“लोक संस्कृति, सामूहिक स्मृति और अनुवाद: समकालीन परिप्रेक्ष्य” विषय पर विद्वानों की गहन चर्चा
बड़खोला, 9 मार्च 2025 | विशेष संवाददाता
सरकारी मॉडल कॉलेज, बड़खोला ने मौलाना अबुल कलाम आज़ाद इंस्टीट्यूट ऑफ एशियन स्टडीज़, कोलकाता के सहयोग से 7 और 8 मार्च 2025 को अपने परिसर में “लोक संस्कृति, सामूहिक स्मृति और अनुवाद: समकालीन परिप्रेक्ष्य” विषय पर एक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया।
संगोष्ठी का उद्घाटन और मुख्य वक्तव्य
संगोष्ठी का उद्घाटन सत्र पहले दिन आयोजित किया गया, जिसमें असम विश्वविद्यालय, शिलचर के परीक्षा नियंत्रक डॉ. सुप्रबीर दत्तरॉय मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे। अपने उद्घाटन भाषण में उन्होंने भारत की लोक परंपराओं, उनकी सामूहिक स्मृति से जुड़ी भूमिका और अनुवाद के महत्त्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने खासतौर पर बराक घाटी की समृद्ध लोक परंपराओं के संरक्षण की आवश्यकता पर ज़ोर दिया, जो इस क्षेत्र की सांस्कृतिक धरोहर का अभिन्न हिस्सा हैं।
मुख्य वक्ता के रूप में असम विश्वविद्यालय के डीन, छात्र कल्याण विभाग के प्रोफेसर अनुप कुमार डे ने लोक संस्कृति, सामूहिक स्मृति और अनुवाद के आपसी संबंधों पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि आज के वैश्विकरण, तकनीकी प्रगति और सामाजिक-राजनीतिक परिवर्तनों के दौर में यह विषय पहले से अधिक प्रासंगिक हो गया है। प्रो. डे ने कहा,
“लोक संस्कृति, सामूहिक स्मृति और अनुवाद केवल अतीत की धरोहर नहीं हैं, बल्कि ये हमारी पहचान की जड़ों से जुड़े महत्वपूर्ण तत्व हैं। ये हमारी वर्तमान और भविष्य की संवाद प्रक्रियाओं को भी प्रभावित करते हैं।”
कॉलेज के प्राचार्य डॉ. सहाबुद्दीन अहमद ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में संगोष्ठी के विषय की प्रासंगिकता पर विचार व्यक्त किए। संगोष्ठी की समन्वयक उषा कुमारी शाह और संयुक्त समन्वयक डॉ. मोहम्मद शालीम मुक्तादिर हुसैन ने स्वागत भाषण और धन्यवाद ज्ञापन दिया। वहीं, कॉलेज के अंग्रेजी विभाग की जैस्मिन डेवरी ने कार्यक्रम का संचालन किया।
अनुवाद अध्ययन और शोध पत्रों की प्रस्तुति
असम विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभागाध्यक्ष प्रो. सौगत कुमार नाथ ने अपने विशेष व्याख्यान में अनुवाद अध्ययन के विभिन्न पहलुओं को स्पष्ट किया। उन्होंने अनुवाद की विभिन्न सिद्धांतों को सरल भाषा में समझाते हुए इस तथ्य पर बल दिया कि,
“हम सभी अनजाने में ही अपने जीवन के प्रत्येक स्तर पर किसी न किसी रूप में अनुवाद कर रहे होते हैं।”
इसके अलावा, रवींद्र सदन गर्ल्स कॉलेज, श्रीभूमि के इतिहास विभाग के डॉ. नीलांजन दे ने भी आमंत्रित वक्ता के रूप में अपने विचार साझा किए।
अखिल भारतीय सहभागिता और सार्थक संवाद
संगोष्ठी में देशभर के 72 शिक्षाविदों, विश्वविद्यालयों व कॉलेजों के प्राध्यापकों और शोधार्थियों ने भाग लिया। ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों माध्यमों में कुल 8 अकादमिक सत्रों में शोध पत्र प्रस्तुत किए गए।
संगोष्ठी की समन्वयक और अंग्रेजी विभाग की सहायक प्राध्यापिका उषा कुमारी शाह ने इस आयोजन की सफलता पर संतोष व्यक्त किया। उन्होंने मौलाना अबुल कलाम आज़ाद इंस्टीट्यूट ऑफ एशियन स्टडीज़, कोलकाता को वित्तीय सहायता के लिए धन्यवाद दिया और प्राचार्य डॉ. साहबुद्दीन अहमद, संयुक्त समन्वयक डॉ. शालीम, शिक्षकों, कर्मचारियों और छात्रों के सहयोग के लिए आभार व्यक्त किया।
संगोष्ठी का महत्व और निष्कर्ष
इस राष्ट्रीय संगोष्ठी ने लोक संस्कृति, सामूहिक स्मृति और अनुवाद के जटिल लेकिन महत्वपूर्ण पहलुओं पर गंभीर विमर्श को प्रोत्साहित किया। विशेषज्ञों और शोधार्थियों के बीच हुए विचार-विमर्श से यह स्पष्ट हुआ कि लोक परंपराओं को संरक्षित करने और अनुवाद के माध्यम से उन्हें व्यापक स्तर पर पहुंचाने की आवश्यकता पहले से अधिक है। संगोष्ठी ने इस दिशा में नए शोध और संवाद के लिए मार्ग प्रशस्त किया।