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श्रीसीतारामविवाहोत्सव विवाह पंचमी की पावन अवसर पर सनातन संस्कृति में श्रीसीतारामविवाहोत्सव आदर्श दम्पत्ति के रूप में विश्व व्याप्त हैं – डॉ. अभिषेक कुमार उपाध्याय 

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श्रीसीतारामविवाहोत्सव विवाह पंचमी की पावन अवसर पर सनातन संस्कृति में श्रीसीतारामविवाहोत्सव आदर्श दम्पत्ति के रूप में विश्व व्याप्त हैं – डॉ. अभिषेक कुमार उपाध्याय
सनातन संस्कृति में वर्षभर अनेक पर्व, त्यौहार एवं उत्सवों को सभी प्रान्तों में अपने विधिविधान के अनुसार मनाने की परम्परा एवं व्यवस्था है। वैसे ही हमारे सभी राज्यों में विवाह पंचमी को बड़ी धूमधाम एवं हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। पौराणिक धार्मिक ग्रथों के अनुसार इस पर्व का उद्गमन भगवान श्रीराम जी एवं जनकनंदिनी जी की विवाह के पुण्य-पवित्र पंचमी तिथि में हुआ था। जिस कारण जनमानस में इस परम-पवित्र तिथि को विवाह पंचमी के नाम से सम्बोधित किया जाता है। इसका वर्णन विस्तार से श्रीरामचरितमानस में महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी ने बड़ी ही सुंदरता से किया है। श्रीरामचरितमानस के अनुसार महाराजा जनक जी ने माता सीता के विवाह हेतु स्वयंवर रचाया। सीता जी के स्वयंवर में आए सभी राजा-महाराजा जब भगवान शिव का धनुष नहीं उठा सकें, तभी महर्षि विश्वामित्र ने प्रभु श्रीराम जी को आज्ञा देते हुए कहा- हे राम! उठो, शिवजी का धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाओ और जनक विदेह के संताप मिटाओ। गुरुदेव की आज्ञा मानकर श्रीराम धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने के लिए आगे बढ़ें। यह दृश्य देखकर सीता के मन में आनन्द से भर गया।
प्रभु श्रीराम ने देखते ही देखते भगवान शिव का महान धनुष उठाया और उस पर प्रत्यंचा चढ़ाते ही एक भयंकर ध्वनि के साथ धनुष टूट गया। यह देखकर सीता के मन को संतोष हुआ। फिर सीता श्रीराम के निकट आईं। तब एक सखी ने सीता से जयमाला पहनाने को कहा। तब सीताजी ने श्रीराम के गले में जयमाला पहना दी। यह दृश्य देखकर देवता फूल बरसाने लगे। नगर और आकाश में बाजे बजने लगे। श्रीराम-सीता की जोड़ी इस प्रकार सुशोभित हो रही थी, मानो सुंदरता और श्रृंगार रस एकत्र हो गए हो। पृथ्वी, पाताल और स्वर्ग में यश फैल गया कि श्रीराम ने धनुष तोड़ दिया और सीताजी का वरण कर लिया। तभी से प्रतिवर्ष अगहन मास की शुक्ल पंचमी को विश्व के प्रमुख मठ मंदिरों सहित विशेष रूप से अयोध्या धाम एवं मिथिला में यह उत्सव मनाया जाता है।
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामसीता के शुभ विवाह के कारण ही यह दिन अत्यंत पवित्र माना जाता है। भारतीय संस्कृति में श्रीसीतारामविवाहोत्सव आदर्श दम्पत्ति के रूप में प्रचलित हैं। जिस प्रकार प्रभु श्रीराम ने सदा मर्यादा पालन करके पुरुषोत्तम का पद पाया, उसी तरह माता सीता ने सारे संसार के समक्ष पतिव्रता स्त्री होने का सर्वोपरि उदाहरण प्रस्तुत किया। इस पावन दिन सभी को श्रीसीताराम की आराधना करते हुए अपने सुखी दाम्पत्य जीवन के लिए प्रभु से आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए।
मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को विवाह पंचमी मनाई जाती है जो श्रीरामसीता जी के विवाह की वर्षगांठ के रूप में मनाया जाने वाला पवित्र पर्व है। सनातन धर्म में इस पर्व का विशेष महत्व है। यदि हम इसकी धार्मिक मान्यता की बात करे तो यह त्रेता युग में इसी तिथि पर श्रीरामसीता जी विवाह बंधन में बंधे थे। विवाह पंचमी के दिन श्रीसीताराम जी की पूजा-अर्चना, रामचरितमानस पाठ और दान-पुण्य का विधान है। इस पर्व को मनाने से न केवल वैवाहिक जीवन में सुख-शांति आती है बल्कि व्यक्ति को आध्यात्मिक बल और पुण्य भी प्राप्त होता है।
