राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक जिनका चिकित्सा के दौरान दिल्ली में कल देहावसान हो गया था। आज उनका पार्थिव शरीर स्वयंसेवकों के अंतिम दर्शन के लिए अपराह्न 2:00 बजे संघ कार्यालय शिलचर केशव निकेतन में लाया जाएगा। यहां से श्रद्धांजलि देने के पश्चात उनका पार्थिव शरीर उनके पैतृक गांव जलालपुर चाय बागान में ले जाया जाएगा, जहां उनकी अंतिम क्रिया संपन्न होगी।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के वरिष्ठ प्रचारक गौरी शंकर चक्रवर्ती का बुधवार सुबह नई दिल्ली के एक अस्पताल में निधन हो गया। वह 71 वर्ष के थे और कुछ समय से कैंसर से पीड़ित थे। वह पिछले साल अगस्त में डिब्रूगढ़ गये थे जहां पर कोरोना संक्रमित पाए गए थे, लेकिन कुछ ही समय में कोरोना को परास्त कर समाज कार्य में फिर से सक्रिय हो गए थे। चक्रवर्ती ने नई दिल्ली के नॉर्थ एक्सटेंशन स्थित एमडी सिटी हॉस्पिटल में सुबह करीब छह बजे अंतिम सांस ली।
संगठन के कार्यकर्ता उनको प्रेम से ‘गौरी दा’ कहते थे। उनके निधन पर असम के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल ने गहरा दुख व्यक्त किया है। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव दिलीप सैकिया, प्रदेश अध्यक्ष रंजीत कुमार दास, मंत्री डॉ हिमंत विश्वशर्मा समेत अनेक लोगों ने दिवंगत आत्मा की शांति के लिए ईश्वर से प्रार्थन की। गौरी दा का पार्थिव शरीर गुरुवार को उनके गृह जिला कछार के सिलचर शहर ले जाया जाएगा। उनका अंतिम संस्कार उनके पैतृक गांव जलालपुर में किया जाएगा। वह अपने पीछे पांच भाई, भाभी, पोते समेत भरा-पूरा परिवार छोड़ गये हैं।
गौरी दा जलालपुर के लोकप्रिय चिकित्सक डॉ. खगेंद्र चंद्र चक्रवर्ती की चौथी संतान थे। उनका जन्म 30 नवम्बर, 1950 को हुआ था। उनके बड़े भाई शिवशंकर चक्रवर्ती चिकित्सक थे और वह कुछ समय के लिए प्रचारक भी रहे थे। शिवशंकर चक्रवर्ती तत्कालीन उत्तर कछार पहाड़ी जिले (अब डिमा हसाउ) के हाफलांग में विश्व हिंदू परिषद के प्रभारी रहे। उन्होंने चिकित्सक के रूप में जीवनभर जनजातीय समाज के बीच सेवा कार्य किया। लगभग तीन दशक पहले उनका निधन हो गया।
प्रचारक गौरीशंकर चक्रवर्ती बचपन से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े रहे। अपने छात्र जीवन से ही वह संघ की शाखाओं में नियमित जाते थे। हाईस्कूल की परीक्षा में उन्होंने पूरे असम की मेरिट सूची में तीसरा स्थान प्राप्त किया था। बाद में वे गुवाहाटी आ गए और कॉटन कॉलेज से इंटरमीडिएट की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। आगे की पढ़ाई के लिए वे दिल्ली पहुंचे। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक और कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से भौतिकी में परास्नातक की डिग्री हासिल की।
वर्ष 2013 में वह कैंसर से पीड़ित हो गए, लेकिन कुछ ही समय में इस बीमारी से उबर गए। उसके बाद 2017 में रीढ़ की हड्डी में कुछ परेशानियों के चलते उन्होंने दिल्ली के एक अस्पताल में सर्जरी करवाई और ठीक हुए। वह फिर से कैंसर से पीड़ित हो गए और उन्हें फरवरी में दिल्ली के एमडी सिटी अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
उन्होंने 50 से अधिक पुस्तकों का अनुवाद किया था, जबकि असमिया एवं अंग्रेजी भाषा में 25 से अधिक पुस्तक लिखे। वर्ष 2013 में कैंसर से पीड़ित होने के बावजूद बेड पर रहते हुए उन्होंने दंतोपंत ठेंगड़ी की हिंदी में लिखी कार्यकर्ता नामक पुस्तक का असमिया में अनुवाद किया। हाल ही में उन्होंने आधुनिक भारत के शिल्पकार डॉ हेडगेवार का असमिया में अनुवाद किया था। यह पुस्तक छपकर आ गई है। हालांकि अभी तक इसका विमोचन नहीं हुआ है।
वर्ष 1973 में प्रचारक बने गौरीशंकर को दिल्ली में तैनात किया गया। आपातकाल के बाद उन्हें 1978 में महानगर प्रचारक के रूप में गुवाहाटी भेजा गया। वर्ष 1983 में डिब्रूगढ़ विभाग के प्रचारक का दायित्व सौंपा गया। वह 1983 से 1991 तक डिब्रूगढ़ में रहे। उन्हें 1991 में संभाग प्रचारक के रूप में सिलचर भेजा गया। वर्ष 1994 में दक्षिण असम प्रांत के प्रचारक की जिम्मेदारी दी गई। उन्होंने 2003 तक इस दायित्व का निर्वहन किया। बाद में 2003 से 2012 तक क्षेत्र शारीरिक प्रमुख के रूप में अपनी सेवाएं दीं। वर्ष 2012 में उन्हें उत्तर-पूर्व क्षेत्र के सह क्षेत्र प्रचारक की जिम्मेदारी दी गई। गंभीर बीमारी के बावजूद उन्होंने अपने दायित्व का बखूबी निर्वहन किया। इसके बाद उन्हें अखिल भारतीय कार्यकारिणी का आमंत्रित सदस्य बनाया गया। गौरीशंकर चक्रवर्ती बांसुरी, बिगुल, ड्रम (आनक) बजाने में सिद्धहस्त थे। वे दंड के उच्चकोटि के प्रशिक्षक भी थे।
हिन्दुस्थान समाचार / समीप/ अरविंद