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सेग्नोर स्थापना के निहितार्थ—

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विरोध और शत्रुता में अंतर होता है ! अत्यंत सूक्ष्म अंतर होता है ! यह विरोध अचानक कब विरोध की सीमा रेखा का उल्लंघन कर शत्रुता की हद को पार कर हिंसक हो जाता है,वैधानिकता को भुलाकर अमानवीय हो जाता है इसका आभास ही नहीं होता। दुर्भाग्य है आर्यावर्त के इस भू-भाग का कि विरोध आज शत्रुता की सीमा-पार करने जा रहा है।

इस संदर्भ में-“सेग्नोर” की चर्चा महत्वपूर्ण हो जाती है, -“सेग्नोर राज-दण्ड”है, अर्थात साम्राज्य के मुख्य दण्डाधिकारी के अधिकार का प्रतीक है, जो उसे धर्माधिकारियों ने धर्म दण्ड से पवित्र कर दिया हो ! और भारत गणराज्य के, विश्व के इस अभूतपूर्व लोकतंत्र के चार स्तम्भ अर्थात विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और पत्रकारिता ! ये वो चार स्तम्भ हैं जिनपर लोकतंत्र का भव्य-भवन स्थिर होता है ! भारत का संसद-भवन आज नूतन युग में प्रवेश कर रहा है,और सौभाग्य का विषय ये है कि -“नूतन संसद भवन में लोकतंत्र के प्रतीक उस सेग्नोर को स्थापित किया जा रहा है जो सदियों से उस गौ-वंश चिन्ह से अलंकृत है जिसके मूल में हमारे प्राचीनतम वैदिकीय मूल्य संरक्षित हैं।

राम चरित मानस और भगवान श्रीराम भविष्य में और भी  विवादित विषय बनने जा रहे हैं वो इसलिए कि-“विप्र धेनु सुर संत हित” जिस संस्कृति के प्राण हैं उसी गौ-वंश के मुख्य प्रतीक अर्थात-“नन्दी” की आकृति सेग्नोर के शिर्ष-स्थल पर उकेरी हुयी है,और यहाँ यह उल्लेखनीय है कि प्राचीन काल से ही-(१)-विप्र अर्थात ज्ञानीजनों की सुरक्षा (२)-धेनु- अर्थात गौ-रक्षा और उनका संवर्धन(ध्यान दें धेनु भूमि अर्थात मातृभूमि को भी कहते हैं) , (३)-सुर अर्थात देवता और (४)-संत अर्थात धर्म के पालन कर्ता इन चारों की सुरक्षा जिसके हांथों में होती है वह इसी राजदण्ड से शाषन व्यवस्था का संचालन करता है।

यहाँ विपक्ष की सबसे बड़ी समस्या उस-“नन्दी”के प्रतीक से है जिसके वंश की तश्करी,हत्या और गो मांस के सेवन पर प्रतिबंध लग जायेगा,और चूंकि शैव्य मठ अर्थात(वैदिकीय मत) के महात्माओं द्वारा इसकी स्थापना होने जा रही है अतः वैदिक ज्ञान के प्रकाशक विप्रों द्वारा संविधान में उचित संसोधन किया जायेगा, तद्नुसार विप्र अर्थात दिव्य आत्माओं के हितार्थ धर्म का पालन होगा।

प्रिय मित्रों ! यह सेग्नोर लोकसभा में स्पीकर के आसन के समीप स्थापित होना है,अर्थात पक्ष-विपक्ष दोनों में बहुमत से पारित विधान को ही-“संविधान” बनने की अनुमति स्पीकर देते हैं ! प्रधानमंत्री,राष्ट्रपति,न्यायपालिका अथवा पत्रकार इनकी अनुमति नहीं देते ! अतः यहाँ विरोध का कोई भी कारण है ही नहीं ! अब ये तो लोकसभा-राज्यसभा के सम्मानित प्रतिनिधियों को बहुमत से पारित करना है कि आनेवाले कल भारत वर्ष राजदण्ड से संचालित होगा अथवा -“शाहिन बाग,किसान आंदोलन और पहलवानों” से।

प्राचीन काल से ही राजा के ऊपर राजगुरु होते थे,उनकी अनुमति से ही राजा राज्य का संचालन करते थे ! और उसी राजगुरु को आज के युग में-“लोकसभा के स्पीकर” के रूप में जाना जाता है।

