रत्नज्योति दत्ता
बीते नवंबर महीने को लगभग चौंतीस माह पहले सिलचर से आई एक टेलीफोन कॉल याद आयी। टेलिफोन के दूसरे छोर से सज्जन ने बताया कि उन्हें मेरे पिता और असम के जानेमाने सामाजिक कार्यकर्ता राधापद दत्त के निधन के बारे में उत्तर पूर्व के एक लोकप्रिय दैनिक समाचारपत्र के माध्यम से पता चला था। पिताजी के निधन पर उन्होंने गहरा शोक व्यक्त किया। उसी दिन मेरे पिता के बचपन के मित्र, पूर्व केंद्रीय मंत्री कबिन्द्र पुरकायस्थ द्वारा लिखित श्रद्धांजलि बांग्ला दैनिक युगशंख में प्रकाशित हुई थी। माननीय पुरकायस्थजी पूर्व प्रधानमंत्री अटल विहारी वाजपेयी के तेरह महीने के मंत्रीमंडल के सदस्य थे।
आज मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि शिलचर से कोसों दूर देश की राजधानी में एक सज्जन व्यक्ति द्वारा पिताजी को दी गई श्रद्धांजलि से मैं बहुत ही प्रभावित हुआ था।
सोमवार (22 नवंबर, 2021) रात के करीब दस बजे के बाद मुझे राजधानी के बसंत कुंज में रहने वाले राजूदा (देबाशीष विश्वास) का फोन आया। राजूदा ने एक मुद्दे पर ध्यान आकर्षित करने के इरादे से एक सज्जन की मृत्यु की खबर देने के लिए फोन किया था। राजूदा ने उस दिन फोन करके एक सेवानिवृत्त अंग्रेजी के प्रोफेसर के निधन की सूचना दी। और उनकी सेवानिवृत्ति के लगभग ग्यारह महीने बाद भी उन्हें नियमितरूप से पेंशन नहीं मिल रही थी। पैलापुल क्षेत्र दक्षिण असम के प्रमुख नगर शिलचर से ज्यादा दूर नहीं है।
राजूदा ने निःसंतान दिवंगत प्रोफेसर की पत्नी के भविष्य के लिए वित्तीय सुरक्षा के मुद्दे का भी जिक्र किया। देश की राजधानी में पिछले दो दशकों से रहनेवाले राजूदा नेहरू कॉलेज के दिवंगत प्रोफेसर के प्रिय छात्र थे।
स्वाभाविक रूप से, मैंने राजूदा से दिवंगत प्रोफेसर का नाम पूछा। राजूदा ने कहा कि उनका नाम- प्रोफेसर दीपक सोम है। मैंने तुरंत राजूदा से कहा- मैं भी उन्हें जानता हूं, भले ही मैं उनका छात्र नहीं हूं। स्वर्गीय दीपक शोम असम के पैलापूल के नेहरू कॉलेज में अंग्रेजी पढ़ाते थे।
राजूदा मेरी बातों से थोड़ा हैरान लग रहे थे । राजूदा ने पूछा कि में उन्हें कैसे जानता हूं? मैंने उन्हें पिताजी की निधन पर मिले उनकी फोन कॉल के बारे में बताया।
उनसे पेहचान की दूसरी कड़ी थी तत्कालीन नेहरू कॉलेज के दिवंगत प्राचार्य अरुण कुमार दत्ता चौधरी। वह मेरे मामाजी थे। दीपक सोम प्राचार्य दत्ता चौधरी के प्रिय थे। बराक के जाने-माने शिक्षाविद् दत्ता चौधरी लगभग दो दशकों तक नेहरू कॉलेज के प्राचार्य रहे। चौधरी ने नेहरू कॉलेज की वर्तमान समृद्धि की आधारशिला रखी, जिसे पैलापुल के लोग आज भी श्रद्धा के साथ याद करते हैं।
पैलापूल स्थित नेहरू कॉलेज बराक घाटी के दूर्गम इलाकों में शिक्षा के द्वीप जलाने में अहम भूमिका निभा रहा हैं। कॉलेज स्थानीय युवाओं एवं पैलापुल के आसपास के क्षेत्रों में राष्ट्रवाद की भावना को बढ़ावा दे रहा है। पड़ोसी मणिपुर राज्य के उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों से कई छात्र नेहरू कॉलेज, पैलापूल में पढ़ने आते हैं।
नेहरू कॉलेज में कई वर्षों तक असम सरकार के कैबिनेट के सदस्य के रूप में सेवा देने वाले सात बार के विधायक दिनेश प्रसाद ग्वाला, और बराक घाटी की प्रसिद्ध व्यंग्यकार गणेश डे जैसे प्रतिष्ठित व्यक्तित्व ने शिक्षक के रूप में अपनी सेवा दी है।
राजूदा अपने प्रिय दीपक सर के निधन की खबर अगले दिन के मीडिया कवरेज के बारे में आशंकित थे। क्योंकि वह बराक घाटी के मुख्य केंद्र शिलचर के किसी भी प्रतिष्ठित कॉलेज में प्रोफेसर नहीं थे। वे असम विश्वविद्यालय के प्रोफेसर भी नहीं थे।
मैंने उन्हें आश्वासन दिया कि मैं उनके प्रिय ‘दीपक सर’ के लिए एक श्रद्धांजलि लिखूंगा। हालांकि, मुझे उनसे व्यक्तिगत रूप से मिलने का सौभाग्य कभी नहीं हुआ था। मैं उनके उदार व्यक्तित्व से परोक्ष रूप से वाकिफ था।
अगली सुबह मैंने लखीपुर के विधायक कौशिक राय को फोन किया और उन्हें प्रोफेसर के निधन की जानकारी दी। कौशिकबाबू ने जल्द ही पेंशन की समस्या का समाधान करने का वादा किया। पैलापुल असम के लखीपुर विधानसभा क्षेत्र के अन्तर्गत आती हैं। लखीपुर विधानसभा क्षेत्र को असम के मधेपुरा के नाम से जाना जाता है।
उसी रात राजूदा के फोन कॉल के बाद, मैंने अपने मित्र सुप्रीम कोर्ट के वकील ध्रुबेंदुशेखर भट्टाचार्य को दीपक सोम के व्यक्तित्व के बारे में सूचित किया, जिन्होंने मेरे पिता की मृत्यु पर अपनी संवेदना व्यक्त की थी। “निश्चित रूप से दीपकबाबू चाचाजी के प्रति निस्वार्थ प्रेम और सम्मान के कारण एक अच्छे इंसान थे। एक अच्छे व्यक्ति ही एक ईमानदार व्यक्ति की सराहना कर सकता है। स्वर्गीय सोम सर जैसे ज्ञानी एवं पंडित व्यक्ति हमें अकेले छोड़ चले जा रहे है, यह एक दुखद विषय है।”
सच तो यह है कि दीपक बाबू जैसे आधुनिक मानसिकता के शिक्षक एक-एक करके इस दुनिया को छोड़कर जा रहे हैं!
[लेखक दिल्ली में प्रतिष्ठित एक अंतराष्ट्रीय पत्रकार है।]