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सर्दी में क्यों नहीं नहाना (कविता का शीर्षक) – मधुछंदा चक्रवर्ती

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सर्दी है सूखे का मौसम,
सर्दी में पापड़ सूखते हैं।
पापड़ गीला हो जाए तो
उसका कोई अस्तित्व नहीं रहता।
सर्दी है आसमान में छाए घने बादलों का मौसम,
जो अगर बरस जाएं तो
धरती की फसलों का सपना अधूरा रह जाता है।
सर्दी है घने कोहरे का मौसम,
कोहरे में अगर पानी बरसे तो
बेघरों का कोई ठिकाना नहीं रहता।
सर्दी है सूरज देवता के आराम का मौसम,
यूँ नहाकर उनसे धूप मांगने की जुर्रत की तो
सूरज देवता के गुस्से का कोई ठिकाना नहीं रहता।

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