इस उद्घाटन समारोह में सेग्नोर को साष्टांग दण्डवत प्रणाम कर प्रधानमंत्री जी ने ये संदेश दिया है कि संविधान के पटल पर बहुमत से पारित नियम ही राष्ट्र पर शाषन करेंगे,अब ये तो आने वाला कल बतायेगा कि सेग्नोर पर नन्दी की मूर्ति रहेगी अथवा- “रावण” की जो तथाकथित ब्राम्हण होते हुवे भी गौ-मांस भक्षण के लिये प्रसिद्ध था।

कदाचित् आने वाले कुछ दिनों में विपक्ष की एकता का एकमात्र लक्ष्य होगा-“लोहे से लोहे को काटने का किन्तु ये ध्यान रहे कि कुल्हाड़ी का बेंत सदैव लकडी का होता है”। कुछ लोग हिन्दू को हिन्दुओं के विरूद्ध खडा कर, देश में प्रदर्शन के नाम पर हिंसा फैलाकर,पाकिस्तान और चीन को भारत के विरूद्ध समर्थन देकर अराजकता की सभी सीमाओं को पार करने की पूरी कोशिश करेंगे, इनका लक्ष्य-“नरेन्द्र मोदी की विचारधारा” है,जिसकी कायल समूची दुनिया है,और वैसे भी भारत हिन्दु राष्ट्र तो है ही ! यदि तथाकथित इस्लामी स्टेटों के जैसा होता तो कब का हिन्दुओं के अतिरिक्त अन्य सभी को हिन्द महासागर में डूब मरने को बाध्य कर देता-“आनंद शास्त्री”

: बुढापे की अनकही कहानी  ……(१)

जीवन ! एक वृत्त है,बिलकुल चक्रवत् ! ये सतत् चक्रमित होना चाहता है,जन्म से लेकर मृत्यु तक,सुबह से लेकर शाम तक एक अंजान डगर पर चलते चलते कब अंधकार होने लगा,ये पता ही नहीं चलता ! और अंततः जब आँखें खुलती हैं तो आगे-पीछे कोई भी और कुछ भी दिखता नहीं। किसी किसी को अगर दिखता भी है तो किसी -“आश्रम अथवा वृद्धाश्रम का ऐसा खुला द्वार जिसके भीतर और भी धुप्प अंधेरा है।”

मुझे अभी भी वो पल कभी-कभी याद आ जाते हैं जब मिर्जापुर किसी जीप से मैं जा रहा था,मेरे आगे एक ट्रक जा रहा था ! जिसके पीछे लिखा था-“भगवान करे तुम्हारे बच्चे जीयें-बडे होकर तुम्हारा खून पीयें”।

जिन बच्चों को अपने कन्धों पर बिठाकर मेले में,बगीचे और बाजार में लेकर जाते थे,जिनके लिये घोडे बनकर उनको सैर कराते थे,जिनके लिए युवावस्था में ही पति-पत्नी किसी कोल्हू के बैल की तरह खटते रहे ! स्वयं की सभी छोटी-छोटी  आवश्यकताओं को भुलाने की कोशिश कर उन्हें उच्च शिक्षा देने,एक अच्छा जीवन देने हेतु सबकुछ बलिदान कर दिया ! किसी किसी अभागी के वही बच्चे ऊँची उड़ान भरते हुए ! अति शिक्षित होते हुवे माँ-बाप से दूर कहीं और बस गये।और पीछे उन बुढे,बीमार कन्धों को छोड़ गये जो अपनी लाश खुद ही ढोकर किसी वृद्धाश्रम की चौखट पर आ गये।

अशिक्षित थे वे दम्पत्ति ! अशिक्षित होने अथवा आधी-अधूरी शिक्षा के परिणाम को जानते थे वे माँ-बाप जिन्होंने उनको अशिक्षित होने के डंख की चुभन से बचाने हेतु इतना शिक्षित कर दिया कि अब उनकी नजरों में माँ-बाप-“बैक-वर्ड” हो गये।

अब तो वे युवा हैं ! शिक्षित हैं,विवाह हो गया,पत्नी भी शिक्षित है ! दोनों की मजबूरी है,बाहर रहते हैं,दोनों जाॅब करते हैं ! अच्छा खासा पैकेज है ! माँ बाप को अपने पास रखने में लज्जा आती है,लेकिन हाँ लडके का फोन तब आता है जब बहू को डिलीवरी के कारण काम नहीं करना होता और फिर दो-चार साल तक नाती-पोतों की देखभाल करो और फिर –“माँ ! बाबू जी ! आप घर चले जाओ ! वहां का ध्यान भी रखना है तो।

