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सादा जीवन, उच्च विचार’ के प्रतीक थे मनमोहन सिंह  -राधा रमण 

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मृत्यु किसी की अच्छी नहीं मानी जाती। लेकिन मृत्यु तय है। तभी तो कहा जाता है कि रामनाम सत्य है, सत्य है तो मुक्ति है। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह नहीं रहे। गुरूवार को देर रात दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में उनका निधन हो गया। वे 92 साल 3 महीना के थे। बिटिश भारत के पंजाब (अब पाकिस्तान) प्रांत के गाह गाँव में 26 सितंबर 1932 को उनका जन्म हुआ था। मनमोहन सिंह भले ही अपने नश्वर शरीर को छोडकर चले गए लेकिन प्रधानमंत्री के रूप में उनके किये गए कामों की वजह से वह हमेशा आमजनों की स्मृति में जीवित रहेंगे।
मनमोहन सिंह के निधन के बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्म्रू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडगे, विपक्ष के नेता राहुल गाँधी समेत कई लोगों ने उनके सरकारी घर पर जाकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। देश में सात दिनों तक राष्ट्रीय शोक रहेगा। प्रधानमंत्री ने अपने शोक संदेश में कहा कि ‘मनमोहन सिंह का जीवन देशवासियों के लिए प्रेरणास्रोत रहा। एक अर्थशास्त्री के रूप में उन्होंने अलग-अलग स्तर पर भारत सरकार में सेवाएँ दी। पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव सरकार में वित्तमंत्री रहे और देश में आर्थिक उदारीकरण की नींव रखी। उन्होंने वित्तीय संकट से घिरे देश को नई अर्थव्यवस्था के मार्ग पर प्रशस्त किया। जनता के प्रति, देश के विकास के प्रति उनका जो समर्पण था उसे हमेशा बहुत सम्मान से देखा जाएगा। डॉ. मनमोहन सिंह का जीवन ईमानदारी और सादगी का प्रतीक था।‘
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघ चालक मोहन भागवत ने कहा कि वे सामान्य परिवार से थे और देश के सर्वोच्च पद पर पहुँचे। वे विख्यात अर्थशास्त्री थे। उनके योगदान को देश हमेशा याद रखेगा। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि वे भारतीय अर्थव्यवस्था के आधुनिक निर्माता थे। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडगे ने कहा कि ‘इतिहास नि:संदेह आपकी विनम्रता को याद रखेगा। देश ने विजनरी स्टेट्समैन और दिग्गज अर्थशास्त्री खो दिया। मनमोहन सिंह ने करोड़ों भारतीयों की जिंदगी बदली और मीडिल क्लास का निर्माण किया। उन्होंने कुछ बोलने की बजाय खामोशी से काम करने को तरजीह दी। विपक्ष के नेता राहुल गाँधी ने कहा कि ‘मैंने अपना गुरु और मार्गदर्शक खो दिया है।‘
इन नेताओं की संवेदना अकारण नहीं है। मनमोहन सिंह का व्यक्तित्व वाकई बहुगुणी था। ऐसा नहीं था कि मनमोहन सिंह को जीवन में सबकुछ सजा-सजाया या विरासत में मिला था। अपनी ईमानदारी, कर्मठता और दूरदर्शी सोच के कारण उन्होंने जीवन में वह सबकुछ हासिल किया जो किसी सपने से कम नहीं है। मनमोहन सिंह अकसर मौन रहना पसंद करते थे लेकिन उनके काम मुखरता से उनकी मौजूदगी का अहसास कराते रहते हैं। वह इकलौते ऐसे प्रधानमंत्री थे जिनका नाम बतौर रिजर्व बैंक के गवर्नर (पहले इस पद पर थे) भारतीय करेंसी (नोटों) पर छपता था। वह देश के पहले सिक्ख थे जो प्रधानमंत्री के पद पर पहुँचे।
