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हर साल पौष माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि पर अखुरथ संकष्टी चतुर्थी मनाई जाती है। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से और गणेशजी की विधि-विधान से पूजा करने से कष्ट दूर होते हैं और मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इस चतुर्थी पर गणेश पूजा करने पर घर में धन और वैभव आती है। इसके अतिरिक्त विवेक और ज्ञान की प्राप्ति भी होती है। अखुरथ यानी संकष्टी चतुर्थी के दिन सुर्योदय से पहले उठा जाता है। स्नान पश्चात स्वच्छ वस्त्र धारण किए जाते हैं और भगवान गणेश का ध्यान करते हैं। इसके बाद लकड़ी की चौकी पर लाल रंग का कपड़ा बिछाया जाता है और भगवान गणेश की प्रतिमा उसके ऊपर रखी जाती है। पूजा करने के लिए भगवान गणेश के समक्ष धूप, दीप और दुर्वा अर्पित किए जाते हैं। गणपति बप्पा की आरती की जाती है, उन्हें भोग लगाया जाता है और सभी में प्रसाद का वितरण करके पूजा संपन्न होती है। अखुरथ संकष्टी चतुर्थी पर सांयकाल में गणेश पूजन किया जाता है और उसके बाद चंद्रदेव के दर्शन किए जाते हैं।
संकष्टी चतुर्थी की कथा
पौराणिक कथा के मुताबिक एक समय रावण ने स्वर्ग के सभी देवताओं को जीत लिया और संध्या करते हुए बालि को पीछे से जाकर पकड़ने का कोशिश किया। उसके बाद वानरराज बालि, रावण को अपनी बगल में दबाकर किष्किन्धा नगरी ले आए। इससे रावण को बहुत कष्ट होता था।
एक दिन रावण ने दुखी मन से पितामह पुलस्त्यजी को याद किया। रावण की यह दशा देखकर पुलस्त्य ऋषि ने पता किया कि रावण की यह दशा क्यों हुई? उन्होंने मन ही मन सोचा घमंड हो जाने पर देव, मनुष्य व असुर सभी की यही गति होती है। पुलस्त्य ऋषि ने रावण से पूछा कि तुमने मुझे क्यों याद किया है?
रावण बोला – पितामह, मैं बहुत दु:खी हूं, ये नगरवासी मुझे धिक्कारते हैं और अब ही आप मेरी रक्षा करें।
रावण की बात सुनकर पुलस्त्यजी बोले – तुम डरो नहीं, इस बंधन से जल्द ही तुमको मुक्ति मिल जाएगी। तुम विघ्नविनाशक गणेशजी का व्रत करो। पूर्व काल में वृत्रासुर की हत्या से छुटकारा पाने के लिए इन्द्रदेव ने भी इस व्रत को किया था, इसलिए तुम भी इस व्रत को अवश्य करो। अपने पितामह की आज्ञानुसार रावण ने भक्तिभाव से इस व्रत को किया और पौष माह की कृष्ण पक्ष चतुर्थी के दिन वह बंधन मुक्त हो गया और राज्य को दोबारा प्राप्त किया। मान्यतानुसार श्री गणेश भक्त पौष मास की संकष्टी चतुर्थी पर इस व्रत को श्रद्धापूर्वक रखने से सफलता मिलती है।
संकष्टी चतुर्थी के दिन कुछ विशेष बातों का ध्यान रखने के लिए भी कहा जाता है। इस दिन गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करने को बेहद शुभ मानते हैं। संकष्टी गणेश चतुर्थी पर तामसिक भोजन से परहेज के लिए कहा जाता है और व्रत रखने वाले व्यक्ति के अलावा बाकी सभी को भी लहसुन-प्याज ना खाने की सलाह दी जाती है। इस दिन पशु-पक्षियों को दाना-पानी देना भी शुभ होता है।
डॉ. बी. के. मल्लिक
वरिष्ठ लेखक
9810075792