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गरीब नंदू लकङी काटकर लाता कुछ अपने घर में रखकर बाकी दुकानदार को दे देता था लेकिन हमेशा टोटा ही रहता। उसकी पत्नी शुशीला विश्व सुंदरी थी लेकिन फटे कपडे पहन कर दुकानदार से घर ग्रहस्थी का समान लेने जाती तो दुकान वाला घटेश्वर कोई ना कोई बहाने उसको बहकावे में लाने का प्रयास करता लेकिन एक दिन उसने हिंमत करके कह दिया कि यदि तुम मेरे साथ शादी ना भी करो तो तुम्हारे बाल मूंहमांगी कीमत पर बेच दो। शुशीला गरीबी की मार एवं पति के कठोर परिश्रम एवं प्रेम से इतनी बंधी हुई थी कि मन में कोई विचार तक लाने के लिए भी नहीं सोचती। दरिद्रता होने के बावजूद आने वाले अतिथि को रुखासुखा खिलाकर पानी पिलाकर विदा करते। साधु संतों भी उसके दरवाजे पर आकर अलख जगाते तो यथा भक्ति यथा शक्ति भोजन करवाती। एक दिन भिक्षा लेने के बाद सभी साधूओं ने गांव के बाहर धुणी लगाकर वही भोजन बनाकर खाया तो शुशीला की भक्ति के बारे में चर्चा की तो गाँव के एक धर्मात्मा ने बताया कि दुकानदार घटेश्वर उसे हमेशा तंग करता है तो साधुओं ने सोचा परीक्षा ली जाए तथा घटेश्वर को दंडित किया जाए।
शाम को एक साधू आकर कहा बेटी मुझे आज तुम्हारे घर में ही रहना है तथा हलवा सहित स्वादिष्ट व्यंजन का भोजन करना है क्या तुम आतिथ्य सेवा कर सकोगी तो लङकियो का गट्ठर फेंकते हुए नंदू बोला अवश्य बाबा आप आराम करें। नंदू भोर में ही जाता था इसलिए उसे घर के बारे में कोई जानकारी नहीं थी।
जाओ शुशीला तैयारी करो तो घटेश्वर के पास समान लेने गयी तो घटेश्वर बोला यह तो काफी महंगा समान है तो शुशीला बोली ठीक है तुम मेरे बाल काटकर रखलो लेकिन मुझे अभी समान चाहिए तो घटेश्वर कैंची लेकर दुकान के पिछले हिस्से में ले गया। जैसे ही कैंची चलाने लगा साधुओं की भीड़ ने घेर लिया। लोगों ने पिटाई की तो दुकानदार पैर पकड़ कर बोला शुशीला आज से तुम मेरी मूंहबोली बहन हो। सर पर हाथ रखकर साधुओं का दल शुशीला को वापस लाये।
मदन सुमित्रा सिंघल
पत्रकार एवं साहित्यकार
शिलचर असम
मो 9435073653