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सत्कर्म और सहयोग

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हमें नि:स्वार्थ भाव से सत्कर्म करना चाहिए। सत्कर्म करने के बावजूद यदि जीवन में किसी प्रकार का अनिष्ट होता है तो हमें विचलित नहीं होना चाहिए इसे प्रारब्ध मानकर ईश्वर के प्रति अटूट विश्वास रखते हुए अपना परिश्रम व प्रयास निरंतर जारी रखना चाहिए क्योंकि विद्वानों ने कहा है कि परिश्रम से भाग्य बदल सकता है। कहने का तात्पर्य यह है कि हमें अपने सामर्थ्य को कम न आंकते हुए जनकल्याणकारी कार्यो में खुलकर सहयोग करना चाहिए। सृजनकारी व कल्याणकारी कार्यो में सहयोग देने वालो को ही इतिहास याद रखता है। उनके नाम इतिहास के पन्नों में सुनहरे अक्षरों में लिखा जाता है। इसी कड़ी में एक प्रसंग पढ़ा था उसी को लिख रहा हूं।एक समय जंगल में भयानक आग लगी। जंगल में रहने वाले जानवर व पक्षी गण में हाहाकार मच गई। बड़े-बड़े जानवर आग बुझाने लगे। इसी बीच एक छोटी सी गौरैया चिड़िया अपने चोंच में चुटकी भर पानी भर-भरकर आग बुझाने लगी। तब किसी ने पूछा – क्या तुम्हारी चुटकी भर पानी से आग बुझ जाएगी? चिड़िया ने कहा -मेरे चुटकी भर पानी से आग बुझे या ना बुझे लेकिन जब इतिहास लिखा जाएगा तब आग लगाने वालों के तालिका में नहीं बल्कि आग बुझाने वाले तालिका के किसी कोने में मेरा नाम भी जरुर होगा।
पवन कुमार शर्मा (शिक्षक)
दुमदुमा (असम)
मोबाइल ९९५४३२७६७७

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