नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रिवेंटिव डिटेंशन (सुरक्षा के लिहाज से हिरासत में रखना) का चलन तुरंत खत्म किया जाना चाहिए, क्योंकि ये शक्तियों का मनमाना इस्तेमाल है. सुप्रीम कोर्ट ने एक बंदी की अपील को खारिज करने वाले तेलंगाना हाईकोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए यह बात कही.
सीजेआई चंद्रचूड़ की बेंच ने गुरुवार 21 मार्च को कहा कि प्रिवेंटिव डिटेंशन का कॉन्सेप्ट यह था कि किसी आरोपी को हिरासत में इसलिए रखें, ताकि उसे अपराध करने से रोका जा सके. जस्टिस पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा ने कहा कि कानून-व्यवस्था की स्थिति से निपटने में पुलिस की नाकामी प्रिवेंटिव डिटेंशन को लागू करने का बहाना नहीं होनी चाहिए.
तेलंगाना हाईकोर्ट के फैसले को दी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती
याचिकाकर्ता को 12 सितंबर 2023 को तेलंगाना में राचाकोंडा पुलिस आयुक्त के आदेश पर खतरनाक गतिविधियों की रोकथाम अधिनियम 1986 के तहत गिरफ्तार किया गया था. चार दिन बाद तेलंगाना हाईकोर्ट हिरासत आदेश पर सवाल उठाने वाली याचिका खारिज कर दी थी. नेनावथ बुज्जी नाम के इस शख्स को तेलंगाना पुलिस ने चेन स्नैचिंग के आरोप में हिरासत में लिया था. इस पर आरोप था कि उसने इलाके में कानून व्यवस्था का उल्लंघन किया है.
कोर्ट ने कहा सलाहकार बोर्ड सावधानी से काम करें
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कानून में यह साफ लिखा है कि प्रिवेंटिव डिटेंशन से जुड़े किसी भी अधिनियम के तहत पावर्स का इस्तेमाल बहुत सावधानी और इत्मीनान के साथ किया जाना चाहिए. यदि सलाहकार बोर्ड की रिपोर्ट कहती है कि हिरासत में लिए गए व्यक्ति को कस्टडी में रखने के लिए कोई पर्याप्त कारण मौजूद नहीं है तो उसे रिहा कर दिया जाना चाहिए. डकैती जैसे अपराध पर केवल 2 एफआईआर होना और कानून के तहत उसके गुंडा घोषित किए जाने पर हिरासत में रखने का आधार नहीं बनाया जा सकता.