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शिलचर में आदिवासी चाय समुदाय का विशाल धरना—एसटी दर्जा, भूमि अधिकार और दैनिक मजदूरी बढ़ोतरी की मांग तेज

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चंद्रशेखर ग्वाला, शिलचर, 20 नवंबर: बराक घाटी में लंबे समय से उपेक्षा झेल रहे आदिवासी और चाय समुदायों के अधिकारों को लेकर आज शिलचर में अभूतपूर्व जनसमूह उमड़ा। नरसिंहटोला मैदान में हजारों श्रमिक, छात्र-छात्राओं और विभिन्न संगठनों के सदस्यों ने एकजुट होकर अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा, भूमि स्वामित्व अधिकार और मजदूरी वृद्धि की मांग करते हुए जबरदस्त धरना प्रदर्शन किया।
इस आंदोलन का नेतृत्व ऑल असम आदिवासी छात्र संघ (AASSA) और बराक वैली आदिवासी संघ ने संयुक्त रूप से किया। इसमें बराक चाय श्रमिक यूनियन, बराक घाटी चाय युवा कल्याण समिति, काछाड़ जिला करम पूजा केंद्रीय समिति, सांस्कृतिक सम्मेलन, आदिवासी छात्र संघ समेत अनेक जनजातीय संगठनों ने भाग लिया।
मुख्यमंत्री के नाम विस्तृत ज्ञापन सौंपा
सुबह 10 बजे संगठन प्रतिनिधियों ने मुख्यमंत्री डॉ. हिमंत बिस्वा शर्मा के नाम एक विस्तृत ज्ञापन सौंपा, जिसमें उनकी प्रमुख मांगे स्पष्ट रूप से दर्ज थीं—
मुख्य मांगें
1. बराक घाटी के आदिवासी एवं पूर्व चाय जनजाति समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा।
2. प्रत्येक श्रमिक परिवार को भूमि पट्टा प्रदान कर भूमि स्वामित्व का अधिकार।
3. दैनिक मजदूरी 228 रुपये से बढ़ाकर 551 रुपये किए जाने की मांग।
4. ब्रह्मपुत्र और बराक घाटी में चाय श्रमिकों के लिए समान मजदूरी ढांचा लागू करना।
ज्ञापन की प्रतियां राज्य श्रम विभाग और केंद्र सरकार के जनजातीय कार्य मंत्रालय को भी प्रेषित की गईं।
धरना स्थल पर गूंजे नारे, पैदल मार्च से माहौल गर्म
ज्ञापन सौंपने के बाद करीब 11 बजे से नरसिंहटोला मैदान में माहौल जोशीला हो उठा। हजारों प्रदर्शनकारियों ने नारेबाज़ी करते हुए शांति-मार्च निकाला। प्रदर्शनकारी प्लेकार्ड और बैनर लेकर अपनी मांगों के समर्थन में आवाज बुलंद कर रहे थे। नारे मुख्यतः सामाजिक न्याय, आर्थिक सुरक्षा और संवैधानिक अधिकारों को लेकर केंद्रित थे।
“दशकों के योगदान के बाद भी हक से महरूम” — दिलीप पनिका
संगठन के अध्यक्ष दिलीप पनिका ने कहा—
> “बराक घाटी के चाय श्रमिक और आदिवासी समुदाय दशकों से असम की अर्थव्यवस्था, संस्कृति और श्रम क्षेत्र में रीढ़ की हड्डी की तरह योगदान दे रहे हैं। इसके बावजूद आज भी उन्हें अनुसूचित जनजाति का संवैधानिक दर्जा नहीं मिला है, जबकि बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में यही समुदाय पहले से एसटी की मान्यता प्राप्त कर रहा है।”
उन्होंने कहा कि भूमि स्वामित्व की कमी के कारण आदिवासी श्रमिक सामाजिक व आर्थिक असुरक्षा में जीने को मजबूर हैं। इसलिए प्रत्येक परिवार के लिए भूमि पट्टा एक आवश्यक कदम है।

संगठनों की चेतावनी—“मांगें नहीं मानी गई तो होगा उग्र आंदोलन”

आज के शांतिपूर्ण प्रदर्शन के दौरान सभी संगठनों ने एक स्वर में चेतावनी दी कि—
> “यदि सरकार ने जल्द निर्णय नहीं लिया, तो आने वाले दिनों में हम प्रदेशव्यापी बड़ा आंदोलन करने को बाध्य होंगे।”
बराक चाय श्रमिक यूनियन के कार्यकारी अध्यक्ष अजीत सिंह, पदाधिकारी सह साधारण सम्पादक रवि नुनिया व बाबुल नारायण कानु तथा आदिवासी छात्र संघ के अन्य नेताओं ने भी आंदोलन को सदैव जारी रखने की बात कही। धरना प्रदर्शन में उपस्थित प्रमुख व्यक्तियों में असम ट्राइवल स्टुडेंट्स एसोसिएशन (आसा)के अध्यक्ष सिलास मुण्डा, बराक वैली आदिवासी संघ के अध्यक्ष दिलीप पानिका, बराक चाय श्रमिक यूनियन के सह साधारण सम्पादक खीरोद कर्मकार, बिपुल कुर्मी, सम्पादक सुरेश बड़ाइक, सह सम्पादक दुर्गेश कुर्मी, बराक चाय युव कल्याण समिति के साधारण सम्पादक गंगा सागर (बीजू)कर्मकार आदि शमिल थे।
बराक घाटी में नई उम्मीद—आदिवासी समुदाय में जागरण की लहर
इस विशाल धरना प्रदर्शन ने बराक घाटी के आदिवासी समाज में एक नई ऊर्जा और उम्मीद जगाई है। समुदाय का कहना है कि यह आंदोलन सिर्फ अधिकारों की लड़ाई नहीं, बल्कि सम्मानजनक, सुरक्षित और न्यायपूर्ण जीवन की मांग है।
क्षेत्र में चर्चा है कि यह आंदोलन आने वाले दिनों में सरकार की नीतियों और जनजातीय अधिकारों पर निर्णायक प्रभाव डाल सकता है

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