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हौंसलें है संग तो,पर्वत को भी हम हिलाते हैं,
लक्ष्य को पल में अपनी, बांहों में भर लाते हैं |
एकअसफलता ने हमको,सच में जीना सिखाया,
राह की ठोकरें खा,फिर उत्साह से जुट जाते हैं |
निरंतर प्रयास की गंगा को, देकर ताज़गी यूँ ही,
ऊँचे आसमान को अपने, कदमों में झुकाते हैं |
सूर्य सी चमक और उजाला मुट्ठी में है हमारे,
पथ में अंधीयारों से, इसीलिये नहीं घबराते हैं |
ये तूफ़ान क्या रोकेंगे? हमारे बढ़ते क़दमों को,
हम संकल्पो से, खुशियों के बीज उगाते हैं |
मन में सपनों को, सच करने की ज़िद है हमारी,
चाहे मुश्किलों से सदा, होती हमारी मुलाक़ाते हैं |
कवितायें जन्म लेती है,मन की गहराई में “क्रांति”,
माँ सरस्वती के आशीष से, शब्द- पुत्र कहलाते हैं |
प्रहलाद ” क्रांति ” ( कवि )
चित्तौड़गढ़( राजस्थान )
रचना स्वयं रचित, मौलिक सर्व अधिकार सुरक्षित





