और कुछ दिनों बाद फिर फोन आयेगा ! मम्मी !(आपके ममी बनने के दिन आ गये) आप पापा से बोलो ! प्रॉपर्टी बेचकर अपने सामने बँटवारा कर दें ! मुझे फ्लैट लेना है ! आप लोग यहाँ आकर चैन से रहोगे।

और मित्रों ! इसके बाद क्या होगा ये सब लोग जानते हैं ! किन्तु पुत्र-मोह के वशीभूत हुवे “किं कर्तव्य विमूढ़” हो ही जाते हैं ! भगवान करें आपकी सन्तान-“श्रवण कुमार” हों ,नचिकेता हों, किन्तु ये भी कडवी सच्चाई है कि-“रघुकुल रीति सदा चली आयी” जैसा किया वैसा भरोगे और नहीं तो कभी किसी के साथ जैसा किया था वैसा भरेंगे। 

जीवन भर जिनके लिये जीते रहे,जिन्हें अपना सबकुछ दे दिया, उन अपनों को मुँह मोड़ते देर नहीं लगी ! पापा ! आपके दो बच्चे हैं,आप छोटे के पास रहो ! मम्मी यहाँ रह लेंगी(अभी उनकी बूढी हड्डियों में कुछ दम है)।

हाँ ! यही तो बाकी बचा था ! जीवन भर साथ-साथ रहने की सौगन्ध खायी थी ! अग्नि को साक्षी रखकर एक दूसरे के जीवनसाथी ही नहीं अपितु जनम-जनम तक साथ रहने के जो सपने देखे थे वो अपनी ही सन्तानों ने चकनाचूर कर दिये।

पेंशन मिलती है ! अच्छी खासी पेंशन मिलती है ! लेकिन पासबुक और एटीएम बच्चों के पास है, बहुत सारे गहने थे ! वो बहू को चढा दिये ! बूढी के पास जब बूढ़ा ही नहीं तो गहने कहाँ से होंगे।

बुढिया जितने कदम चल नहीं पाती उससे अधिक बहू और बेटे कोसते हैं, बैकवर्ड और बीमार होने का ताना देते हैं , नाती पोते हुकुम देते हैं ,बहू बेटा नहीं चाहते उनके दोस्तों के सामने बुढिया आये ! इससे उनकी नाक कटती है, कब से चश्मा टूटा पडा है, बेटे के पास समय और पैसों की कमी है,हाँ ! जोमैटो का,अमेज़न का डिलीवरी ब्वॉय हमेशा आता है, बुढिया की तो उमर हो गयी ! दवा पर खर्च करने से होगा क्या ?

पर फिर भी काम करती है, अब फ्लैट में आँगन तो होते नहीं,हाँ गैलरी होती है, कोई आये तो दरवाजा खोलने में सुविधा होगी चलो बुढिया का बिस्तर यहीं लगा देते हैं,वैसे भी माँ जी के खाँसने से नींद खुल जाती है आपकी–क्रमशः …-“आनंद शास्त्री”

: बुढापे की अनकही कहानी  ……(२)

कभी-कभी भीतर तक सीहर जाता हूँ जब किसी धर्मस्थल,तीर्थ, मन्दिर के समीप किसी अकेले बूढे या अकेली बूढी की वीरान पडी सूखी आँखों में बेबसी और सामने एक चादर के टुकड़े पर दो-चार सिक्के कुछ चावल देखता हूँ ! सोचता हूँ– ओ विधाता ! ये बिचारे जब बीमार होंगे तो इनका क्या होगा ?

गर्मी की चिलचिलाती धूप में,सर्दियों की कंपकंपाती रात में, आंधी -तूफान और मुसलाधार बारिश की रात में ये कहाँ सोते होंगे ?

वो तथाकथित-“मुसाफिर खानों और रैन बसेरों” को मैं आज तक कहीं नहीं देख पाया जिसके हर नगर में होने की लोग बातें करते हैं ।

ये भिखारी हैं , कुछ ने डाढियाँ बढा कर भगवे कपड़े पहन रखे हैं,कुछ बूढी औरतें भी भगवा कपडे पहन रखी हैं ! ये वही बेसहारा, अनपढ़,गंवार लोग हैं जिनके बच्चों ने इनके जीवनसाथी के मरते ही इनका सबकुछ छीनकर धक्के देकर घर से निकाल दिया ! इनका भी कसूर था ! ये बीडी सिगरेट,शराब पीते थे,या इनके पति पीते थे, इनसे इनके बच्चों ने सीखा और आज इनकी ये स्थिति हो गयी। इनका किसी बैंक में एकाउंट नहीं हैं कि इन्हें वृद्धावस्था पेंशन निधि अथवा राशन कार्ड से अनाज अथवा प्रधानमंत्री आरोग्य निधि,आयुष्मान योजना से चिकित्सा मिल जाये ! इनका आधार कार्ड ही नहीं है तो आईडी प्रूफ अथवा मोबाइल की सिम कहाँ से मिलेगी ?

