आरएसएस के नए सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले एबीवीपी और आरएसएस को असम में जगह दिलाने के लिए जाने जाते हैं. असम के रास्ते ही बीजेपी पूर्वोत्तर के राज्यों में अपनी पकड़ मज़बूत करना चाहती है.
66 साल के दत्तात्रेय होसबाले ने अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में भैयाजी जोशी की जगह ली. जोशी ने अपने पद से इस्तीफ़ा दिया ताकि नए और कम उम्र के लोग आरएसएस को भविष्य में आगे ले जाने की ज़िम्मेदारी लें.
काफ़ी लंबे समय से होसबाले एबीवीपी से जुड़े हुए थे. उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि 1980 के दशक के शुरुआती सालों में ‘असम चलो’ छात्र आंदोलन था का आयोजन था.
होसबाले के पुराने दोस्त एमएच श्रीधर ने बताया, “वो पूरी तरह से अपने काम को समर्पित हैं. उन्होंने कई कार्यकर्ताओं को लिफ़ाफ़े पर पता लिखने से लेकर मीडिया के लिए मुश्किल स्टेटमेंट लिखना सिखाया है. उन्होंने सिखाया है कि एक अच्छा प्रचारक कैसे बनते हैं. उन्होंने हमेशा सोशल इंजीनियरिंग पर ध्यान दिया है.”
“वो हमेशा एबीवीपी और संघ के दूसर पदों पर रहते हुए नई सोच लेकर आए हैं. वो आरएसएस में नए नियम के लिए प्रतिबद्ध हैं. इसमें कोई शक नहीं है.”
दूसरी विचारधारा के लोगों से भी अच्छे संबंध
कर्नाटक के शिवमोगा ज़िले के होसाबाले गांव से आने वाले होसबाले देश के कई मुख्य ज़िलों में जा चुके है.
श्रीधर के मुताबिक, “इसलिए उनके ज़मीन पर प्रचारकों से अच्छे संबंध हैं.”
होसबाले की पहचान एक ‘भावुक व्यक्ति’ की है जिनका ‘कोई दुश्मन नहीं’ है. वो समाजवादी और सेंटर-लेफ़्ट से भी जुड़े रहे हैं. वो उनसे विचारधारा को लेकर बहस के लिए हमेशा तैयार रहते हैं.
नाम न बताने की शर्त पर एक कांग्रेस नेता ने कहा, “इमरजेंसी के वक़्त उनकी इसी ख़ासियत ने हमें प्रभावित किया. हम सब इंदिरा गांधी की सरकार के ख़िलाफ़ थे और हम हैरान थे कि वो इतना खुलकर बात करते हैं.”
अब ख़त्म हो चुकी सोशलिस्ट पार्टी के तुमुरी श्रीधर कहते हैं, “हम उन्हें दशकों से जानते हैं, हमारी विचारधारा अलग है लेकिन वो बहुत साधारण व्यक्ति हैं. उन्होंने हमारी पार्टी के नेता एस वेंकटरमन के गुणों की हमेशा तारीफ़ की. उन्होंने मुझे बताया था कि वो वेंकटरमन की ‘जोड़-तोड़ से प्रभावित कर कुछ भी हासिल नहीं करने’ वाली सोच का पालन करते थे. मुझे व्यक्तिगत तौर पर लगता है कि वो आज भी इस पॉलिसी में विश्वास रखते हैं.”
वाजपेयी, आडवाणी को दी इमरजेंसी की जानकारी
होसबाले बचपन में ही संघ के कार्यकर्ता बन गए थे. 1970 में वो शिवमोगा ज़िले से बेंगलुरु आ गए थे. नेशनल कॉलेज से ग्रैजुएशन करने के बाद उन्होंने इमरजेंसी के समय एमए में दाखिला लिया था.
कहा जाता है कि इमरजेंसी लगने की जानकारी अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी को होसबाले ने ही दी थी. उस वक्त दोनों पार्लियामेंट्री कमेटी की एक मीटिंग के लिए बेंगलुरु में थे.
गिरफ़्तार होने से पहले ही वो अंडरग्राउड हो गए. उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी. इमरजेंसी हटाए जाने के बाद वो पूर्ण रूप से आरएसएस जुड़ गए. साल 1992-2003 से बीच वो एबीवीपी के ऑल इंडिया ऑर्गनाइज़िंग सेक्रेटरी रहे. इसके बाद उन्हें आरएसएस वापस बुला लिया गया जहां वो अखिल भारतीय सह बौद्धिक प्रमुख बने.
इसके बाद 2009 वो संघ के जॉइंट जनरल सेक्रेटरी चुने गए. वो मुंबई पटना समेत कई शहरों में रह चुके हैं और अभी उत्तर प्रदेश में रह रहे हैं.
पीएम मोदी से नज़दीकी
श्रीधर कहते हैं, “एक ख़ास बात उनमें ये है कि वो आपसे भी उसी तरह से बात करेंगे जिस तरह से शायद वो प्रधानमंत्री से करें. वो इस तरह के व्यक्ति हैं.”
उनकी पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस में उनसे पूछा गया कि क्या आरएसएस का पक्ष सरकार से अलग हो सकता है? फर्ज करिए- श्रम कानूनों पर (भारतीय मज़दूर संघ ने श्रम कानून का विरोध किया है), तो उन्होंने कहा, “मुझे नहीं लगता आरएसएस विरोध करेगी या नहीं. ये एक मुद्दे की बात है. अगर हमें लगा कि देशहित में नहीं है तो हम विरोध करेंगे, हम अपना पक्ष रखेंगे.”
जब रिपोर्टर ने कहा कि ये सवाल उनकी पीएम मोदी से नज़दीकी को देखते हुए पूछा गया था तो उन्होंने कहा, “ऐसा तो मीडिया वाले कहते हैं, पीएम हर किसी से अपने मन की बात कार्यक्रम से बात करते हैं.”
होसबाले ने मीडिया से बात करते हुए ये साफ किया कि संघ हिंदू समाज में किसी भी तरह के जातिगत भेदभाव के ख़िलाफ़ है. ऐसा उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा पेजवार मुट्ट स्वामी के बयान का ज़िक्र था जिसमें उन्होंने कहा कि ब्राह्मणों को किसी दूसरे जाति में शादी नहीं करनी चाहिए.
होसबाले ने कहा कि शादी में किसी तरह के गलत तरीकों का विरोध करेंगे और कहा कि “कई राज्यों ने लाए गए कानून का समर्थन करते हैं जो गलत तरीके से कराई जाने वाली शादियां जिन्हें ‘लव जिहाद’ कहते हैं के लिए लाया गया है.