बहुभाषी काव्य सम्मेलन में प्रदेश की विभिन्न भाषाओं के कई लोकप्रिय कवियों ने भाग लिया।  कवि-फिल्म समीक्षक अपराजिता पुजारी द्वारा आयोजित इस सम्मेलन में कवि सौरव सैकिया, हनमीजी हांसे, डॉ. इंदुप्रभा देवी, मदार ज्योति, धीमान बर्मन और डॉ. संजय दास ने भाग लिया।  बहुभाषी काव्य सम्मेलन के बाद प्रसिद्ध लेखिका अनुराधा शर्मा पुजारी के साथ एक अंतरंग संवाद सत्र हुआ, जिसे सोनपुर कॉलेज की सहायक प्रोफेसर डॉ. निजारा हजारिका ने प्रस्तुत किया।
 विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से संपन्न प्रागज्योतिषपुर साहित्य महोत्सव , 2023 की सफलता ने साहित्य प्रेमियों में काफी उम्मीद जगाई है।  प्रचलित धारणा के विपरीत विशेषकर असम में साहित्यिक आयोजनों में दर्शकों की उपस्थिति कम होती है, लेकिन प्रागज्योतिषपुर साहित्य महोत्सव के तीनों दिन कार्यक्रम में साहित्यिक प्रशंसकों की उपस्थिति उल्लेखनीय रही। प्रागज्योतिषपुर साहित्योत्सव ,2023 असम के साहित्यिक क्षेत्र में ज्ञानवर्धक आशा के साथ संपन्न हुआ ।

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