शिलचर, 6 अप्रैल: शिलचर के ऐतिहासिक अन्नपूर्णा मंदिर में हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी चैत्र मास की वसंत नवरात्रि के अवसर पर वैदिक विधि-विधान से दुर्गा पूजा का आयोजन किया गया है। जहां शरद ऋतु में शारदीय दुर्गा पूजा बड़े धूमधाम से होती है, वहीं वसंत ऋतु में चैत्र मास में बसंती दुर्गा पूजा का विशेष धार्मिक महत्व है। यह बसंती पूजा ही आदिकालीन दुर्गा पूजा मानी जाती है, जो शारदीय पूजा से पहले की परंपरा है। धार्मिक मान्यता है कि श्रीराम ने भी रावण वध से पूर्व अकाल बोधन के रूप में देवी दुर्गा की आराधना वसंत ऋतु में ही की थी।
नवरात्रि के नौ दिनों तक सनातन धर्म के अनुसार भक्तगण उपवास रखकर देवी दुर्गा की उपासना करते हैं। बंगाली समाज में इस बसंती नवरात्रि को विशेष रूप से बसंती पूजा के रूप में मनाया जाता है।
अन्नपूर्णा मंदिर के पुरोहित आनंद प्रसाद दूबे ने बताया कि विशेष रूप से अष्टमी और नवमी के दिन मंदिर में भारी संख्या में भक्तों की उपस्थिति देखने को मिलती है। इन दिनों कुमारी पूजा और यज्ञ जैसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान आयोजित होते हैं, जो इस मंदिर की सैकड़ों वर्षों पुरानी परंपरा का हिस्सा हैं। उन्होंने यह भी बताया कि मंदिर की आधारभूत संरचना मजबूत नहीं होने के बावजूद श्रद्धालुओं की आस्था और उपस्थिति अत्यंत सराहनीय होती है।
स्थानीय विधायक दीपायन चक्रवर्ती ने कहा कि हिन्दू धर्म में यह मान्यता है कि शरद ऋतु में शारदीय पूजा और वसंत ऋतु में बसंती पूजा होती है, लेकिन दोनों ही अवसरों पर देवी दुर्गा की आराधना की जाती है। उन्होंने कहा कि वसंत नवरात्रि के दौरान अन्नपूर्णा पूजा करने से अन्न की कभी कमी नहीं होती।
उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि शिलचर के इस ऐतिहासिक अन्नपूर्णा मंदिर की ख्याति पूरे बराक घाटी एवं असम में फैली हुई है, और यह मंदिर यहां के सनातनी श्रद्धालुओं के लिए एक आस्था का केंद्र है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में नदी कटाव के कारण मंदिर को नुकसान पहुंचा है। उन्होंने शिलचरवासियों से मंदिर की रक्षा और इसके ढांचे के विकास के लिए सहयोग की अपील की और आश्वासन दिया कि वे स्वयं भी मंदिर के संरक्षण और विकास के लिए निरंतर प्रयासरत रहेंगे।
इस अवसर पर मंदिर समिति के सदस्य देवीप्रसाद दूबे, सुपर्णा तिवारी सहित अनेक श्रद्धालु उपस्थित थे।





















