पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने बीएसएफ कॉन्स्टेबल की बर्खास्तगी को बरकरार रखते हुए कहा कि अनुशासित और वर्दीधारी सेवा में रहते हुए अपने ही सहकर्मी की पत्नी की इज्जत से खिलवाड़ करने का प्रयास करना क्षमा योग्य नहीं है। कोर्ट ने कहा कि किसी कर्मचारी को हटाने से संबंधित सभी मामले कठिनाई उत्पन्न करते हैं लेकिन केवल इसी आधार पर सजा को कम करना उचित नहीं होगा।
चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने बीएसएफ कॉन्स्टेबल की बर्खास्तगी को बरकरार रखते हुए स्पष्ट किया है कि न्यायालय को ‘गलत सहानुभूति’ से निर्देशित नहीं होना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि किसी कर्मचारी को हटाने से संबंधित सभी मामले कठिनाई उत्पन्न करते हैं, लेकिन केवल इसी आधार पर सजा को कम करना उचित नहीं होगा। मामला सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के पूर्व कॉन्स्टेबल जगपाल शर्मा का था, जिसे जम्मू एवं कश्मीर में तैनाती के दौरान अपने साथी कॉन्स्टेबल की पत्नी की शील भंग करने की कोशिश के आरोप में बर्खास्त किया गया था। हाई कोर्ट ने इस मामले में स्पष्ट किया कि साथी सैनिक की पत्नी की शील भंग करने की कोशिश को किसी भी स्थिति में गंभीर अपराध न मानने की संभावना कम है। ऐसे अनुचित कृत्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, खासकर तब जब याचिकाकर्ता का सेवा रिकॉर्ड भी किसी तरह की विश्वसनीयता को प्रेरित नहीं करता हो।
मेडिकल सबूत भी नहीं किए गए प्रस्तुत
याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में बर्खास्तगी के खिलाफ अपील दायर की थी, जिसमें उसने तर्क दिया कि उसके साथ न्याय का हनन हुआ है और उसे उचित सुनवाई का अवसर दिए बिना सेवा से हटा दिया गया। उसका यह भी कहना था कि शिकायतकर्ता और गवाहों के बयानों की उचित जांच नहीं की गई और कोई ठोस मेडिकल साक्ष्य भी प्रस्तुत नहीं किया गया। मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस विनोद एस भारद्वाज ने याचिका खारिज कर दी। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता को 1998 में बीएसएफ में नियुक्त किया गया था और 16 वर्षों तक सेवा में रहा।लेकिन 17 अक्टूबर 2013 की रात को जम्मू-कश्मीर में बीएसएफ की 32वीं बटालियन के मुख्यालय में तैनाती के दौरान उसने अपने साथी कॉन्स्टेबल की पत्नी पर शील भंग करने के इरादे से आपराधिक बल का प्रयोग किया और जबरन उसके घर में घुसा। इस पर उसे दो आरोपों में दोषी ठहराया गया था याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि सेवा से बर्खास्तगी की सजा अत्यधिक कठोर और अनुपातहीन है, लेकिन हाई कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया।
सहकर्मी की पत्नी की इज्जत के साथ खिलवाड़ की कोशिश
कोर्ट ने कहा कि अनुशासित और वर्दीधारी सेवा में रहते हुए अपने ही सहकर्मी की पत्नी की इज्जत से खिलवाड़ करने का प्रयास करना क्षमा योग्य नहीं है। जब कोई सैनिक अपनी ड्यूटी पर तैनात होता है, तो उसके परिवार की सुरक्षा की जिम्मेदारी उसके साथियों पर होती है, न कि इस स्थिति का गलत फायदा उठाने की। हाईकोर्ट ने इस अपराध को गंभीर माना और कहा कि ऐसा आचरण न केवल अनुशासनहीनता है, बल्कि यह पूरी वर्दीधारी सेवा के सम्मान और नैतिक मूल्यों पर भी सवाल खड़ा करता है। इस आधार पर कोर्ट ने कॉन्स्टेबल की बर्खास्तगी को सही ठहराया और उसकी याचिका खारिज कर दी।





















