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( आदरणीय मोदी जी के दृढ़ निश्चय और कुशल नेतृत्व को समर्पित )
०८/०५/२०२५
लाल जो रेखा है ललाट की — वह रक्त नहीं है-प्रतिज्ञा है,
हर बिंदी में जलता है भारत — यह नारी की भक्ति-यज्ञा है।
श्रृंगार नहीं है,शस्त्र है यह — जन-जन के विश्वास का स्वर,
जहाँ प्रेम की वाणी के स्वर है — वहीं उठे जयघोष प्रखर।
यह सिंदूर अब केवल सौभाग्य की डोरी ही नहीं रही,
यह रणभूमि में जल रही भारत की आत्मा का ज्वाल सही।
हर वीर माँ के आँचल से जब एक सपूत निकलता है,
तिरंगा लेकर वह रण में शौर्य-सूर्य सा जलता है।
सीमा पर जब सिंहनाद सा गर्जन हो — घर की लोरी फ़ौलाद बने ,
और चूड़ी की खन खन से उमगे— बस क्रांति रग उन्माद बने ।
अब इस भारत की नारी -बस आँसू नहीं बहाती है,
वो अश्रुओं में संचित अग्निबाण की शक्ति बहुत जगाती है।
ओ सिंदूर! तू अब हमारी चिट्ठी चाहत भी है , बंदूक भी है,
तू रक्षा का अकाट्य कवच भी है -शत्रु की भूचाल सज़ा भी है।
‘ऑपरेशन सिंदूर’ है साथी -अब केवल रणनीति नहीं,
यह भारत माँ की है आत्म-जागृति — अब है अग्निपंक्ति वही।
जो ललाट को छेड़ दिया — वो भस्म हुआ-यही उद्घोष हमारा है,
अब भारत चुप नहीं बैठेगा — यह वार्निंग-अंतिम सन्देश हमारा है।
“जय हिन्द” का नारा है अब -शंखनाद इस रण में ,
हर दिल संकल्पित है — भारतगान बजे हर धड़कन में ।
सीमा हो या सिंदूर —दोनों एक ही प्रतीक- दुश्मन की हद की लीख,
“शांति के उपासक हैं हम — पर ताक़तवर भी है -ये राष्ट्र-वीर वाणी की सीख!”
आज सिंहासन पर बैठा है — जो साधक भी, सेनानी भी है,
वह नरेंद्र है, नव भारत का — वह तपस्वी, वह ज्योति-ज्वाला भी है।
उसके शब्दों में गूंजता है — ‘न झुकना, न थमना’ का संकल्प,
उसकी दृष्टि में है विकसित भारत — और राष्ट्र प्रथम का विकल्प।
ना किसी ताज की लालसा — ना निज जीवन की ढाल लिए,
वो चला अकेला भी, जब ज़रूरत पड़ी — भारत का भाल लिए।
अब हर सिंदूर कहे — हम मोदी के पथ के राही हैं,
हम स्वाभिमानी, हम आत्मनिर्भर — भारत माँ के सिपाही हैं।
ऐ देश -शपथ लो आज — ये सिंदूर न बुझे, न झुके, न रुके,
जहाँ भी हो भारत की ललकार — वहीं उठे हम सब एकसाथ, निडर, अपराजेय!
जय हिन्द! वन्दे मातरम्!
हरेन्द्र नाथ श्रीवास्तव
मौलिक व स्वरचित
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