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शिव कुमार शिलचर। संस्कृतभारती, दक्षिण असम प्रान्त के प्रचार विभाग ने डीएमके सांसद श्री दयानिधि मारेन के उस बयान का कड़ा विरोध किया है, जिसमें उन्होंने लोकसभा में संस्कृत भाषा में अनुवाद के विरोध में कहा था कि,संस्कृत किसी भी राज्य की भाषा नहीं है।संस्कृतभारती का कहना है कि यह बयान संस्कृत के महत्व और उसकी सांस्कृतिक विरासत को कम आंकने का प्रयास है। संगठन ने यह भी स्पष्ट किया कि संस्कृत उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश की द्वितीय आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता प्राप्त है और यह भारत की सांस्कृतिक धरोहर का एक अभिन्न अंग है।संस्कृतभारती ने कहा कि संस्कृत केवल एक भाषा नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, परंपरा और ज्ञान की वाहक है। यह वेदों, उपनिषदों, पुराणों और दर्शनशास्त्रीय ग्रंथों की भाषा है, जो भारत की समृद्ध विरासत को दर्शाती है। साथ ही, इसकी सटीकता और व्याकरणिक स्पष्टता इसे अनुवाद के लिए उपयुक्त बनाती है।संगठन ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला के उस बयान की सराहना की, जिसमें उन्होंने लोकसभा कार्यवाही को सभी 22 अनुसूचित भाषाओं में अनुवाद करने की वकालत की थी। संस्कृतभारती के अनुसार, यह कदम भारत की भाषाई विविधता और समावेशिता को बढ़ावा देगा।संस्कृतभारती ने मांग की कि संस्कृत सहित सभी अनुसूचित भाषाओं में लोकसभा की कार्यवाही का अनुवाद होना चाहिए, ताकि भारतीय संस्कृति और विविधता को संरक्षित किया जा सके।
डॉ. गोविन्द शर्मा,
संस्कृत विभाग, असम विश्वविद्यालय,
प्रान्त प्रचार प्रमुख, संस्कृतभारती, दक्षिण असम प्रान्त