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शिव को दूध क्यों चढ़ाते हैं

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भगवान शिव को क्यो दूध चढ़ाया जाता हैं, इसका क्या है धार्मिक और वैज्ञानिक कारण –  डा. बी. के. मल्लिक
सावन के महीने को शिव भगवान का प्रिय महिना माना जाता हैं। सावन के महीने में शिवलिंग पर दूध चढ़ाया जाता है। शिवलिंग पर दूध चढ़ाने के पीछे कई धार्मिक मान्यताएं हैं।
भगवान शिव अकेले ऐसे देवता हैं जिनको शिवलिंग पर दूध चढ़ाया जाता है। शिव भगवान दूसरों के कल्याण के लिए हलाहल विषैला दूध भी पी सकते हैं। शिव जी संहारकर्ता हैं, इसलिए जिन चीज़ों से हमारे प्राणों का नाश होता है, मतलब जो विष है, वो सब कुछ शिव जी को भोग लगता है।
हिंदू धर्मशास्त्र के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान जब विष निकला तो पूरी पृथ्वी पर विष की घातकता के कारण व्याकुलता छा गयी, ऐसे में सभी देवों ने भगवान् शिव से विषपान करने की प्रार्थना की। भगवान् शिव ने जब विषपान किया तो विष के कारण उनका गला नीला होने लगा ऐसे में सभी देवों ने उनसे विष की घातकता को कम करने के लिए शीतल दूध का पान करने के लिए कहा।  इसपर भी भोलेनाथ ने दूध से उनका सेवन करने की अनुमति मांगी, दूध से सहमति मिलने के बाद शिव ने उसका सेवन किया, जिससे विष का असर काफ़ी कम हो गया।  बाकी बचे विष को सर्पों ने पिया।  इस तरह समुद्र मंथन से निकले हलाहल विष से सृष्टि की रक्षा की जा सकी। शिव के शरीर में जाकर विष के अनिष्टकारी प्रभाव को कम करने के कारण दूध भगवान् शिव को अत्यंत प्रिय है। यही कारण है कि शिवलिंग पर दूध जरूर चढ़ाया जाता है।
हिंदू धर्म जितने भी परंपरा है उसके पीछे कोई ना कोई वैज्ञानिक कारण भी होता है। शिवलिंग पर दूध चढ़ाना भी ऐसे ही एक वैज्ञानिक कारण से जुड़ा हुआ है।  आयुर्वेद के अनुसार सावन के महीने में मौसम बदलने के कारण बहुत सी बीमारियां होने की संभावना रहती है, क्योंकि इस मौसम में वात-पित्त और कफ़ के सबसे ज्यादा असंतुलित होने की संभावना रहती है।  ऐसे में दूध का सेवन करने से आप मौसमी और संक्रामक बीमारियों की चपेट में जल्दी आ सकते हैं। इसलिए सावन में दूध का कम से कम सेवन वात-पित्त और कफ की समस्या से बचने का सबसे आसान उपाय है।  सतयुग में धरती पर जीव मात्र की रक्षा के लिए भगवान् शिव ने विषपान किया था। शिवलिंग पर जल चढ़ाने की प्रथा के रूप में दूध के विष बन जाने की सभी संभावनाओं पर विराम लगाते हुए आज भी भगवान् शिव मनुष्यों की सहायता कर रहे हैं। इसलिए शिवलिंग पर जल चढ़ाना केवल आध्यात्मिक दृष्टि से ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी उचित है। डा. बी. के. मल्लिक 9810075792

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