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साथियां क्यों चले साया छोङकर ( कहानी)– मदन सुमित्रा सिंघल

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नंदू ओर चंदा दोनों की धार्मिक एवं सामाजिक रितिरिवाज से बचपन में ही शादी हुई थी। व्ययस्क होने पर गौना ( मुकलावा) कर दिया लेकिन दोनों सबके प्यारे एवं दुलारे होने के कारण दिनरात एकसाथ रहते थे। दुकान बङी थी इसलिए शहर से नंदू समान लेने जाता तो रेल में साथ जाते। लोग शिकायत करते तो नंदू का बाप कहता कि बिनणी घूंघट में ही सारा समान सीर पर ढो कर ले आती है। लोग चूप हो जाते। जब नंदू दूकान में होता तो साथ में जाकर समान तोलकर दे देती। लोगों को तब अटपटा लगता था जब वो तालाब से पानी का घड़ा लाती तो नंदू भी लाता। औरतों में सुगबुगाहट एवं तानेमारने के बावजूद दोनों घर में भी मिलकर डांसरों की सेवा दुध निकालना थेपङी थापना दोनों एक साथ मिलकर करते। सुबह शाम आरती करने के साथ सबको खाना खिलातेबुढे माँ बाप के दोनों पांव दबाते तो सास ससुर जेठ जेठानी ओर अब तो उनके बेटे बहू भी दोनों को निहारते कि कितनी दोस्ती एवं प्यार है। उनके साथ साथ काम करने के सब कायल हो गये। एक दिन पांव फिसलकर नंदू तालाब में गिर गया तो बाहर खेंचकर पधेङी पर घर में ले आयी लोगों को ताजुब हुआ कि दोनों हाथों में खाली घङे भी ले आई। वैदजी ने कहा कि नदूं अब नहीं बचेगा यह सुण्यकाल में चला गया अब सेवा करने के अलावा कोई दवा काम नहीं करेगी। चंदा दिनरात नहलाना खाना खिलाना एवं सेवा करती। जब घर वाले कुछ बोलते तो उसकी आंख बंद रहती जब चंदा आती तो अचानक आंख खुलती।नदूं की अर्थी तैयार थी तो अंतिम दर्शन के लिए चंदा को लाया गया व कहा गया कि सिंदूर मिटाकर चुङियां तोड़ दे तो चंदा ने ना करके लाश से लिपट गई दो मिनट बाद औरतों ने हटाने की कोशिश की तो चंदा भी दम तोड़ दिया।  दोनों की अर्थी साथ साथ निकली तो अंतिम संस्कार भी साथ में किया गया।पंडित विश्वानंद ने कहा कि दान में एक एक जोङी समान ही होगा क्यूँकि वो दो नहीं एक साथ रहे तो एक साथ गये।

मदन सुमित्रा सिंघल
पत्रकार एवं साहित्यकार
शिलचर असम
मो 9435073653

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