आखिर यह तिथि इतनी विशेष कैसे हों गई? विवाह पंचमी सनातन धर्म का एक प्रमुख पर्व है जो भगवान श्रीसीताराम जी के पवित्र विवाह की वर्षगांठ के रूप में मनाया जाता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, त्रेता युग में मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मिथिला नगरी में भगवान श्रीराम और माता सीता का विवाह संपन्न हुआ था। यही कारण है कि इस तिथि को हर वर्ष विवाह पंचमी के रूप में मनाया जाता है।
सियाराम जी आदर्श वैवाहिक जीवन के प्रतीक के रूप में सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में विख्यात है। भगवान श्रीराम और माता सीता की जोड़ी सनातन धर्म में आदर्श वैवाहिक जीवन का प्रतीक मानी जाती है। ऐसा कहा जाता है कि उनके जीवन से हमें परिवार, प्रेम, त्याग और मर्यादा का संदेश मिलता है। विवाह पंचमी पर इनकी पूजा-अर्चना कर लोग उनके गुणों को अपने जीवन में अपनाने का प्रयास करते हैं।
विवाह पंचमी के आध्यात्मिक महत्व की बात करे तो यह भगवान श्रीराम और माता सीता के पवित्र बंधन का प्रतीक है। इस दिन श्रद्धालु मंदिरों में जाकर पूजा-पाठ करते हैं। इस तिथि पर विशेषकर श्रीसीताराम संकीर्तन एवं विवाहोत्सव कार्यक्रम के साथ ही श्रीरामचरितमानस का पाठ किया जाता हैं और यह हमें आदर्श दांपत्य जीवन जीने की प्रेरणा देता है।
यदि इसकी सांस्कृतिक महत्व की बात करे तो यह भारत के विभिन्न हिस्सों में धूमधाम से मनाई जाती है। विशेष रूप से उत्तर भारत के श्री अयोध्याधाम और मिथिला क्षेत्र में इस दिन बड़े उत्साह के साथ श्रीसीताराम विवाह के प्रसंग स्वरूप रामलीला किया जाता है। इस पर्व से जुड़ी परंपराएं हिंदू धर्म की सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने का काम करती हैं। यह पर्व समाज में एकता और प्रेम का संदेश भी देता है। इस दिन दान का विशेष महत्व है। लोग गरीबों और जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र, धन और अन्य सामग्रियों का दान करते हैं। मान्यता है कि इस दिन दान करने से व्यक्ति को पुण्य प्राप्त होता है। दान करने से जीवन में सुख-समृद्धि और उत्तरोत्तर वृद्धि होती है।
विवाह पंचमी केवल एक धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि यह भगवान श्रीराम और माता सीता के जीवन से जुड़े आदर्शों को अपनाने का अवसर भी है। यह पर्व हमें यह सिखाता है कि प्रेम, त्याग, और मर्यादा से परिपूर्ण दांपत्य जीवन न केवल व्यक्ति के जीवन को सुखी बनाता है, बल्कि समाज को भी सकारात्मक दिशा में प्रेरित करता है। ये पूजा और दान व्यक्ति को आध्यात्मिक शांति प्रदान करती है और उनके जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लाती है। विवाह पंचमी हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह पर्व भगवान श्रीराम और माता सीता के पवित्र विवाह के स्मरण के साथ-साथ उनके गुणों को अपने जीवन में आत्मसात करने का दिन होता है।
एक ओर विवाह पंचमी को बक्सर वाले मामा जी ने अपने पुरुषार्थ से सांस्कृतिक रूप प्रदान किया तो दूसरी श्री श्री 1008 साकेतवासी श्री मौनी जी महाराज ने बलिया, सिवान, बिहार सहित भारत के अन्य राज्यों में इसे त्रिदिवसीय कार्यक्रम में श्रीसीताराम संकीर्तन एवं श्रीसीतारामविवाहोत्सव व राम कलेवा के रूप में मनाने की परम्परा को संरक्षित एवं संवर्धित किया जो कई प्रान्तों आज भी विधिवत ढंग से चली आ रही है। अन्त में आप सभी सनातन धर्म, संस्कृति एवं परम्परा में विश्वास रखने वाले भगवत चरणानुरागी श्रद्धालुओं से आग्रह पूर्वक निवेदन है कि अपने घर, और गांव के मठ मन्दिर में इस कार्यक्रम को भव्य दिव्य स्वरूप में मनाकर अपने मानव जीवन को पूर्णता के साथ जोड़ने का प्रयास करें और यथा समय नामजप करते हुए भगवान का गुणगान रूपी कथा प्रवचन श्रवण और दान पुण्य करें।
श्रीराघव चरणानुरागी
डॉ. अभिषेक कुमार उपाध्याय,
मुख्य न्यासी श्री श्री 1008 श्री मौनी बाबा चैरिटेबल ट्रस्ट न्यास व
गुरुकुल एवं मन्दिर सेवा योजना प्रमुख जम्मू कश्मीर प्रान्त।

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