66 Views
भारत की बेटी सुनीता विलियम्स एक ऐसी अंतरिक्ष यात्री हैं, जिनका नाम अंतरिक्ष अन्वेषण के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है। भारतीय मूल की अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री सुनीता ने अपने शानदार करियर में कई महत्वपूर्ण मिशनों को अंजाम दिया है। उन्होंने न केवल अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (आईएसएस) पर लंबे समय तक रहने का रिकॉर्ड बनाया बल्कि अपने असाधारण साहस और वैज्ञानिक योगदान से दुनिया को प्रेरित किया। उनकी अंतरिक्ष यात्राएँ मानव जाति की असीम संभावनाओं और वैज्ञानिक उपलब्धियों का प्रमाण हैं।
सुनीता विलियम्स ने पहली बार 2006 में अंतरिक्ष में कदम रखा, जब उन्हें नासा के मिशन STS-116 के तहत आईएसएस भेजा गया। इस मिशन में उन्होंने छह महीने से अधिक समय तक अंतरिक्ष में रहते हुए विभिन्न वैज्ञानिक प्रयोग किए और कई स्पेसवॉक भी किए। 2012 में, उन्होंने दूसरी बार अंतरिक्ष यात्रा की, जब उन्हें सोयुज TMA-05M मिशन के तहत आईएसएस पर भेजा गया। इन दोनों अभियानों के दौरान उन्होंने 50 घंटे से अधिक समय तक स्पेसवॉक करके महिला अंतरिक्ष यात्रियों में एक नया कीर्तिमान स्थापित किया।
बीते साल जून में, सुनीता विलियम्स और उनके साथी अंतरिक्ष यात्री बुच विलमोर को बोइंग के स्टारलाइनर यान के जरिए महज आठ दिनों के लिए अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (आईएसएस) पर भेजा गया था। लेकिन दुर्भाग्यवश, तकनीकी खराबी के कारण उनका वापसी यान काम नहीं कर पाया, जिससे उन्हें नौ महीने तक आईएसएस पर रहना पड़ा।अंततः, एलन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स के ड्रैगन कैप्सूल के जरिए वे सुरक्षित रूप से पृथ्वी पर लौटे। उनके साथ अंतरिक्ष यात्री निक हेग और रूसी अंतरिक्ष यात्री एलेक्ज़ेंडर गोर्बूनोव भी थे। उनकी यह वापसी यात्रा बेहद रोमांचक और ऐतिहासिक रही। उनके लिए स्पेसएक्स के ड्रैगन कैप्सूल का उपयोग किया गया, जिसने उन्हें फ्लोरिडा के तट के पास सुरक्षित रूप से समुद्र में उतारा।
स्पेस स्टेशन से पृथ्वी पर पहुँचने में अंतरिक्ष यात्रियों को 17 घंटे लगे। भारतीय समयानुसार सुबह 3 बजकर 27 मिनट पर चार अंतरिक्ष यात्रियों को लेकर कैप्सूल फ्लोरिडा के तट के पास समुद्र में गिरा।
ड्रैगन कैप्सूल ने पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते समय 17000 मील प्रति घंटे की गति प्राप्त कर ली थी। वायुमंडल में मौजूद गैस के साथ घर्षण के कारण यान का बाहरी तापमान 1927 डिग्री सेल्सियस तक पहुँच गया था, लेकिन इसके विशेष हीट शील्ड ने अंदर मौजूद अंतरिक्ष यात्रियों को सुरक्षा प्रदान की।
वायुमंडल में प्रवेश के दौरान कुछ मिनटों के लिए संचार बाधित हो गया, जिसे ‘कम्युनिकेशन ब्लैकआउट’ कहा जाता है। यह लगभग सुबह 3 बजकर 20 मिनट पर हुआ और कुछ मिनटों बाद फिर से संपर्क बहाल हुआ।
