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शिलचर के पर्यटन कार्यालय में बंगला भाषा की अनुपस्थिति! केवल उपेक्षा, या फिर एक संवैधानिक अवमानना? — राजू दास

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शहर के बीचों-बीच खड़ा एक मूक लेकिन तीव्र भाषायी प्रश्नचिह्न—शिलचर पर्यटन विकास विभाग के सामने एक विशाल हरे रंग का साइनबोर्ड, जिस पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा है—OFFICE OF THE TOURISM DEVELOPMENT OFFICER, SILCHAR, CACHAR – 788001
नीचे असमिया में भी अनुवाद किया गया है—পৰ্যটন উন্নয়ন বিষয়া কাৰ্যালয়।
लेकिन एक भाषा वहाँ से पूरी तरह गायब है—हमारी और आपकी मातृभाषा बंगला।
नहीं, यह केवल एक अनुवाद की भूल नहीं है। यह वर्षों से चली आ रही एक गहरी प्रशासनिक उदासीनता का प्रतिबिंब है। जब इस क्षेत्र में 80% से अधिक लोग बंगला भाषी हैं, तब भी पर्यटन जैसे एक महत्वपूर्ण सरकारी विभाग में बंगला की अनुपस्थिति को महज ‘त्रुटि’ कह कर टाल देना अनुचित होगा।
19 मई 1961—जिस दिन पुलिस ने गोली चलाकर 11 भाषाई सेनानियों की हत्या कर दी थी, जो अपनी मातृभाषा बंगला के अधिकार के लिए सत्याग्रह पर बैठे थे।आज भी यह शहर उस बलिदान को मौन श्रद्धांजलि देता है।लेकिन सवाल उठता है—क्या वह श्रद्धा केवल एक कैलेंडर तिथि तक ही सीमित है?
अगर नहीं, तो फिर आज भी क्यों बंगला को सरकारी संस्थानों में वह सम्मान नहीं मिल रहा जिसका वह हकदार है?
भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में बंगला एक मान्यता प्राप्त भाषा है। राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त होने के बावजूद, राज्य के इस पर्यटन कार्यालय में उसका कोई प्रयोग नहीं—यह केवल प्रशासनिक चूक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक बहिष्कार, भाषायी भेदभाव, और एक समुदाय की आत्म-परिचय को नकारने का प्रयास है।
बराक घाटी में बंगला की संवैधानिक स्थिति सिर्फ कागजों पर क्यों है? प्रशासनिक व्यवस्था में उसकी छाप क्यों नहीं है?
यह ऐसा प्रतीत होता है मानो सरकार केवल औपचारिक रूप से बंगाली जनमानस को संतुष्ट करने के लिए बंगला को अनिवार्य कहती है, लेकिन ज़मीनी हकीकत में उसकी कोई जगह नहीं।
हाल ही में मुख्यमंत्री ने यह घोषणा की थी कि बराक घाटी में सरकारी आदेश बंगला में जारी किए जाएंगे। लेकिन हकीकत में कितने विभागों ने इस फैसले को लागू किया?
यह भी एक बड़ा सवाल बनकर खड़ा है।
क्या बराकवासियों को बार-बार केवल विरोध और प्रदर्शन का ही सहारा लेना पड़ेगा?क्या इस भाषायी भेदभाव के विरुद्ध कोई कानूनी कार्रवाई संभव नहीं?
स्थानीय जनप्रतिनिधि क्यों चुप हैं?वे अपने ही घर में अपनी मातृभाषा का अपमान क्यों नहीं देख पाते?
क्या शहीदों का बलिदान केवल माला, मोमबत्ती और सोशल मीडिया पोस्ट तक सीमित रह जाएगा?
बंगला सिर्फ एक भाषा नहीं—यह एक सम्पूर्ण समुदाय की अस्मिता, अधिकार और सम्मान का प्रतीक है।
उसके प्रति यह उपेक्षा एक गंभीर प्रश्न है—जिसका उत्तर केवल सरकार नहीं, हम सभी को देना होगा।

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