(संघ प्रचारक गौरीशंकर चक्रवर्ती के स्मरण में लेख)
हमारे गौरीदा
अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल के आमंत्रित सदस्य गौरीशंकर चक्रवर्ती का दि. २४ मार्च २०२१ को दिल्ली के चिकित्सालय में निधन हुआ.७१ वर्ष आयु के गौरीशंकरजी कुछ दिनोंसे कर्क रोगसे आक्रांत थे. गौरीदा इसी नाम से परिचित गौरीशंकरजी आसाम में काछाड़ जिला के अंतर्गत जालालपुर ग्राम के निवासी. पिताजी स्व. डा. खगेंद्र नाथ चक्रवर्ती (मूल बांग्ला देश सिलहट के) विभाजन के पश्चात् आसाम आये. उनकी प्रेरणा से ही यहां संघ का काम आरंभ हुआ. गौरीदा को भी बचपनसे संघ संस्कार मिलते रहें स्कुली शिक्षण पूर्ण होने पर गुवाहाटी के काटन महाविद्यालय और विश्व विद्यालय में प्रथम श्रेणी के कार्यकर्ताओं मे गौरीदा थे. विशव विद्यालय के परिसर मे अच्छी शाखा चलाने तथा प्राध्यापकों को संघ से जोड़ने में भी उनकी अहम् भूमिका रही. कुरुक्षेत्र विश्व विद्यालय से स्नातकोत्तर परीक्षा उत्तीर्ण हो कर दिल्ली विश्व तिद्यालय से Law की शिक्षा पूर्ण की. दोनों विश्व विद्यालयों में सक्रिय रह कर सन १९७२ में दिल्ली से ही प्रचारक जीवन आरंभ किया.
आपातकाल के दिनों में संघ की योजना से दिल्ली में ही भूमिगत रह कर आपात काल के विरोध में संघर्ष करते रहे. सन१९७८ मे उन को आसाम मे दायित्व दिया गया. परिवार में सात भाई. गौरीदा चतुर्थ संताऩ. उन से बड़े डा. शिवशंकर जी M.B.B.S. पास कर विश्व हिंदु परिषद के पूर्णकालीन कार्यकर्ता हुए. पहाड़ी क्षेत्र में रुग्ण सेवा करते समय उन का अकाल निधन हुआ था.
आसाम में संघ का विस्तार तथा द्रुढ़ीकरण मे गौरीदा का विशेष योगदान रहा है. अनेक गुणों के अधिकारी के रूप में आसाम के कार्यकर्ता गौरीदा को जानते हैं.
सन १९७०के संघ शिक्षा वर्ग में शिक्षक रहते समय से ही गौरीदा शारीरिक नैपुण्य का परिचय देते रहें शारीरिक के साथ आसाम के घोष दल तैय्यार करने में भी उनका योगदान है. शंख, आनक, वंशी ये तीनों वाद्य बजाना और सीखाना यह काम अंतिम बीमारी होने तक करते रहें. बीमार होने पर मना करने पर भी पथ संचलन में शंख ले कर चलने का उन का आग्रह रहता था. आसाम में आने के बाद गुवाहाटी महानगर प्रचारक, डिब्रूगड़ विभाग प्रचारक, प्रांत तथा क्षेत्र शारीरिक प्रमुख तथा आसाम के सह क्षेत्र प्रचारक का भी कार्यभार सम्हाला. दक्षिण आसाम प्रांत के प्रथम प्रांत प्रचारक गौरीदा ही थे. सन २००७ में परम पूजनीय गुरुजी जन्म शती का अंतिम कार्यक्रम दिल्ली में हुआ था. उस समय दिल्ली में सपन्न अखिल भारतीय घोष शिविर के गौरीदाही कार्यवाह थे.
गौरीदा उत्तम वक्ता, उत्तम गायक, उत्तम गीत रचनाकार तथा उत्तम लेखक थे.मात्रुभाषा बंगाली थी किंतु असमीया भाषा में विविध विषयों पर उन के रचित संघ गीत शाखाओं में गाते है. असमीया भाषा पर उन का बहुत प्रभुत्व था. विविध विषयों पर उन्हों ने लिखे लेख समाचार पत्रों मे छपे हैं. असमीया में संघ साहित्य तैय्यार करना जरुरी था. स्व. नाना पालकर जी का लिखा ‘डाक्टर हेडगेवार’, दत्तोपंत ठेगडी जी का ‘कार्यकर्ता,’ पं दीनदयाल जी का लिखा ‘राष्ट्र जीवन की दिशा’ स्वयंसेवकों के लिये ‘विषय बिंदु’आदि पुस्तकों का गौरैदा ने अनुवाद कर असमीया भाषा में उपलब्ध की. कोरोना के काल में संकलित तथ्यो के आधर पर लिखा ‘आधुनिक भारतर खनिकर डाक्टर हेडगेवार’ यह किताब उन के निधन के कुछ दिन पूर्व ही प्रकाशित हुई. है.साथ ही Quarantine’ नामक पुस्तक भी गौरीदा ने लिखी है.
गौरीदा कुशल संघटक थे.व्यक्तिगत जीवन में भी व्यवस्थित रहना उनके स्वभाव में ही था. उन के कमरे में जाने से कमरे की स्वच्छता या वस्तुओं का रखरखाव देख कर देखने वाले प्रभावित होते थे. यही गुण शाखा के कार्यक्कमों में दिखता था. वे कहते थे कि जो एक शाखा व्यवस्थित चला सकता है वह किसी भी दायित्व को अच्छी तरह से निभा सकता है.
गौरीदा के कार्य शैली से अनेक स्वयंसेवक अच्छे कार्यकर्ता बने तथा प्रचारक भी निकलें. केवल शाखा ही नही परिवारों के साथ भी गौरीदा शीघ्र घुलमिल जाते थे. अनेक परिवारों के सदस्य अपनी आयु के अनुसार गौरीदा को भैय्या, दादा, चाचा,नाना आदि नामों से पुकारते थे. सभी के लिये गौरीदा थे ही. निधन के पश्चात् भी अंतिम संस्कार के समय सारा गाव उमड पडा था. सभी ने अश्रुपूरित नेत्रों से गौरीदा को अंतिम विदाई दी.
सिलचर, आसाम. शशिकांत चौथाईवाल
फोन 9435724941