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राजू दास, शिलचर: हाल ही में श्रीभूमि ज़िले में हुए एक भयानक अपराध ने हमें फिर से याद दिला दिया कि समाज के हर कोने में अब भी हिंसा और अपराध का ज़हर फैला हुआ है। आरोपों के अनुसार, एक युवती के साथ बलात्कार कर उसे फेंक दिया गया। यह एक भयावह और अमानवीय घटना है। हम इसके न्याय की माँग करते हैं और अपराधियों को कठोर सजा दिलाने के लिए आवाज़ उठाते हैं। लेकिन इस घटना को धार्मिक भेदभाव का रंग देने के बजाय, हमें अपराध की जड़ खत्म करने और क़ानून के शासन को स्थापित करने पर ध्यान देना चाहिए।
हम 21वीं सदी में रह रहे हैं, जहाँ महिलाओं की स्वतंत्रता और सुरक्षा पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता। महिलाओं के प्रति अत्याचार, बलात्कार और हत्या सिर्फ किसी विशेष धर्म या समुदाय की समस्या नहीं हैं, बल्कि यह पूरे समाज के लिए एक शर्मनाक स्थिति है।
अपराधी कोई भी हो, उसे सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए। क़ानून-व्यवस्था की ज़िम्मेदारी है कि वह निष्पक्ष होकर अपराधियों के ख़िलाफ़ सख्त कार्रवाई करे और दोषियों को कड़ी सजा दिलाए। किसी विशेष समुदाय को निशाना बनाना समाधान नहीं है, बल्कि अपराध और अपराधियों के ख़िलाफ़ सख्त रुख अपनाना ही हमारा मुख्य उद्देश्य होना चाहिए।
अक्सर हम अपराध के न्याय की माँग करते हुए हिंदू-मुसलमान का मुद्दा खड़ा कर देते हैं, जिससे असली समस्या हल नहीं होती। हमें समझना होगा कि अगर यह जघन्य अपराध किसी मुस्लिम युवक ने किया हो, या किसी हिंदू युवक ने, तो दोषी कौन है—वह व्यक्ति या पूरा समाज? अगर समाज की कोई ज़िम्मेदारी बनती है, तो वह है अपराधियों को रोकने में असफल होना। इसलिए, हमारा असली लक्ष्य अपराधी को सजा दिलाना होना चाहिए, न कि धार्मिक पहचान के नाम पर अपराध को छिपाना।
कोई भी अपराधी किसी समुदाय का प्रतिनिधित्व नहीं करता। बलात्कारी, हत्यारा या हिंसक व्यक्ति कोई भी हो, वह सिर्फ एक अपराधी है, उसकी कोई जाति या धर्म नहीं होती। अगर समाज इस सच्चाई को नहीं समझेगा, तो आज एक समुदाय को निशाना बनाया जाएगा और कल दूसरा समुदाय उसी समस्या का शिकार होगा। इसलिए, हमें एकजुट होकर अपराध के ख़िलाफ़ आवाज़ उठानी होगी और न्याय सुनिश्चित करना होगा।
हर अपराध के बाद हम अपराधी का धर्म ढूँढने की कोशिश करते हैं, लेकिन क्या इससे समस्या हल होती है? नहीं, बल्कि इससे अपराध के असली कारण से ध्यान हट जाता है। असली सवाल यह होना चाहिए—यह नृशंस घटना क्यों हुई और इसे भविष्य में कैसे रोका जाए? अगर हम अपराध का निर्णय धार्मिक पहचान के आधार पर करेंगे, तो असली अपराधी बच निकलेंगे। अपराधी चाहे जो भी हो, उसे निष्पक्ष और कठोर सजा मिलनी चाहिए।
हमें याद रखना होगा कि ऐसी जघन्य घटनाएँ किसी एक समुदाय की विफलता नहीं हैं, बल्कि पूरे समाज की विफलता हैं। परिवार से लेकर शिक्षण संस्थान, क़ानून व्यवस्था से लेकर न्यायपालिका—हर किसी को एक साथ मिलकर काम करना होगा, ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाएँ न हों।
हमारे इतिहास में कई पिंकी राय हत्याकांड जैसी घटनाएँ हो चुकी हैं, लेकिन क्या हमने कोई सीख ली? सिर्फ़ विरोध करने से कुछ नहीं होगा, बल्कि अपराध को रोकने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। धर्म और जाति से परे जाकर, सभी नागरिकों को अन्याय के ख़िलाफ़ एकजुट होकर खड़ा होना होगा।
अपराधियों को पहचानकर उन्हें क़ानून के दायरे में लाना हमारी सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी है। अपराधियों को कठोर दंड दिलाना ही समाज में शांति स्थापित करने का एकमात्र उपाय है।





