करीब 3 बजकर 21 मिनट पर कैप्सूल पूरी तरह स्वचालित मोड पर चला गया, यानी अंतरिक्ष यात्री उसे नियंत्रित नहीं कर रहे थे, बल्कि सिस्टम खुद ही इसे नियंत्रित कर रहा था। हालांकि, अंतरिक्ष यात्री सामने लगे टच स्क्रीन पर हर गतिविधि को देख सकते थे।
सुबह 3 बजकर 24 मिनट पर पहले ड्रैगन कैप्सूल के दो पैराशूट खुले, जिससे इसकी रफ्तार धीमी हुई। इस दौरान एक तेज़ झटका महसूस हुआ। इसके कुछ सेकंड बाद दो और पैराशूट खुले, जिससे यान की गति और अधिक नियंत्रित हो गई।
कैप्सूल के समुद्र में उतरने के बाद, एक अद्भुत नज़ारा देखने को मिला। पानी में उतरते ही, चारों ओर डॉल्फिन्स का एक झुंड कैप्सूल के चारों ओर तैरने लगा। यह दृश्य मानो अंतरिक्ष यात्रियों का पृथ्वी पर स्वागत करने जैसा प्रतीत हो रहा था।
मौके पर मौजूद रिकवरी टीम ने तेज़ बोट्स की मदद से कैप्सूल तक पहुँचना शुरू किया। पहले सुरक्षा का जायजा लिया गया, फिर पैराशूट हटाए गए। कुछ ही देर में, स्पेसएक्स का रिकवरी पोत वहाँ पहुँचा, जो लैंडिंग साइट से केवल दो मील की दूरी पर था।
जैसे ही कैप्सूल का साइड हैच खोला गया, दुनिया भर में लोग टीवी और इंटरनेट के माध्यम से अंतरिक्ष यात्रियों की पहली झलक देखने के लिए उत्सुक थे। क्रू के अंदर से हाथ हिलाने की तस्वीरें कैद की गईं।
निक हेग ड्रैगन कैप्सूल से बाहर निकलने वाले पहले अंतरिक्ष यात्री थे। वे मुस्कुराते हुए कैमरे की ओर देखे और हाथ लहराकर खुशी जताई।
बुच विलमोर और सुनीता विलियम्स ने भी बाहर निकलने से पहले कैमरे की ओर हाथ हिलाया और खुशी जाहिर की।
जब सुनीता विलियम्स और बुच विलमोर बाहर निकले, तो उनके चेहरे पर मुस्कान थी और वे लगातार हाथ हिला रहे थे।
आईएसएस पर 286 दिनों के दौरान, इन अंतरिक्ष यात्रियों ने कई वैज्ञानिक प्रयोग किए। वहाँ उन्होंने जैव अनुसंधान, माइक्रोग्रैविटी में मानव शरीर पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन और नई तकनीकों के परीक्षण किए।
हर दिन, उन्होंने 16 बार सूर्योदय और सूर्यास्त देखा, जो अपने आप में एक असाधारण अनुभव था। आमतौर पर, अंतरिक्ष यात्री अधिकतम छह महीने तक आईएसएस पर रहते हैं, लेकिन इस तकनीकी खराबी के कारण सुनीता विलियम्स और बुच विलमोर को नौ महीने बिताने पड़े।
सुनीता विलियम्स की यह यात्रा न केवल तकनीकी चुनौतियों से भरी थी, बल्कि यह मानव इच्छाशक्ति और धैर्य की भी परीक्षा थी। नौ महीने तक अंतरिक्ष में रहना आसान नहीं था, लेकिन उन्होंने और उनके साथियों ने इसे अद्भुत वैज्ञानिक खोजों और अनुभवों में बदल दिया।
उनकी यह ऐतिहासिक वापसी अंतरिक्ष अन्वेषण में एक नया अध्याय जोड़ती है। उन्होंने साबित किया कि तकनीकी कठिनाइयाँ भी वैज्ञानिक अन्वेषण को रोक नहीं सकतीं। यह मिशन उन सभी युवाओं के लिए प्रेरणा है जो अंतरिक्ष में जाने का सपना देखते हैं।
सुनीता विलियम्स की यह उपलब्धि सिर्फ उनके लिए नहीं, बल्कि पूरी मानव जाति के लिए गर्व का विषय है। उनकी यह ऐतिहासिक यात्रा हमेशा याद रखी जाएगी और आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी।