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*’शब्दाक्षर’ की शाम, गीत-गजलों के नाम*

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11, काशीपुर रोड, कोलकाता-2, के काव्य कक्ष में रविवार की संध्या को ‘शब्दाक्षर’ पश्चिम बंगाल इकाई का मासिक काव्य समारोह सोल्लास संपन्न हुआ। काव्य-आयोजन में स्थापित रचनाकारों के अतिरिक्त नवांकुर रचनाकारों ने भी एक से बढ़ कर एक सराहनीय रचनाएं सुना कर उपस्थित श्रोताओं को भावविभोर कर दिया। कार्यक्रम की अध्यक्षता राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष ‘शब्दाक्षर’ दयाशंकर मिश्रा ने की तथा संचालन राष्ट्रीय संगठन मंत्री विश्वजीत शर्मा ‘सागर’ ने किया। ‘शब्दाक्षर’ के राष्ट्रीय अध्यक्ष रवि प्रताप सिंह प्रधान अतिथि के रूप में मंचासीन थे। ‘शब्दाक्षर’ पश्चिम बंगाल के प्रदेश अध्यक्ष कवि जय कुमार ‘रुसवा’ के कुशल नेतृत्व में कार्यक्रम के आयोजक एवं संयोजक ‘शब्दाक्षर के’ राष्ट्रीय सलाहकार तारक दत्त सिंह’ ने कार्यक्रम के प्रारंभ में अतिथियों का स्वागत किया। मंजू बैज की सरस्वती वंदना से काव्य अनुष्ठान का विधिवत शुभारंभ हुआ।
कवि रवि प्रताप सिंह की ग़ज़ल का मतला अभी पिछले सप्ताह ही गुजरे स्वतंत्रता दिवस की याद दिला गया –
मुल्क की खातिर मिटे कुछ नौजवाँ ऐसे भी थे,
पत्थरों  पर  दर्ज  हैं गहरें निशान  ऐसे  भी थे।
राष्ट्रीय उपाध्यक्ष कृष्ण कुमार दुबे  का शेर यूँ रहा-
आए  वो  मेरी बज़्म में  आकर  चले  गए।
जलवा हुनर का अपने दिखा कर चले गए।
कवि जय कुमार ‘रुसवा’ ने दर्शन से ओतप्रोत मतला पढ़ा-
सूना सा दिल ख़ुद ही हूँ
दिल में दाखिल ख़ुद ही हूँ
गुलशन हूँ, वीराना हूँ
अपनी महफ़िल ख़ुद ही हूँ।
‘शब्दाक्षर’ पश्चिम बंगाल के अर्थ मंत्री हीरा लाल साव की पंक्तियां कुछ इस तरह से थीं-
कुरेदती रही ताउम्र मेरे दर्द के अलाव को,
बुझने न दिया लौ को तलबगार मेरे अपने।
नंदू बिहारी जी की पंक्तियों में सद्भाव का संदेश था-
दीपक की इस लौ में ईर्ष्या और द्वेष जले,
सब भेदभाव निकले खुशियों का प्रदेश पले।
नजीर राही ने बराबरी-गैर बराबरी को बहुत खूबसूरत अंदाज में अपने शेर में बयां किया-
माँगते रहते हैं दिन रात दुआएं कुछ लोग,
सब दुआओं में असर हो ये जरूरी तो नहीं।
राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जीवन सिंह ने अपनी रचना में किताबों को महत्व देने का आह्वान किया-
सूरज ढल रहा है अंधेरा जाएगा,
दिए में तेल डालकर रख।
जिंदगी खत्म हो रही मौन दस्तक दे रहा,
कुछ किताबें सहेज कर रख।
वदूद आलम आफ़ाकी का शेर संदेशपरक था-
वो कड़वी बात भी मीठी लगी लहजा बदलने पर,
समुंदर खारा होता है नदी खारी नहीं होती।
दया शंकर मिश्रा की पंक्तियों में एक नयी बात दिखी-
दोस्तों से दिल मेरा भरता नहीं,
दुश्मनों की दोस्ती भी चाहिए।
इसके अलावा काव्य पाठ करने वाले कवि-कवयित्रियों में-सहर मज़ीदी, आतिश रजा, फिरोज अख्तर सिद्दीकी, सुधा मिश्रा द्विवेदी, ईरम अंसारी, त्रिलोकी प्रसाद, किरण कुमारी सिंह, ज्योति साव एवं सचिव सुरेंद्र सिंह शामिल थे। शाम 5 बजे से रात 9 बजे तक चले इस सरस काव्य-अनुष्ठान में उपस्थित सुधी श्रोताओं में संतोष सिंह, संजय सिंह, दिनेश सिंह, गिरिजा शरण सिंह, के अतिरिक्त नवांकुर कवयित्रियां आंचल साव, पुष्पा कुमारी, काजल साव, गुड़िया गुप्ता, रानी झा, अमृता कुमारी, अंजली राय, गुंजा रवि दास, स्नेहा सोनकर, अदिति गोंड, तानिषा सोनकर, मरियम फिरदौस एवं पायल कुमारी साव भी काव्य-विधाओं की शिक्षा प्राप्त हेतु उपस्थित थीं। कार्यक्रम आयोजक तारक दत्त सिंह के धन्यवाद ज्ञापन के साथ इस मनोरंजक एवं शिक्षाप्रद काव्य-अनुष्ठान का समापन हुआ।

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