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दिल्ली 28 फरवरी: चलो कुछ न्यारा करते हैं फाउंडेशन के हिंदी साहित्य समिति द्वारा आयोजित द्विदिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आगाज दिनांक 27 फरवरी 2024 को हुआ । संगोष्ठी का विषय भारतीय गद्य साहित्य के साहित्यकारों एवं समाज सुधारकों का हिंदी साहित्य में अवदान रखा गया है, इस संगोष्ठी में देश-विदेश से करीब 135 से भी अधिक प्रतिभागियों ने अपने-अपने शोध पत्रों का वाचन किया। अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में प्रमुख रूप से आज मुख्य वक्ता के रूप में शिरकत करने वाले कुमार भास्कर वर्मा संस्कृत विश्वविद्यालय असम के कुलपति प्रो. प्रहलाद जोशी तथा जेजान यूनिवर्सिटी जेजान सऊदी अरेविया से प्रो. विपिन शर्मा उपस्थित रहे।
सर्वप्रथम मां सरस्वती की आराधना के पश्चात संगोष्ठी का शुभारंभ हुआ स्वागत भाषण के बाद हिंदी साहित्य समिति की अध्यक्षा डॉ. नम्रता जैन ने मुख्य वक्ताओं का परिचय एवं उनके द्वारा समस्त शिक्षा जगत को प्रदान की जाने वाली उपलब्धियां को गिनाया।
कुमार भास्कर वर्मा संस्कृत विश्वविद्यालय असम के कुलपति प्रो. प्रहलाद जोशी ने अपने वक्तव्य में कहा कि साहित्य की किसी भी विधा के उद्भव और विकास का संबंध उसकी भाषा के उद्भव और विकास के साथ जुड़ा हुआ होता है। इसलिए आधुनिक हिंदी गद्य के उद्भव की पृष्ठभूमि भी हिंदी भाषा के क्रमिक विकास से जुड़ी हुई है। आधुनिक हिंदी गद्य के अस्तित्व में आने से पूर्व अपभ्रंश मिश्रित देशी भाषाओं में गद्य साहित्य की झलक मिलती है हिंदी साहित्य का आधुनिक काल भारत के इतिहास के बदलते हुए स्वरूप से प्रभावित था। स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्रीयता की भावना का प्रभाव साहित्य में भी आया। भारत में औद्योगीकरण का प्रारंभ होने लगा था। आवागमन के साधनों का विकास हुआ। अंग्रेज़ी और पाश्चात्य शिक्षा का प्रभाव बढ़ा और जीवन में बदलाव आने लगा। ईश्वर के साथ साथ मानव को समान महत्व दिया गया। भावना के साथ साथ विचारों को पर्याप्त प्रधानता मिली। पद्य के साथ साथ गद्य का भी विकास हुआ और छापेखाने के आते ही साहित्य के संसार में एक नयी क्रांति हुई।
जेजान यूनिवर्सिटी सऊदी अरेबिया के प्रो. विपिन शर्मा ने बताया कि आधुनिक हिन्दी गद्य का विकास केवल हिन्दी भाषी क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं रहा। पूरे देश में और हर प्रदेश में हिन्दी की लोकप्रियता फैली और अनेक अन्य भाषी लेखकों ने हिन्दी में साहित्य रचना करके इसके विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान किया। हिन्दी गद्य के विकास को विभिन्न सोपानों में विभक्त किया जा सकता है। आधुनिक हिन्दी गद्य का विकास केवल हिन्दी भाषी क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं रहा। पूरे भारत में और हर प्रदेश में हिन्दी की लोकप्रियता फैली और अनेक अन्य भाषी लेखकों ने हिन्दी में साहित्य रचना करके इसके विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया । आधुनिक काल हिंदी गद्य का सर्वांगीण उन्नति का काल है। इस युग में न केवल नवीन गद्य विधाओं का उद्भव हुआ बल्कि सभी विधाओं का यचेष्ट विकास भी हुआ। इस युग में आधुनिक जीवन की यथार्थ परक चित्रण विविधता के साथ हुआ है। यही कारण है की उत्तरोत्तर हिंदी गद्य का विकास होता रहा। जिसका परिणाम यह हुआ की आज हिंदी भाषा विश्व की प्रमुख भाषाओं में गिनी जाती है।
आज संगोष्ठी के प्रथम दिवस के समापन तक पूरे भारत से 65 से भी अधिक विद्वानो ने अपने-अपने शोध पत्रों का वाचन किया।
संगोष्ठी के द्वितीय दिवस पर मिशिगन टेक्नोलॉजी यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर प्रीतम मंडल प्रातः 10:00 बजे अपना वक्तव्य रखेंगे इसी के साथ करीब 70 से भी अधिक विद्वान कल 28 फ़रवरी में अपना शोध पत्र वाचन करेंगे। आज के सेमिनार का संचालन डॉक्टर नम्रता जैन ने किया।