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सामाजिक समरसता का महापर्व -होली
डा. रणजीत कुमार तिवारी
दर्शनसंकायाध्यक्ष, कु.भा.व.सं.पु.अ.विश्वविद्यालय, नलबारी, असम
भारतीय संस्कृति में उत्सवों का विशेष स्थान है, जो न केवल हमारी परंपराओं की जीवंत अभिव्यक्ति हैं, अपितु समाज को जोड़ने वाले सुदृढ़ सेतु भी हैं। इन्हीं उत्सवों में होली एक ऐसा पर्व है, जो रंगों की छटा के साथ-साथ समाज में प्रेम, सौहार्द और समरसता की भावना को पुष्ट करता है। फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला यह पर्व न केवल ऋतु परिवर्तन का परिचायक है, बल्कि सामाजिक एकता, बुराई पर अच्छाई की विजय और मानवीय संबंधों में माधुर्य घोलने वाला पर्व भी है।
होली का उत्सव केवल रंगों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भारतीय समाज में सामाजिक समरसता और समन्वय को बढ़ावा देने का महत्वपूर्ण माध्यम भी है। हिंदू धर्म में इस पर्व की व्यवस्था समाज में भाईचारे और समानता की भावना को सुदृढ़ करने के लिए की गई है। इस दिन सभी जाति, वर्ग, आयु, और लिंग के लोग भेदभाव भूलकर एक-दूसरे को रंग लगाते हैं और प्रेमपूर्वक गले मिलते हैं। यह पर्व हमें यह संदेश देता है कि समाज में एकता और सौहार्द बनाए रखना आवश्यक है, ताकि हम सब मिलकर शांतिपूर्ण और सामंजस्यपूर्ण जीवन व्यतीत कर सकें।
होली केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक चेतना का भी परिचायक है। यह पर्व हमें हमारी परंपराओं और मूल्यों से जोड़े रखता है और समाज में बंधुत्व की भावना को प्रोत्साहित करता है। इस अवसर पर लोग पुराने गिले-शिकवे भुलाकर एक नई शुरुआत करते हैं, जिससे पारिवारिक और सामाजिक संबंधों में नई ऊर्जा का संचार होता है। यही कारण है कि होली को ‘मिलन का त्योहार’ भी कहा जाता है, जो समाज के सभी वर्गों को एक सूत्र में बांधने का कार्य करता है।
सामाजिक समरसता का परिचायक : होली पर्व समाज में व्याप्त भेदभाव और सीमाओं को मिटाकर समानता की भावना का संचार करता है। इस दिन समाज के सभी वर्ग—धनी-निर्धन, ऊँच-नीच, स्त्री-पुरुष—अपने सभी भेद भूलकर एक-दूसरे को रंग लगाते हैं। यह पर्व समाज में सामूहिकता और समानता का संदेश देता है और एक ऐसा वातावरण निर्मित करता है, जिसमें सभी लोग एक-दूसरे के प्रति स्नेह और अपनत्व का भाव रखते हैं।
आपसी संबंधों की मधुरता : होली का पर्व मन की कटुता को दूर कर हृदय की मधुरता को प्रकट करता है। पुराने वैमनस्य को भुलाकर लोग प्रेमपूर्वक एक-दूसरे से गले मिलते हैं, जिससे समाज में सौहार्द का संचार होता है। यह पर्व सामाजिक जीवन में ताजगी भरकर संबंधों को नया आयाम देता है।
सामूहिकता और सहयोग की भावना : हिंदू धर्म में होली को सामाजिक समरसता और समन्वय के प्रतीक के रूप में स्थापित किया गया है। यह एक ऐसा पर्व है जिसमें समाज के सभी लोग मिलकर तैयारियाँ करते हैं—होलिका दहन की सामग्री एकत्रित करना, सामूहिक रूप से लोकगीत गाना और एक-दूसरे पर रंग डालकर उल्लास मनाना। यह सहभागिता समाज में सहयोग, एकजुटता और सह-अस्तित्व की भावना को सुदृढ़ करती है।