इनके बीच कभी-कभी ३०~४० वर्ष की कोई ऐसी औरत भी दिख जाती है जिस बिचारी को न जाने किस धर्मात्मा ने लूट कर पागल कर दिया जो आज आधे अधूरे कपड़ों में रोज ! दिन-रात में दसियों बार ऐसे लोगों का निवाला बनती हैं जो इन्हें कुचलने के बाद यूँ चले जाते हैं जैसे किसी कूडे के ढेर पर अपनी गन्दगी फेंक आये हों।

ये सरकार भी अजीब होती है ! हर नगर में पागल खाने होते हैं, आपने देखे ? यहाँ कौन रहता है ? ये तथाकथित बाल सुधार गृह,नारी-निकेतन किस शहर में होते हैं ? बिन पैसे दिये वृद्धाश्रम कहाँ हैं ? इन अनपढ़ लोगों को उनकी जानकारी अथवा उनमें प्रवेश बिना किसी आईडी प्रूफ के मिलेगा ? खैर, जाने दो ! होते होंगे ! ये तो बडे लोगों के शौक के लिये होते हैं,ये काले धन को सफेद करने केलिये होते हैं ! कागजों में होते हैं।

लायंस और रोटरी क्लब के लोग,सामाजिक सेवा समूह, एनजीओ को भी ऐसे अपंग लोगों को दिव्याङ्गो हेतु बने उपकरणों को देने का शायद अधिकार और आदेश है जिनके पास कोई न कोई आइडी प्रूफ हो, ऐसे अंधे,लूले,लंगड़े,कोढी, कैंसर से लडते अनाथों का कोई नाथ है तो शायद वो सो चुका है।

इनकी आँखों में कईयों बार खुशी की चमक देखने का सौभाग्य अनायास ही आपको भी मिल सकता है,बस थोड़ा सा दिल में दर्द होना चाहिये।ये लाचार अधेड़ और अकेले बूढे लोग ! ऐसे लावारिश जिंदा मुर्दे हैं जिनकी किडनी निकाल कर अथवा कि लीवर ट्रान्सप्लान्ट के लिये इन्हें भरमाकर दो-चार सौ-हजार रुपये देकर हमारे सफेद पोश समाज ने इनकी जिंदगी और भी जहरीली बनाकर इनकी खुद की लाश इनके ही कन्धों पर थमाकर खुद राहत की साँस ले ली

मैंने इन दरिद्र नारायणों को कईयों बार अंधकार होने पर देसी दारु के ठेकों पर देखा है, किन्तु इनके साथ-साथ कुछेक अपनों को देखा है जो ये कहते हैं कि ये भिखारी ! पैसे मांगकर उनसे शराब पीते हैं ! हाँ ! बिलकुल सही है ये ! जीएसटी सरकार दोनों से लेती है,एक को नौकरी अथवा बेरोजगारी भत्ता देती है और दूसरे को आधार कार्ड न होने के कारण केवल धुतकार।

इनके पास वोट भी नहीं है कि इनकी किसी राजनैतिक दल को कभी याद आये, कोरोना काल में तीन ऐसी लाशें बडी मुश्किल से मैंने इन्हीं हांथों से चिता में जलायीं थीं जो न मालूम किनकी थीं,हिन्दु थे कि मुस्लिम नहीं जानता किन्तु ऐसे इंसान थे जो मरने के बहुत पहले मृत्यु तुल्य जीवन बीता रहे थे, वो तो भला हो उन पुलिस वालों का जिन्होंने मेरी सहायता की ! दो बार रोड किनारे खडे ठेले ले जाने को कहा जो मुर्दा गाडी के काम आये, और-“लावारिश मुर्दा” लिखकर दिया इसलिये कि कोई परेशानी न हो।

और हाँ ! ये इंसान भी कितने विचित्र होते हैं ! श्मशान में लकडी वालों ने आधे मूल्य पर लकडियाँ दे दीं और जलाने वाले ने मुफ्त सेवा दी,मुखाग्नि मैं देकर परमात्मा से बोला हे प्रभु ! इन अनामी को आप अब और कोई नाम मत देना। …क्रमशः—“आनंद शास्त्री”

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