1991 में बतौर वित्तमंत्री मनमोहन सिंह जब देश में उदारीकरण की नींव रख रहे थे तब तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने उन्हें आगाह करते हुए कहा था कि अगर आप इसमें सफल हो गए तो इसका श्रेय हम दोनों को मिलेगा। लेकिन अगर असफल रहे तो सारा दोष आपका माना जाएगा। तब मनमोहन सिंह ने नरसिम्हा राव को भले ही जवाब नहीं दिया लेकिन इतिहास साक्षी है कि वह कितने सही थे। इसी तरह 2008 में बतौर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने जब अमेरिका के साथ न्यूक्लियर डील किया तब वामपंथी पार्टियों ने उनकी सरकार से समर्थन यह कहकर वापस ले लिया कि इससे देश की स्वतंत्र विदेश नीति पर असर पड़ेगा। उस समय वामपंथी दलों के 60 सांसद थे। दूसरा कोई प्रधानमंत्री होता तो पीछे हट गया होता। लेकिन मनमोहन फिर नहीं माने और डील तय करके ही दम लिया। भले ही इसके लिए उन्हें दोबारा सदन में बहुमत साबित करना पड़ा। कहने का तात्पर्य यह कि उनके लिए देशहित पहले था। कुर्सी का मोह नहीं। इसी तरह रोजगार गारंटी योजना, सबके लिए शिक्षा, सूचना का अधिकार क़ानून आदि मनमोहन सिंह के अनेक ऐसे काम हैं जो उन्होंने अपनी पार्टी कांग्रेस और समर्थक दलों के विरोध के बावजूद देशहित में लागू किया। विनम्र इतने कि उन्होंने खुले दिल से 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद हुए सिक्ख दंगों के लिए देश से माफी माँग ली और कहा कि जो हुआ, गलत हुआ, माफ़ कीजिए। संसद में तब के विपक्ष के तीखे सवालों का जवाब देने खड़े हुए तो बिना लागलपेट के साफ-साफ कह दिया कि ‘हजारों सवालों के जवाब से अच्छी है खामोशी मेरी … ।‘
मनमोहन सिंह से जुड़े दो मामलों का जिक्र करना जरूरी लगता है। भारतीय पुलिस सेवा के वरिष्ठ अधिकारी रहे उत्तरप्रदेश के समाज कल्याण, अनुसूचित जाति-जनजाति विभाग के राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) असीम अरुण लिखते हैं कि ‘ जब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने तो उनके पास एक मारुति 800 कार थी। उसे वह अपलक निहारते रहते थे। असीम अरुण तब प्रधानमंत्री के सुरक्षा अधिकारी हुआ करते थे। वह असीम अरुण से अकसर कहा करते थे कि मेरे पास पहले से एक कार है तो फिर इतनी महँगी कार की क्या जरूरत है? हमारा देश गरीब है और मुझे यह तामझाम कतई अच्छा नहीं लगता।‘ लेकिन सुरक्षा का हवाला देकर अधिकारी उनकी बात टाल दिया करते थे।
दूसरी बात मनमोहन सिंह के चिकित्सक रहे डॉ रमाकांत पांडा ने बताई। एक बार दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में डॉ मनमोहन सिंह का ऑपरेशन हुआ था। तब वह प्रधानमंत्री थे। डॉ पांडा के मुताबिक़ ऑपरेशन करीब 10 घंटे चला था। जब वह होश में आए तो डॉक्टर उनका हालचाल लेने गए। डॉक्टरों के कुछ पूछने से पहले मनमोहन सिंह ने उनसे सवाल किया कि मेरा देश कैसा है? मेरा कश्मीर कैसा है? डॉ पांडा बताते हैं कि वैसी हालत में जब मरीज अपने स्वास्थ्य के बारे में बात करता है, मनमोहन सिंह को देश की चिन्ता थी। वह एक बात और कहा करते थे कि ‘आशा करता हूँ कि इतिहास मेरे बारे में विनम्र रहेगा।‘ कहने की जरूरत नहीं कि इतिहास न सिर्फ मनमोहन सिंह के प्रति विनम्र है बल्कि देश उनके किये कामों के लिए नतमस्तक है। अब भले ही मनमोहन सिंह का पार्थिव शरीर हमारे बीच नहीं है, उनकी बातें और उनके द्वारा किये गए देशहित के काम आनेवाली पीढी का मार्गदर्शन करती रहेगी। हे सत्पुरुष! आपको इस देश के करोड़ों लोगों का शत-शत प्रणाम!

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