बुराई पर अच्छाई की विजय : होली का ऐतिहासिक और पौराणिक संदर्भ बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। प्रह्लाद की भक्ति, हिरण्यकशिपु के अहंकार का विनाश और होलिका दहन की कथा यह सिद्ध करती है कि अधर्म कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, अंततः सत्य और धर्म की विजय अवश्य होती है। यह संदेश समाज को नैतिक मूल्यों की रक्षा और अन्याय के विरुद्ध संघर्ष की प्रेरणा प्रदान करता है।
सांस्कृतिक चेतना का संवाहक : होली केवल एक पर्व नहीं, अपितु हमारी सांस्कृतिक चेतना का अभिन्न अंग है। हिंदू धर्म में इसे सामाजिक सौहार्द और समन्वय को बढ़ावा देने के लिए नियोजित किया गया है। इस अवसर पर गाए जाने वाले फाग, धमार और होरी के लोकगीत भारतीय लोक-संस्कृति की सजीव ध्वनि हैं। यह पर्व नृत्य, संगीत और काव्य परंपरा के माध्यम से हमारी सांस्कृतिक धरोहर को जीवंत बनाए रखता है। होली की लोककथाएँ और किस्से हमें हमारी ऐतिहासिक विरासत से जोड़ते हैं और हमारी संस्कृति को समृद्ध बनाते हैं। रंगों की यह अभिव्यक्ति न केवल हमारे जीवन में आनंद भरती है, बल्कि हमारी सांस्कृतिक विरासत की रक्षा और संवर्धन में भी सहायक होती है।
राष्ट्रीय एकता और समावेशिता : होली का उत्सव विभिन्न धर्मों, जातियों और वर्गों के बीच की दूरी को पाटकर ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की भावना को चरितार्थ करता है। यह पर्व राष्ट्र की विविधता में एकता को दर्शाता है और सभी को समान रूप से उल्लास में भाग लेने का अवसर प्रदान करता है।
आधुनिक समाज में होली की प्रासंगिकता : आज के व्यस्त और तनावपूर्ण जीवन में होली का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है। यह पर्व लोगों को अपने व्यस्त जीवन से समय निकालकर परिवार और समाज के साथ जुड़ने का अवसर देता है। साथ ही, यह तनाव और अवसाद को दूर करने में भी सहायक होता है।
होली केवल रंगों का पर्व नहीं है, यह समाज में प्रेम, मैत्री और सौहार्द की पुनर्स्थापना का पर्व है। हिंदू धर्म में इस पर्व की व्यवस्था समाज में समरसता और समन्वय स्थापित करने के लिए की गई है, जिससे भेदभाव मिटे और समाज में भाईचारा बना रहे। यह उत्सव हमें सिखाता है कि सामाजिक जीवन में समरसता और सहयोग से ही सच्चा आनंद प्राप्त होता है। आज के जटिल सामाजिक परिदृश्य में होली की यह भावना और भी प्रासंगिक हो जाती है, जो हमें भेदभाव से परे एक समतामूलक समाज की ओर अग्रसर करती है। इस संकल्प के साथ हमें होली मनाना है कि समाज के सभी वर्गों में समरसता एवं सामाजिक एकता को बल मिल सके।
रंग-बिरंगे गुलाल की बौछार, गूँजे हर घर में हर्ष अपार।
नेह के रंग में सबको रंगाए, होली का त्योहार फिर आए।।
गिले-शिकवे सब मिट जाएँ, मन से मन के मेल बढ़ाएँ।
प्रेम, उमंग और उल्लास से, हर मुख पर हँसी खिल जाए।।
राधा-कृष्ण की याद दिलाए, फागुन में फगवा महकाए।
मस्ती में सब झूमें-गाएँ, रंगों से जीवन सतरंग बनाए।।