फॉलो करें

शीर्षक -: समझदार प्रधान से संघ ,संगठन ,संस्था स्थापित करते कीर्तिमान–सुषमा पारख

38 Views
मुखिया !मुखिया शब्द मुख्यतः प्रभुख व्यक्ति के लिये प्रयोग में लिया जाता हैं ,वो व्यक्ति जिसके हाथ में परिवार ,संघ,संगठन या संस्था की बागडोर रहती हैं वहाँ मुखिया को अधिकार होता हैं की वो अपने विवेक से नीति नियम और कर्तव्य अधिकार का निर्धारण करे जो सबके हित में हो ,अब इस अधिकार का ईमानदारी से पालन करे ऐसे इंसान प्राय:मुश्किल से मिल पाते है। जहां मुखिया इन गुणों से संपन्न हो वो घर ,वो संघ ,वो संगठन ,वो संस्था निस्संदेह सफलता के कीर्तिमान स्थापित करते हैं ।क्योंकि एक विवेकी मुखिया हमेशा ज्ञान और गुण का सम्मान करेगा और मानवीय मूल्यों की महता पर कोई प्रहार न हो पाये इस बात का विशेष प्रयास करेगा ,भले ही उसे इसकी क़ीमत में स्वयं को हानि या क्षति भी सहना पड़े ।ऐसे मुखिया विशेषतः स्पष्टवादी,सद्भावनासंपन्न,परोपकारी,दूरदर्शी,समदर्शी,विवेकी,सत्यनिष्ठ आदि गुणों का समावेश रखने वाले होते हैं जो गुणी ,ज्ञानी को मान देते है। और लाचार ,असहाय को बिना स्वार्थ के सहायता देते हैं बदले में कुछ पाने के भाव नहीं रखते हैं ,लेकिन कुछ लोग असहाय और लाचार को मदद तो करते हैं पर उसका फ़ायदा वो मदद के बदले उठाते हैं जो की निःसंदेह निंदनीय हैं  और जब सत्ता इस तरह के हाथों में होती हैं तो हमने पाया हैं ऐसा व्यक्ति जब भी पद ,प्रतिष्ठा और पॉवर पाता है तो वो सबसे पहले अपने विवेक को अपने से दूर कर देता है। और स्वार्थ के भावों को पोषित करने में लग जाता है। जिससे वो उस पद की प्रतिष्ठा को क़ायम नहीं रख पाता हैं ,जिससे बहुत सी स्वार्थ की शाखायें जन्म लेने लगती है फिर क्षति होने लगती हैं मानवीय मूल्यों की ।अनैतिकता और अराजकता का प्रादुर्भाव यहीं से हो जाता हैं
फ़ायदे भी बहुत हैं ऐसे मुखिया के ..उसके पक्ष को वो पुष्ठ ,समर्थ बलवान बना देता हैं जिससे बिना क़ाबिलियत भी वो दर्जा आसानी से मिल जाता हैं जो काबिल जन डिज़र्व करते हैं उस जगह पर वर्चस्व क़ाबिलियत का नहीं पॉवर का बढ़ जाता हैं ,और शुरू होता हैं असली खेल …भेदभाव को ।
जी हाँ यहीं से जन्म होता हैं एक अभिशाप रूपी भाव का भेदभाव …
जहां पर हुनर को हुकूमत ,गुणों को पॉवर ,ज्ञान को दिखावा ,सादगी को भौतिकता अपने पद सत्ता और पॉवर से दबाकर कुचल देते हैं और
समाज की बागडोर आती हैं उनके हाथों में जो ना काबिल हैं ना ज्ञानी और ना ही गुणवान …
हैसियत से मानव को आंका जाता हैं कपड़ों से इंसान सम्मान पाता हैं
असंतुलित समाज का स्वतः निर्माण हो जाता हैं जो की बहुत चिंतनीय विषय है इस पर सबको ज़रूर चिंतन करना चाहिए और गुण और ज्ञान के अस्तित्व की रक्षा हो पाये हमेशा प्रयासरत रहना चाहिए 🙏🙏
-: सुषमा पारख
     (लेखिका )

Share this post:

Leave a Comment

खबरें और भी हैं...

लाइव क्रिकट स्कोर

कोरोना अपडेट

Weather Data Source: Wetter Indien 7 tage

राशिफल