नई दिल्ली. मणिपुर में दो महिलाओं को निर्वस्त्र कर परेड कराए जाने को लेकर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. शीर्ष अदालत ने जांच की सुस्त रफ्तार और मणिपुर में मौजूदा कानून व्यवस्था की स्थिति पर गंभीर चिंता व्यक्त की. सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि जांच धीमी है. इसलिए कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है. अदालत ने मणिपुर के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) को 4 अगस्त को दोपहर 2 बजे व्यक्तिगत रूप से पेश होने के लिए भी कहा.
अदालत ने केंद्र सरकार की तरफ सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा कि मामला 4 मई का था. जीरो एफआईआर 16 मई को दर्ज की गई. अभी तक कोई गिरफ्तारी हुई है, क्योंकि घटना तो चार मई की थी. इस पर एसजी ने कहा कि उन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं है.
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि जांच उल्लेखनीय रूप से सुस्त रही है. गिरफ्तारी या ठोस नतीजों के मामले में बहुत कम या कोई प्रगति नहीं हुई है. इसके चलते लोगों का कानून में विश्वास कम हो गया है. इससे संवैधानिक तंत्र की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़े हो गए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि राज्य पुलिस जांच करने में असमर्थ है, उन्होंने नियंत्रण खो दिया है. वहां कोई कानून-व्यवस्था नहीं है. अगर कानून-व्यवस्था मशीनरी लोगों की रक्षा नहीं कर सकती तो नागरिकों का क्या होगा?
मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने राज्य सरकार को एक बयान तैयार करने का भी निर्देश दिया, जिसमें वह तारीख बताई जाए, जब महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमाया गया. अदालत ने शून्य एफआईआर दर्ज करने की तारीख, नियमित एफआईआर दर्ज करने की तारीख, गवाहों के बयान देने की तारीख भी पूछी.
रिटायर्ड जजों की कमेटी बनाने का दिया संकेत
शीर्ष अदालत ने कहा कि राज्य पुलिस इस मामले की जांच करने में अक्षम है. सवाल उठाया कि 6,000 एफआईआर दर्ज होने के बावजूद अब तक केवल सात गिरफ्तारियां क्यों हुई हैं? अदालत ने कहा कि 6500 एफआईआर का बोझ सीबीआई पर नहीं डाला जा सकता है. आगे कहा कि वह सरकार के काम, मुआवजे, काम की बहाली, जांच और बयानों की रिकॉर्डिंग की निगरानी के लिए छूट पर निर्णय लेने के लिए पूर्व न्यायाधीशों की एक समिति गठित करने पर विचार कर सकती है.