वैज्ञानिक इतिहास के इतिहास में, चन्द्रशेखर वेंकट रमन, जिन्हें आमतौर पर सी. वी. रमन के नाम से जाना जाता है, का नाम प्रतिभा और नवीनता के प्रतीक के रूप में चमकता है। 7 नवंबर, 1888 को भारत के तिरुचिरापल्ली शहर में जन्मे रमन की भौतिकी के क्षेत्र में यात्रा वैज्ञानिक समुदाय पर एक अमिट छाप छोड़ेगी। प्रकाश प्रकीर्णन के क्षेत्र में उनके अभूतपूर्व कार्य ने उन्हें 1930 में भौतिकी में नोबेल पुरस्कार दिलाया, जिससे वह यह प्रतिष्ठित सम्मान पाने वाले पहले एशियाई और गैर-श्वेत व्यक्ति बन गए। इस ऐतिहासिक उपलब्धि से परे, रमन का जीवन और विज्ञान में योगदान जिज्ञासा, दृढ़ता और ज्ञान की निरंतर खोज की शक्ति का एक प्रमाण है।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
सी. वी. रमन का प्रारंभिक जीवन विज्ञान में गहरी रुचि और ज्ञान के प्रति तीव्र भूख से चिह्नित था। एक ऐसे परिवार में पले-बढ़े जो शिक्षा को महत्व देते थे, उन्होंने गणित और भौतिकी के लिए प्रारंभिक योग्यता प्रदर्शित की। रमन की शैक्षणिक यात्रा मद्रास (अब चेन्नई) के प्रेसीडेंसी कॉलेज से शुरू हुई, जहाँ उन्होंने अपनी पढ़ाई में उत्कृष्टता हासिल की और विज्ञान में स्नातक की डिग्री हासिल की।
1907 में, रमन ने भौतिकी में मास्टर डिग्री हासिल करने के लिए मद्रास विश्वविद्यालय में प्रवेश किया। उनकी शैक्षणिक क्षमता शीघ्र ही स्पष्ट हो गई और उन्होंने 1909 में शीर्ष सम्मान के साथ अपनी मास्टर डिग्री पूरी की। इसने भौतिकी के क्षेत्र में उनके भविष्य के योगदान की नींव रखी।
कैरियर और अनुसंधान योगदान
रमन की व्यावसायिक यात्रा उन्हें विभिन्न शैक्षणिक और अनुसंधान संस्थानों में ले गई। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत भारतीय वित्त सेवा में एक सहायक महालेखाकार के रूप में की, लेकिन जल्द ही उन्हें एहसास हुआ कि उनकी असली पहचान वैज्ञानिक जांच की खोज में है। 1917 में, वह कलकत्ता (अब कोलकाता) में इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ साइंस (IACS) में शामिल हो गए, जहाँ उन्होंने अपने कुछ महत्वपूर्ण शोध किए।
रमन प्रभाव
रमन की वैज्ञानिक उपलब्धियों का शिखर रमन प्रभाव की खोज में निहित है, एक ऐसी घटना जिसने प्रकाश प्रकीर्णन की समझ में क्रांति ला दी। 1928 में, IACS में काम करते हुए, रमन ने आकस्मिक खोज की कि जब मोनोक्रोमैटिक प्रकाश एक पारदर्शी सामग्री से गुजरता है, तो बिखरे हुए प्रकाश का एक छोटा सा अंश तरंग दैर्ध्य में परिवर्तन से गुजरता है। तरंग दैर्ध्य में यह बदलाव, जिसे रमन प्रभाव के रूप में जाना जाता है, ने पदार्थों की आणविक संरचना और कंपन स्थितियों में महत्वपूर्ण अंतर्दृष्टि प्रदान की।
रमन की अभूतपूर्व खोज उनके असाधारण प्रयोगात्मक कौशल और भौतिकी के सिद्धांतों की गहरी समझ का प्रमाण थी रमन प्रभाव का न केवल आणविक संरचनाओं के अध्ययन पर गहरा प्रभाव पड़ा, बल्कि रसायन विज्ञान और जीव विज्ञान सहित विभिन्न विषयों में वैज्ञानिक जांच के नए रास्ते भी खुले।
भौतिकी में नोबेल पुरस्कार (1930)
रमन की खोज के महत्व को विश्व स्तर पर मान्यता मिली, जिसकी परिणति 1930 में भौतिकी में नोबेल पुरस्कार के पुरस्कार के रूप में हुई। रमन प्रभाव पर उनके अभूतपूर्व काम ने न केवल वैज्ञानिक समुदाय में बल्कि मान्यता के लिए भारत के संघर्ष के व्यापक संदर्भ में भी एक ऐतिहासिक क्षण चिह्नित किया। वैश्विक मंच पर रमन की उपलब्धि पूरे देश के लिए बेहद गर्व का स्रोत थी, क्योंकि वह नोबेल पुरस्कार के इतिहास में पहले एशियाई और गैर-श्वेत विजेता बने।नबेल समिति ने रमन के काम को स्वीकार करते हुए कहा कि रमन प्रभाव ने “अनुसंधान के नए क्षेत्र खोले हैं और वैज्ञानिक जांच को नई गति दी
डॉ प्रग्नेश परमार
अध्यक्ष, राजभाषा समिति
एम्स, बीबीनगर