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कहते हैं कि किसी के जाने का एहसास उसके चले जाने के बाद ही होता है। मैं कभी जुबीन दा से मिली नहीं थी, उनके जाने की उस दुखद घटना ने जहाँ पूरे विश्वभर को हिला कर रख दिया था, वहीं मेरे मन में भी उनसे नहीं मिल पाने का एक मलाल रह गया। लगभग महीना भर होने को है, लेकिन असम जैसे थम-सा गया है। इस बार पूजा पंडाल का दृश्य भावुक कर देने वाला था। हर पूजा पंडाल के बाहर ज़ुबीन दा को श्रद्धांजलि दी गई थी, सड़कों पर हर बार की तरह न तो ज़्यादा भीड़ भार थी और ना ही रौनक । एक अजीब सा दर्द लोगों के चेहरें बयान कर रहे थे। हर पंडाल में जुबीन दा के गाने (Mayabini ratir bukut) और (Moi no thoka onubhob) ये गाने ही ज़्यादा बजते दिखें और गाने सुनकर लोग रोते भी दिखें। कैसा अजीब मंज़र था, जहाँ पूजा की ख़ुशी होनी चाहिए थी वही मातम सा- छाया था। यह मातम था, जुबीन दा के लिए जिन्होंने इंसान को इंसान समझा था, उनके दुखों को अपना समझा था। पशु पक्षियों पर दया दिखायी थी। कभी सेलिब्रिटी का रौब भी नहीं दिखाया था। वे केवल एक कलाकार ही नहीं थे, वे असमवासियों के हितों के लिए लड़ने वाले योद्धा से भी कम नहीं थे। मन किया तो किसी रिक्शेवाले को 20 की जगह 500 पकड़ा दिए। किसी की किडनी खराब हुई या नहीं इसका प्रमाण उन्होंने नहीं मांगा तुरंत पैसे दिला दिए। मुंबई की चकाचौंध भी उन्हें असम की मिट्टी और यहाँ के लोगों से दूर नहीं कर पायी। कभी पैसों का हिसाब नहीं रखा, बस देते गए। सबने देखा, बच्चे से लेकर बूढ़े उनके लिए रो रहे थे। एयरपोर्ट पर उनके पार्थिव शरीर को देखकर वहाँ के स्टाफ (जुबीन दा) कहकर रोते हुए दौड़े। उनके पार्थिव शरीर ले जाने वाली गाड़ी का ड्राइवर आँसू पोंछते हुए गाड़ी चला रहा था और ड्यूटी पर तैनात पुलिस वाले फूट-फूट कर रो रहे थे। लाखों की संख्यां में खड़े लोग उस गाने को गा रहे थे, जिसके बारे में खुद जुबीन दा ने कहा था कि “मैं जब इस दुनियाँ में न रहूँ तो पूरा असम सात दिन का शोक मनाएगा और सभी यही गाना गायेंगे” और ऐसा हुआ भी। “सोनापुर” जहाँ उनका अंतिम संस्कार हुआ था, वह स्थान अब तीर्थ स्थान-जैसा बन गया है। पूरे विश्व ने देखा, जुबीन दा असम के लोगों के दिलों के “राजा” थे।
वे सदा लोगों के दिलों में अमर रहेंगे ।
अनीता सिंह (टी.जी.टी. हिंदी), जवाहर नवोदय विद्यालय, गोलघाट, असम ।





















